पाक के लाहौर हाई कोर्ट में याचिका दायर..पढ़ें आखिर कोहिनूर आया कहां से और किन-किन लोगों के हाथों में गया?
नई दिल्ली (khabargali) दुनिया के सबसे चर्चित हीरों में शुमार कोहिनूर को लेकर एक बार फिर से जंग छिड़ गई है. कोहिनूर इस समय ब्रिटेन के टावर ऑफ लंदन के जेवेल हाउस में है. ये हीरा एक ऐसे खूनी इतिहास की याद दिलाता है, जिसमें ये कई लोगों के हाथ आया और कई के हाथ से छिना. हालांकि अंग्रेजों को ये 1849 में मिला था और तभी से उनके पास ही है. इसकी वापसी की मांग बार-बार उठती है लेकिन अभी तक वापसी हो नहीं सकी है. भारत ने आजादी के तुरंत बाद हीरे ही मांग की थी. अब पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट में बीते मंगलवार को एक याचिका दायर करके इस हीरे को वापस लाने की मांग की गई. याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार कोहिनूर को वापस लाने के लिए कदम उठाए. लाहौर हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 16 जुलाई को अपना पक्ष रखने को कहा है. याचिकाकर्ता वकील जावेद इकबाल ने अपनी याचिका में जोर देकर कहा है कि उसे जानकारी मिली है कि कोहिनूर को वापस लाने के भारत प्रयास कर रहा है. उन्होंने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि वह सरकार को कोहिनूर को पाकिस्तान वापस लाने के लिए प्रयास तेज करने को कहे. इकबाल ने कहा कि ब्रिटेन के लोगों ने दलीप सिंह से यह हीरा छीन लिया था और उसे अपने साथ लंदन ले गए थे. इकबाल ने कहा कि इस हीरे पर ब्रिटिश महारानी का कोई हक नहीं है और यह पंजाब की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है.
108 कैरेट का कोहिनूर हीरा
बता दें कि दुनिया के सबसे बड़े हीरों में से एक कोहिनूर हीरे को वापस लाने के लिए भारत भी प्रयासरत है. यह हीरा फिलहाल टावर ऑफ लंदन में प्रदर्शित राजमुकुट में लगा है. यह हीरा करीब 108 कैरेट का है। वर्ष 2010 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने भारत यात्रा के दौरान कथित रूप से कहा था कि यदि ब्रिटेन इस हीरे को लौटाने पर राजी हो गया तो ब्रिटिश संग्रहालय खाली मिलेंगे. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि हीरे को ब्रिटिश न तो जबर्दस्ती ले गए और न ही उन्होंने उसे चुराया, बल्कि इसे पंजाब के शासकों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी को उपहार के रूप में दिया गया था. इस हीरे को लाने में कई कानूनी और तकनीकी अड़चनें हैं क्योंकि यह आजादी पूर्व काल का है और इस तरह यह पुरावशेष एवं कला संपदा अधिनियम 1972 के दायरे में नहीं आता.
भुट्टो ने 1976 में यह मांग की थी
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो ने भी 1976 में ब्रिटिश पीएम को पत्र लिखकर कोहिनूर देने की मांग की थी. इस मामले में तालिबन ने नवंबर 2000 में कहा कि कोहिनूर अफगानिस्तान की संपत्ति है इसलिए उन्हें लौटाया जाए . साल 2002 में क्वीन मदर के निधन के बाद उनकी ताबूत पर भी ये हीरा रखा, तब ब्रिटेन के सिखों ने इसका विरोध किया था.
आखिर कोहिनूर आया कहां से ?
लेकिन सवाल ये है कि आखिर कोहिनूर आया कहां से और किन-किन लोगों के हाथों में गया? घटनाक्रम के इन पांच बिंदुओं से जानिए।
1. इतिहास की मानें तो कहा जाता है कि कोहिनूर हीरे को तुर्कों ने दक्षिण भारत में स्थित एक मंदिर की किसी मूर्ति की आंख से निकाला था. हीरे का पहला आधिकारिक जिक्र 1750 में तब हुआ, जब फारसी इतिहासकार मोहम्मद मारवी ने कहा कि नादिरशाह खून खराबा करने के बाद दिल्ली से तख्ते ताऊस के ऊपर जड़ा ये हीरा लूटकर ईरान ले गया था.
2. नादिरशाह ने मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीले की सेना को हराया था. हालांकि उसकी मौत के बाद ये हीरा उसके अफगानी अंगरक्षक अहमद शाह अब्दाली के पास आया . इसके बाद ये और भी कई लोगों के हाथों में आया और छिना और फिर साल 1813 में महाराज रणजीत सिंह के पास पहुंच गया. वह बड़े त्योहारों के मौके पर इसे अपनी बांह में बांधा करते थे.
3. रणजीत सिंह के दौरों में भी ये हीरा साथ रहता था और ब्रिटिश अफसरों के दरबार में आने पर उन्हें दिखाया भी जाता था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब 1839 में महाराजा रणजीत सिंह का निधन हुआ, तो उसके बाद कड़ा सत्ता संघर्ष चला और फिर 1843 में पांच साल के दलीप सिंह पंजाब के राजा बने लेकिन जब दूसरा एंग्लो सिख युद्ध हुआ तो उसमें अंग्रेजों की जीत हुई, जिसके बाद उनका साम्राज्य और कोहिनूर दोनों ही अंग्रेजों को मिल गए.
4. लॉर्ड डलहोजी इसे लेने लाहौर आए थे और उन्हें हाथों में हीरा दिया गया. जिसके बाद ये हीरा महारानी विक्टोरिया को भेजने का फैसला लिया गया . जहाज के रास्ते हीरा ब्रिटेन पहुंचा और वहां इसका काफी तैयारी के साथ स्वागत हुआ. क्रिस्टल पैलेस में इसे प्रदर्शित किया गया. दो साल बीत गए लेकिन महारानी विक्टोरिया ने इसे सार्वजनिक तौर पर नहीं पहना.
5. इस बीच दलीप सिंह लंदन पहुंचे और उन्होंने महारानी के पास रखे हीरे को अपने हाथों से महारानी को भेंट किया. बाद में ये हीरा महाराजा एडवर्ड स्पतम ने पहना, फिर उनकी पत्नी महारानी एलेक्जेंड्रा ने भी अपने ताज में पहना. इसके बाद राजकुमारी मेरी ने इसे पहना, लेकिन महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने इस हीरे को अपने ताज में नहीं पहना इसे ब्रिटेन के टावर ऑफ लंदन के जेवेल हाउस में रखवा दिया गया.
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