
1. पति के किसी भी रिश्तेदार के घर रह सकती है पत्नी 2. केंद्र सरकार को सरल अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं पर सूचना और नोटिस जारी करने का आदेश 3. महाराष्ट्र सरकार की बर्खास्तगी की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की..पढ़िए विस्तार से इन फैसलों को
1. महिलाओं के हक़ में एक और बड़ा फैसला
नई दिल्ली (khabargali) बेटियों को सम्पत्ति में जन्म से ही अधिकार देने के फैसले बाद सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक़ में एक और बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला के लिए घर का मतलब पति के किसी भी रिश्तेदार का आवास भी है। उसे उनके घर में रहने का अधिकार दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए घरेलू हिंसा कानून, 2005 की धारा 2 (एस) का दायरा विस्तारित कर दिया। इस धारा में पति के साझाघर की परिभाषा है। इसके अनुसार हिंसा के बाद घर से निकाली महिला को साझाघर में रहने का अधिकार है। अब तक ये साझा घर पति का घर, चाहे ये किराए पर हो या संयुक्त परिवार का घर, जिसका पति सदस्य हो, माना जाता था। इसमें ससुरालियों के घर शामिल नहीं थे।
2. केंद्र सरकार को सरल अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं पर सूचना और नोटिस जारी करने का आदेश
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सरल अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में कानूनों की हैंडबुक्स जारी करने और सरकारी नियमों के मसौदों में समझ में आने वाली आसान भाषा के इस्तेमाल के लिए दायर याचिका पर गुरुवार को केंद्र सरकार और बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआइ) को नोटिस जारी किए हैं। प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमणियन की पीठ के समक्ष इस याचिका में कानून मंत्रालय को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि आम जनता के हित वाले कानूनों की लघु निर्देश पुस्तिका सरल अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषाओं में जारी करने का निर्देश दिया जाए ताकि आम नागरिक अपने अधिकारों और शिकायतों के समाधान से संबंधित कानून और प्रक्रिया सहजता से समझ सके। याचिका में बीसीआइ को सभी विधि स्कूलों में साधारण अंग्रेजी में कानूनी लेखन का अनिवार्य विषय शुरू करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है। याचिका में शीर्ष अदालत में लिखित वाद की पेज सीमा और मौखिक बहस के लिए समय सीमा निर्धारित करने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है।
3. सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की बर्खास्तगी की मांग वाली जनहित याचिका खारिज
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को बर्खास्त करने और राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे और जस्टिस ए एस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्य की पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि आप राष्ट्रपति से संपर्क करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन यहां मत आइए।" बता दें कि दिल्ली निवासी विक्रम गहलोत, रिषभ जैन और गौतम शर्मा ने सरकार की बर्खास्तगी की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर की थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्य के मामलों को संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों के अनुरूप हल नहीं किया जा रहा है। राज्य में सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों द्वारा प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग कर न केवल अपराधियों को बचाया जा रहा है बल्कि आपराधिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। याचिका में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत और बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत की संपत्ति के कुछ हिस्सों को ध्वस्त करने के उदाहरणों का उल्लेख किया गया था।
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