उर्मिला देवी उर्मि की भक्ति रचना
ख़बरगली @ साहित्य डेस्क
राम लला जी....
खेलैं भवन में रामलला जी ।
चहूं दिस गूंजे है किलकारी ।।
पल भर पिता की गोद बिराजैं।
फिर जननी संग दिखैं सुखकारी ।।
धन्य हुई है नगरी अयोध्या ।
जहां प्रगटे जग मंगलकारी ।।
दर्शन कर निज भाग सराहैं ।
त्रिलोकी के मुदित नर नारी।।
ज्ञानार्जन को गुरुकुल पधारैं ।
गुरुसेवा में रहें ज्यों पुजारी ।।
शिष्यों संग नियमों को पालें ।
जो हैं त्रिलोकी के पालनहारी ।।
गुरु आज्ञा से प्राप्त करें राघव।
जीवन -संगिनी जनक -दुलारी ।।
कौशल्या - सुत दशरथ- नंदन ।
रघुकुल- शिरोमणि अवध -बिहारी ।।
पितु आज्ञा से छोड़ी अयोध्या ।
-वैभव तज बने वन- विहारी ।।
चित्रकूट दंडक विंध्याद्रि को ।
महिमा देवैं रघुवर मोदकारी।।
वन - ऋषियों के यज्ञ सँवारैं ।
दुष्ट - दलन, संतन - हितकारी ।।
जन मंगल हेतु लंका विजय करैं ।
धर्म रक्षण को,दैत्य- सेन संहारी ।। .
धर्मारर्थ अरु काम मोक्ष भी ।
रामकृपा से मिलैं फल चारी ।
दुखियों के दुख हर्ता कहाए ।
रघुनंदन जी भव भय हारी ।।
पुरुषोत्तम के दिव्य दरस पर ।
सब सुख निछावर, तन मन वारी ।
- उर्मिला देवी उर्मि , रायपुर छत्तीसगढ भारत
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