वैक्सीन से नपुंसकता, सुअर की चर्बी मिलना, दवा के लिए रजिस्ट्रेशन , डीएनए में बदलाव जैसे अफवाहों से बचने की अपील
नई दिल्ली (khabargali) भारतीयों के लिए अच्छी खबर है कि कोरोना वायरस से निपटने के लिए दो वैक्सीन कोविशील्ड और कोवैक्सीन को इस्तेमाल की इजाजत मिल गई है। डीसीजीआई ने दोनों के इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दे दी। लेकिन इस पर भी राजनीति शुरू हो गई है । विपक्षी पार्टियों के नेता इस पर अनर्गल बयानबाजी करने लगे हैं और इसके साथ वैक्सीन के साइड इफेक्ट्स को लेकर अफवाहों का शोर भी सुनाई देने लगा है। आपको उदाहरण के रूप में सपा विधायक आशुतोष सिन्हा का ही बयान बताएं तो उन्होंने कह दिया कि ये वैक्सीन नपुंसक बनाने वाली हो सकती है। उन्होंने कहा था कि हो सकता है बीजेपी वाले बाद में कह दें कि हमने जनसंख्या कम करने और नपुंसक बनाने के लिए वैक्सीन लगा दी। वैक्सीन के इस्तेमाल से पहले ही इसे लेकर अफवाहों का बाजार गर्म हो गया है। इसके साइड इफैक्ट को लेकर तरह-तरह के दावे किये जा रहे हैं।
पीएम मोदी ने पहले ही आगाह किया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन अफवाहों के प्रति लोगों के सतर्क किया है। कोरोना वैक्सीन पर फैलाई जाएंगी अफवाहें, सोशल मीडिया पर बरतें सावधानी। उन्होंने कहा कि यह बिना सोचे-समझे कि मानवता का कितना नुकसान होगा, अनगिनत झूठ फैलाए जा रहे हैं और आगे भी ऐसा होता रहेगा, लेकिन हमें इन अफवाहों का शिकार नहीं होना है।
डीसीजीआई ने अफवाहों को खारिज किया
डीसीजीआई के निदेशक वीजी सोमानी ने ऐसी अफवाहों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि ये एकदम बकवास बात है और इसे जरा भी तवज्जो नहीं देनी चाहिए। सोमानी ने वैक्सीन के साइड इफेक्ट के बारे में कि ये वैक्सीन 110 प्रतिशत सुरक्षित है। अगर सुरक्षा को लेकर जरा भी चिंता होती तो वे इसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं देते। वैक्सीन लेने के बाद हल्का बुखार, सरदर्द, एलर्जी जैसी मामूली दिक्कतें हो सकती है।
एम्स के निदेशक ने ये कहा
इसी बीच अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि भारत में एक वैक्सीन अध्ययन के कई चरणों से होकर गुजरती है, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि ये सुरक्षित है। कई स्तरों पर सुरक्षा को देखा जाता है इसलिए मुझे नहीं लगता कि हमें वैक्सीन की सुरक्षा को लेकर चिंता करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ये नया साल शुरू करने का अच्छा तरीका है। दोनों वैक्सीन भारत में बनी हैं और एक वैक्सीन मेक इन इंडिया है। पहले जहां हमें कई उत्पादों के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता था, अब हमारे पास वैक्सीन हैं जो कि भारत में बन रही हैं।
वैक्सीन के रजिस्ट्रेशन को लेकर फर्जीवाड़े
वैक्सीन का इजाद तो हो गया है, लेकिन अब इसके नाम पर जबर्दस्त फर्जीवाड़ा भी हो रहा है। लोगों के फोन आ रहे हैं कि कोरोना का टीका लगाना है तो रजिस्ट्रेशन करवा लें। फिर रजिस्ट्रेशन के लिए पैसे मांगे जाते हैं। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए रजिस्ट्रेशन के नाम पर हो रही धोखाधड़ी से बचने की अपील की है। स्वास्थ्यकर्मियों को वैक्सीन लगाने का काम अगले साल जनवरी के तीसरे हफ्ते से शुरू होगा और इस वक्त वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन का कोई कार्यक्रम नहीं चल रहा है। वैक्सीन के लिए रजिस्ट्रेशन के नाम पर की जाने वाली कॉल के दौरान किसी भी तरह के विवरण का खुलासा ना करें क्योंकि हो सकता है कि साइबर अपराधी इसका फायदा उठा लें।
कोरोना के नए स्ट्रेन पर वैक्सीन काम नहीं करेगा?
