20 टन के क्वाजराईट और 12 टन के क्यालसाईट नामक शिला की विधिपूर्वक उत्खनन शुरू
जानें धार्मिक दृष्टिष्कोण से क्यों बेहद महत्वपूर्ण हैं गंडकी नदी और शालिग्राम ..ख़बरगली विशेष
अयोध्या (Ajay saxena@ khabargali)
अयोध्या में बन रहे भगवान राम का मंदिर का प्रथम तल अक्टूबर 2023 में बनकर तैयार हो जाएगा और जनवरी 2024 माह में रामलला अपने दिव्य-भव्य मंदिर में विराजमान हो जाएंगे। ऐसे में हर राम भक्त सिर्फ इसी बात को जानना चाहता है कि मंदिर में भगवान रामलला के जिस रूप को विराजमान कराया जाएगा वो मूर्ति कैसी होगी? अब इस बात का खुलासा हो गया । नेपाल की काली गंडकी नदी में शालिग्राम शिलाओं को ढूंढ़ा जा रहा था अब उस शिला की पहचान हो गई है। इसी शालिग्राम शिला से रामलला की श्री प्रतिमा बनेगी।
पहले जानें काली गंडकी नदी को
काली गंडकी नदी को नेपाल में सालिग्रामि या सालग्रामी और मैदानों मे नारायणी और सप्तगण्डकी कहते हैं। यूनानी के भूगोलवेत्ताओं की कोंडोचेट्स तथा महाकाव्यों में उल्लिखित सदानीरा और 'नारायणी' नदी भी यही है। यह नदी हिमालय से निकलकर दक्षिण-पश्चिम बहती हुई भारत में प्रवेश करती है। त्रिवेणी पर्वत के पहले इसमें एक सहायक नदी त्रिशूलगंगा मिलती है। यह नदी काफी दूर तक उत्तर प्रदेश तथा बिहार राज्यों के बीच सीमा निर्धारित करती है। उत्तर प्रदेश में यह नदी महराजगंज और कुशीनगर जिलों से होकर बहती है। बिहार में यह चंपारन, सारन और मुजफ्फरपुर जिलों से होकर बहती हुई 192 मील के मार्ग के बाद पटना के संमुख गंगा में मिल जाती है। इस नदी की कुल लम्बाई लगभग 1310 किलोमीटर है। हिमालय से निकली पवित्र गंडक नदी के गर्भ में जीवित शालिग्राम पाए जाते हैं । इस पत्थर को साक्षात विष्णु का स्वरूप माना गया है।
नेपाल में शिला की पहचान कर उत्खनन शुरू
नेपाल में काली गंडकी नदी क्षेत्र के बेनी से उत्तर गलेश्वर धाम तक लगभग तीन किलोमीटर क्षेत्र में इन शालिग्राम पत्थरों की खोज जारी थी। इसकी अगुआई नेपाल के पाषाण अध्ययन, उत्खनन के सदस्य कुलराज चालीसे कर रहे थे। ताजा जानकारी के अनुसार 20 टन के क्वाजराईट और 12 टन के क्यालसाईट नामक शिला की पहचान कर उसकी विधिपूर्वक उत्खनन की तैयारी शुरू कर दी गई है। यह शिला जनकपुर स्थित जानकी मंदिर से भारत भेजी जाएगी।
नेपाल के पूर्व मंत्रिमंडल की ओर से यूपी सरकार को चिट्ठी लिख कर अयोध्या में बन रहे भगवान श्रीराम की मूर्ति के लिए शालिग्राम पत्थर मुहैया कराने की मंशा जताई थी।
जानें किसे कहते हैं शालिग्राम
यह शिवलिंग से थोड़ा भिन्न होता है। मुख्य शालिग्राम इस तरह का होता है जैसे इस पर ऐसी धारियां बनी होती हैं जैसे जनेऊ पहनी हो। पूर्ण, काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और ज्योतियुक्त शालिग्राम का पाया जाना तो और भी दुर्लभ है। इस दुर्लभ काले पत्थर पर चक्र, गदा आदि के प्राकृतिक निशान होते हैं। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ, काली गण्डकी नदी के तट पर पाया जाता है। 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं जिनमें से 24 प्रकार को विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना गया है। माना जाता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं।
