रायपुर। लोकायुक्त की सिफारिशों को डॉ रमन सिंह की सरकार कितनी गंभीरता से लेती थी. इसका उदाहरण सुपर कॉप के नाम से मशहूर निलंबित आईपीएस मुकेश गुप्ता के प्रकरण से जोड़कर देखा जा सकता है. लोकायुक्त 30 अक्टूबर 2017 को मुख्यमंत्री को सिफारिश करते हैं और मुख्यमंत्री उस फाईल को धूल खाने के लिए छोड़ देते हैं. यह प्रकरण इसलिए गंभीर है क्योंकि पूरे देश में लोकायुक्त के पद को मजबूत करने के लिए अन्ना हजारे का आंदोलन आप भूले नहीं होंगे. उस आंदोलन से दिल्ली की सरकार अरविंद केजरीवाल की पार्टी आप का उदय हो गया था. लेकिन यह छत्तीसगढ़ है जनाब, यहां लोकायुक्त की सिफारिश रद्दी की टोकरी में डाल दी जाती है. आइए हम आपको बताते हैं कि लोकायुक्त ने सुपर कॉप मुकेश गुप्ता के संदर्भ में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को क्या कुछ कहा था |
तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में साफ-साफ लिखा है कि
“आईपीएस मुकेश गुप्ता के खिलाफ मिली शिकायतें इतनी गंभीर हैं कि इसकी जांच देश की सर्वोच्च एजेंसी मसलन प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), सीबीआई (केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो) और एनआईए ( राष्ट्रीय जांच एजेंसी) से कराई जानी चाहिए। दिनांक 30 अक्टूबर 2017 को अपने हस्ताक्षर से जारी की गई विस्तृत रिपोर्ट में लोकायुक्त जस्टिस शंभूनाथ श्रीवास्तव ने लिखा है कि मुकेश गुप्ता स्वयं पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारी हैं। अत: पुलिस विभाग के किसी नीचे अधिकारी के द्वारा उनके अवचारों की जांच निष्पक्ष रूप से नहीं हो सकती है। शायद इसलिए चूंकि लोक आयोग एक स्वतंत्र संस्था है, श्री मुकेश गुप्ता लोक आयोग से जांच नहीं कराना चाहते, इसलिए वे अपने विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों से जांच के आधार पर निष्पक्ष जांच से भाग रहे हैं। लोकायुक्त ने अपनी रिपोर्ट में ये भी कहा कि इस प्रकरण में लोक आयोग मेरिट पर जांच पूरी नहीं कर पाया है, परंतु छत्तीसगढ़ लोक आयोग अधिनियम 2002 की धारा 2 (ख) (3) के अनुसार मुख्यमंत्री सक्षम अधिकारी हैं। अत: सक्षम अधिकारी को प्रकरण में उचित कार्यवाही करने हेतु संस्तुति की जाती है।“ इससे साफ है कि लोकायुक्त ने आईपीएस मुकेश गुप्ता से जुड़े प्रकरणों को काफी गंभीर माना है और इसकी जांच के लिए सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को उचित कार्यवाही करने की सलाह दी थी।
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