
दिल्ली सरकार को अफसरों का ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार
इस्तीफा नहीं देते, तो शिंदे सरकार के विधायक अयोग्य साबित हो सकते थे - सीजेआई
नई दिल्ली (khabargali) दिल्ली सरकार बनाम एलजी और महाराष्ट्र में विधायकों की अयोग्यता पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बड़े फैसले लिए हैं।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली में नौकरशाही पर नियंत्रण के मामले में सर्व सम्मति से ऐतिहासिक फैसला दिया है। आप नीत सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सरकार के प्रशासनिक अधिकारियों पर दिल्ली की चुनी हुई सरकार का नियंत्रण है और नौकरशाही के ऊपर उसी का नियंत्रण रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी साफ किया कि कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि के विषय को छोड़कर सेवाओं के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा को विधायी अधिकार होगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि लेफ्टिनेंट गवर्नर पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के विषय को छोड़कर दिल्ली सरकार के फैसलों को मानने के लिए बाध्य हैं।
केजरीवाल बोले, जनतंत्र की जीत हुई
आप पार्टी ने केंद्र-दिल्ली सेवा विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना करते हुए, इसे दिल्ली सरकार और जनतंत्र की बड़ी जीत बताया। सीएम अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा, दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए माननीय सुप्रीम कोर्ट का तहे दिल से शुक्रिया। इस निर्णय से दिल्ली के विकास की गति कई गुना बढ़ेगी। जनतंत्र की जीत हुई।
वहीं सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र में 16 विधायकों के अयोग्य घोषित किए जाने के मामले को सात बेंच की संविधान पीठ को सौंप दिया है। फिलहाल एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों के भविष्य पर फैसला टल गया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को सात जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। अब बड़ी बेंच इस मामले पर फैसला सुनाएगी। सीजेआई ने कहा, अगर उद्धव ठाकरे उस समय इस्तीफा नहीं देते तो आज स्थितियां अलग होतीं और शिंदे सरकार के विधायक अयोग्य साबित हो सकते थे। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद पिछले आठ महीने से एकनाथ शिंदे सरकार पर जो तलवार लटक रही थी, उसे राहत मिली है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि तब महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने जून 2022 में महाराष्ट्र विधानसभा में फ्लोर टेस्ट का आदेश नियम के तहत नहीं दिया था। विधायकों की अयोग्यता वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट में पिछले क़रीब 10 महीने से सुनवाई चल रही थी। अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की भूमिका पर भी बड़ा सवाल उठाया है, उन्होंने भगत सिंह कोश्यारी के फैसले को भी गलत करार दिया है।
दिल्ली सरकार बनाम एलजी को लेकर सुप्रीम अदालत के फैसले में 10 अहम टिप्पणियां
1. शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप में प्रशासन की वास्तविक शक्ति निर्वाचित सरकार के पास होनी चाहिए।
2. निर्वाचित सरकार को प्रशासन चलाने की शक्तियां मिलनी चाहिए अगर ऐसा नहीं होता तो यह संघीय ढांचे के लिए बहुत बड़ा नुकसान है।
3. उपराज्यपाल प्रदेश की सरकार के विधायी दायरे से जुड़े मामलों के संबंध में दिल्ली सरकार के मंत्रियों की सलाह मानने तथा उनके साथ सहयोग करने के लिए बाध्य हैं।
4. शासन के लोकतांत्रिक स्वरूप में प्रशासन की वास्तविक शक्ति निर्वाचित सरकार के पास होनी चाहिए। अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नहीं रहता तो फिर ट्रिपल चेन जवाबदेही की पूरी नही होती।
5. प्रशासनिक मुद्दों में केंद्र की प्रधानता संघीय व्यवस्था, प्रतिनिधि लोकतंत्र के सिद्धांत को खत्म कर देगी।
6. अगर अधिकारियों को मंत्रियों को रिपोर्ट करने से रोका जाता है तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ता है ।
7. अगर अधिकारी मंत्रियों को रिपोर्ट करना बंद कर देंगे और उनके निर्देशों से बंधे हुए नहीं रहेंगे तो सामुदायिक उत्तरदायित्व पर भी असर पड़ेगा।
8. अगर सेवाओं को विधायी, कार्यकारी अधिकार क्षेत्र से बाहर किया जाता है तो मंत्रियों को सरकारी अधिकारियों पर नियंत्रण से बाहर कर दिया जाएगा।
9. लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के अलावा अन्य सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है।
10. लेफ्टिनेंट गवर्नर पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के विषय को छोड़कर दिल्ली सरकार के फैसलों को मानने के लिए बाध्य।
महाराष्ट्र मामले में सर्वोच्च अदालत की 4 अहम टिप्पणियां
1. उद्धव फिर से सीएम नहीं बनाए जा सकते, लेकिन राज्यपाल का फ़्लोर टेस्ट कराना ग़लत था।
2. उद्धव ठाकरे को फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट के बिना ही पद से अपनी मर्जी से इस्तीफ़ा दे दिया था। हम उद्धव ठाकरे के इस्तीफे को खारिज नहीं कर सकते हैं इसलिए महाविकास अघाड़ी सरकार को सत्ता में वापस नहीं लाया जा सकता।
3. शिंदे गुट के भरत गोगावाले को शिवसेना का सचेतक नियुक्त करने का विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर का फैसला अवैध था। स्पीकर को राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए। विधानसभा अध्यक्ष ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि सुनील प्रभु या भरत गोगावाले में से राजनीतिक दल का अधिकृत सचेतक कौन है।
4. न्यायालय ने शिवसेना विधायकों के एक धड़े के उस प्रस्ताव को मानने के लिए राज्यपाल को गलत ठहराया जिसमें कहा गया कि उद्धव ठाकरे के पास बहुमत नहीं रहा। राज्यपाल के पास ऐसा कोई संचार नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते हैं।
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