धार्मिक दृष्टिष्कोण से बेहद महत्वपूर्ण हैं शालिग्राम
जिस तरह शिवजी का विग्रह या निराकार रूप शिवलिंग है उसी तरह श्री हरि विष्णुजी का विग्रह रूप शालिग्राम है। स्कंदपुराण के कार्तिक महात्म्य में शिवजी ने भी शालिग्राम की स्तुति की है। विष्णु की मूर्ति से कहीं ज्यादा उत्तम है शालिग्राम की पूजा करना। शिवपुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने खुद ही गंडकी नदी में अपना वास बताते हुए कहा है कि नदी में रहने वाले कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर उस पाषाण में मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे और इसी कारण इस पत्थर को मेरा रूप मान कर उसकी पूजा की जाएगी।
शिवपुराण के मुताबिक दैत्यों के राजा शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। तुलसी के पतिव्रत के कारण देवता भी उसे हरने में असमर्थ थे। तब भगवान विष्णु ने छल से तुलसी की पतिव्रत को भंग कर दिया। जब यह बात तुलसी को पता चली तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। भगवान विष्णु ने तुलसी का श्राप स्वीकार कर लिया और कहा कि तुम धरती पर गंडकी नदी तथा तुलसी के पौधे के रूप में सदा मौजूद रहोगी। नारायणी नदी की महिमा अपरंपार है। यहां से निकलने वाले पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि शालिग्राम शिला के स्पर्शमात्र से करोड़ों जन्मों के पाप का नाश हो जाता है।
मूर्ति की ऊंचाई 8.7 फीट ऊंची होगी
गर्भगृह में रामलला की अचल मूर्ति स्थापित होनी है। इसके लिए सीबीआरआई रुड़की द्वारा किया गया पहला ट्रायल सफल हो चुका है। इंजीनियरों के अनुसार यदि मूर्ति की ऊंचाई 8.7 फीट ऊंची होगी तो हर रामनवमी को दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें रामलला के मस्तक को अभिषेक करेंगी।
श्याम रंग का स्वरूप होगा
राम मंदिर में विराजमान होने वाली रामलला की जो मूर्ति होगी वो अपने में अद्भुत होगी। इस मूर्ति का जो स्वरूप होगा, वह श्याम रंग का स्वरूप होगा। श्याम रंग एक ऐसा रंग है जिसमें लिखा है कि निलांबुज श्यामल कोमलंगम निलांबुज कोमलंगम। जो लिखा है यह ऐसा आकर्षक रूप होता है जो ना तो काला होता है और ना ही सफेद होता है। उसको आसमानी रंग कहते हैं। निलांबुज का मतलब, नीला आकाश, इसलिए जो कल्पना की जा रही है भगवान का जो वह रूप होगा वो निलांबुज होगा। बताते चलें कि परकोटा सहित आठ एकड़ में पूरा मंदिर बनेगा। दिसंबर 2023 तक राममंदिर का भूतल तैयार करने का लक्ष्य है। 21 दिसंबर से मकर संक्रांति 2024 के बीच जो शुुभ मुहूर्त विद्वानों द्वारा सुझाया जाएगा उसी पर रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।
अनेकों श्रद्धालुओं ने गर्भगृह में डाला सोना-चांदी और हीरा का सिक्का
मंदिर के गर्भ ग्रह स्थल पर मोदी ने सोने के सिक्के की शुरुआत की थी। जिसके बाद अनेकों श्रद्धालुओं ने भगवान राम लला के गर्भ ग्रह के नीचे अपनी श्रद्धा निवेदित की है। इस दरमियान तमाम धातु सोना, चांदी, हीरा कीमती धातु भगवान रामलला के निर्माणाधीन मंदिर के गर्भगृह में डाली गई हैं।
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