कोरोना का नया स्ट्रेन इसलिए तेजी से फैल रहा है क्योंकि इसने कोरोनावायरस को बढ़ाने वाले प्रोटीन में बदलाव कर लिया है। इसके जरिए यह जानलेवा वायरस शरीर के स्वस्थ सेल्स में घुसपैठ करता है। फाइजर और मॉडर्ना की कोरोना वैक्सीन को अमेरिका और ब्रिटेन में आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिली है। इन वैक्सीन को कोरोना के प्रोटीन की पहचान कर शरीर में उसके खिलाफ ऐंटीबाडी बनाने के रूप में विकसित किया गया है। इससे वायरस शरीर के सेल्स को नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा।
जिन्हें एलर्जी है, उन्हें टीका नहीं लगाया जा सकता है?
यह सच है कि कोरोना वैक्सीन के कुछ विशेष तत्वों के प्रति जिन लोगों को एलर्जी है, उन्हें यह टीका नहीं लगाया जा सकता है। लेकिन, इसकी लिस्ट बहुत छोटी है। कोरोना वैक्सीन में मिले पॉलिथाइलीन ग्लाइकोल जैसे तत्व ही संभवतः इस लिस्ट में आते हैं। दरअसल, कोई वैक्सीन तभी किसी एलर्जी वाले व्यक्ति को नहीं लगाया जाता है जब उस वैक्सीन में कोई ऐसा तत्व मिला हो जिससे उस व्यक्ति को एलर्जी है।
वैक्सीन लगाने पर DNA बदल जाता है?
यह अफवाह इसलिए फैला क्योंकि फाइजर और मॉडर्ना के वैक्सीन जेनेटिक मटीरियल का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं है कि ये मटीरियल डीएनए को बदल रहे हैं। वो आरएनए का उपयोग कर रहे हैं जो शरीर में टिकते नहीं हैं।
वैक्सीन के जरिये लोगों के शरीर में माइक्रोचिप लगाने की उड़ी अफवाह
क्या कोविड-19 बीमारी की वैक्सीन आम लोगों के शरीर में माइक्रोचिप लगाने का बहाना भर है? सोशल मीडिया पर पिछले कुछ समय से ऐसी ही बातें चल रही हैं। फेसबुक पर एक यूजर ने लिखा है, “कोरोना वैक्सीन के नाम पर चिप शरीर में फिट की जायेगी, करवाना मत!”वैक्सीन के जरिये शरीर में माइक्रोचिप लगाने की बात बिल्कुल बेबुनियाद है। हालांकि ये सच है कि वैक्सीन में माइक्रोचिप लगाने की तकनीक वर्तमान में मौजूद है जिसके जरिये वैक्सीन लगवाने वालों के आंकड़ों का हिसाब रखा जा सकता है।
कोरोना वैक्सीन में सुअर की चर्बी है?
यह अफवाह भारतीय दवाओं के लिए तो नहीं है किन्तु अन्य कोरोना वैक्सीन फाइजर, मॉडर्ना और एस्ट्राजेनेका के प्रवक्ताओं ने साफ कर दिया है कि उनके कोविड-19 वैक्सीन में सुअर के मांस से बने उत्पादों का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
वायरस से ज्यादा खतरनाक इसका वैक्सीन है?
ब्राउन यूनिवर्सिटी इमर्जेंसी रूम की डॉक्टर मेगन रैनी ने इस दावे की हवा निकाल दी। उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस से संक्रमित कम-से-कम 1% व्यक्ति की मौत हो रही है। वहीं, 10 से 20 प्रतिशत को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। संक्रमण के शिकार 30% या कुछ ज्यादा लोगों में लंबे समय तक कोविड महामारी के लक्षण रहते हैं। उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों के देखें तो वैक्सीन बहुत ज्यादा सुरक्षित है। हां, बिल्कुल मामूली साइड इफेक्ट हो सकते हैं। यह कहना तो बिल्कुल गलत है कि कोरोना वायरस से ज्यादा खतरनाक इसका टीका है।
कोरोना वायरस से किसी की मौत नहीं हो रही है?
सामान्य समझ कहती है कि किसी एक इलाके में, एक प्रदेश में, यहां तक कि एक देश में शासन-प्रशासन घालमेल कर सकता है, लेकिन दुनिया के सभी देशों शासन तंत्रों के बीच इस तरह का तालमेल कैसे हो सकता है? क्या यह संभव है कि कोरोना वायरस के नाम पर फर्जीवाड़ा हो रहा हो और इसे लेकर दुनियाभर के शासन तंत्रों, अस्पतालों, डॉक्टरों के बीच बनी गुप्त सहमति के बारे में कोई खबर लीक नहीं हो सके? हर देश की सरकार, संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनियाभर के तमाम प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संगठन एक झूठ में कैसे शामिल हो सकते हैं? इस फर्जीवाड़े की रिपोर्ट नहीं आने का मतलब है कि इस साजिश में मीडिया संगठन भी शामिल होंगे? सोशल मीडिया यूज करने वाली प्रतिष्ठित हस्तियां भी इनसे मिली हुई होंगी?
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