
सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस
छात्र राजनीति से शुरुआत, फिर बने देश में लेफ्ट का सबसे बड़ा चेहरा... जानें कौन थे कॉमरेड येचुरी
नई दिल्ली (khabargali) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के महासचिव सीताराम येचुरी का बृहस्पतिवार को यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। वह लंबे समय से बीमार थे। येचुरी 72 वर्ष के थे। उनकी हालत पिछले कुछ दिन से गंभीर बनी हुई थी और उन्हें कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर रखा गया था। येचुरी का निधन अपराह्न तीन बजकर पांच मिनट पर हुआ।
सूत्रों ने बताया कि उनके फेफड़ों में फंगल संक्रमण था। एम्स ने कहा कि येचुरी के परिवार ने शिक्षण और शोध उद्देश्यों के लिए उनका पार्थिव शरीर अस्पताल को दान कर दिया है। जिससे उनकी विरासत उनके राजनीतिक योगदान से परे हो जाएगी । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने श्री येचुरी के निधन पर शोक जताया और कहा कि वह वामपंथियों में एक प्रभावशाली व्यक्तित्व थे तथा दलगत राजनीति से ऊपर सभी से जुड़ने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते थे।
सीताराम येचुरी के बारे में जानिए
सीताराम येचुरी का जन्म 12 अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1970 के दशक में की थी। आपातकाल में जेएनयू में रहते हुए उन्हें गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद वह लगातार तीन बार जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। 1984 में उनको सीपीआई एम की केंद्रीय समिति में शामिल किया गया था। उन्होंने मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में विभिन्न पदों पर कार्य किया और 2015 में पार्टी के महासचिव बने। उन्होंने संसद में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिसमें राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य करना शामिल है। उन्होंने विभिन्न सामाजिक और आर्थिक मुद्दों पर सक्रिय रूप से काम किया और एक प्रभावशाली नेता के रूप में जाने जाते रहे।
उन्हे 2016 में राज्यसभा में सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हें कांग्रेस नेता एवं लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के राजनीतिक मार्गदर्शकों से एक माना जाता था। येचुरी की 8 अगस्त को दिल्ली में मोतियाबिंद की सर्जरी हुई थी। इसी दिन पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का निधन हो गया था। थोड़े ही समय में बुद्धदेव भट्टाचार्य और येचुरी की मृत्यु ने भारत के वामपंथी राजनीतिक हलकों में एक बड़ा शून्य पैदा कर दिया है। इसके साथ ही एक युग का अंत हो गया।
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