पुलिस महकमे के लिए सांसदों और विधायकों को सेल्यूट करना हुआ अनिवार्य..! PCC चीफ ने सरकार पर बोला हमला, नई व्यवस्था के गिनाये दुष्परिणाम

Saluting MPs and MLAs has become mandatory for the police department..! PCC chief attacked the government, listed the ill-effects of the new system, Khabargali

भोपाल (खबरगली) एमपी के डीजीपी कैलाश मकवाना ने एक आदेश जारी किया है, जिसमें पुलिस अफसरों और कर्मचारियों को सांसदों और विधायकों को सैल्यूट करने के लिए कहा गया है। इस मामले में पीसीसी चीफ जीतू पटवारी ने सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने एक वीडियो जारी कर सरकार से कुछ सवाल पूछे हैं और इस व्यवस्था के दुष्परिणाम भी बताये हैं।

पुलिस महानिदेशक का यह है आदेश

डीजीपी कैलाश मकवाना ने एक आदेश जारी किया है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि किसी भी जनप्रतिनिधि के साथ शिष्ट व्यवहार में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। चाहे वह कोई सरकारी आयोजन हो, सामान्य मुलाकात हो या थाने का दौरा..वर्दीधारी पुलिसकर्मियों को सांसदों और विधायकों को सम्मानपूर्वक सैल्यूट करना होगा। इसके अलावा, यदि कोई सांसद या विधायक पुलिस अधिकारी के कार्यालय में मिलने आते हैं तो अधिकारियों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर उनसे मुलाकात कर उनकी बात सुननी होगी और उनकी समस्याओं का विधिसम्मत समाधान करना होगा।

आदेश में यह भी कहा गया है कि यदि कोई जनप्रतिनिधि किसी जनसमस्या को लेकर फोन पर संपर्क करता है तो संबंधित पुलिस अधिकारी को उनकी बात ध्यानपूर्वक सुननी होगी और शिष्टतापूर्वक जवाब देना होगा। सांसदों और विधायकों द्वारा लिखे गए पत्रों का जवाब समयबद्ध तरीके से और अधिकारी के हस्ताक्षर के साथ देना अनिवार्य होगा।

जीतू पटवारी ने आदेश को “लोकतंत्र पर हमला और वर्दी का अपमान” करार दिया

एक दिन पहले ही जारी इस आदेश का कांग्रेस ने विरोध किया है। जीतू पटवारी ने आदेश को “लोकतंत्र पर हमला और वर्दी का अपमान” करार दिया है। उन्होंने कहा कि “जिस समय राज्य की कानून व्यवस्था रसातल में पहुंच चुकी हो, पुलिस खुद अपराधियों के निशाने पर हो, ऐसे समय में राज्य सरकार पुलिस को न्याय दिलाने की बजाय सत्ता के प्रतीकों के सामने झुकने का फरमान सुना रही है।” उन्होंने इस आदेश का विरोध करते हुए इसे वापस लेने की मांग की है। राज्य सरकार पुलिस को न्याय दिलाने की बजाय सत्ता के प्रतीकों के सामने झुकने का फरमान सुना रही है। यह आदेश जनतंत्र के बुनियादी सिद्धांतों और संविधान की आत्मा ‘जनता सर्वोच्च है’ का भी अपमान है।

पुलिस का मनोबल पहले ही कमजोर

 सरकार के निर्णय से असहमति जताते हुए पीसीसी चीफ ने कहा कि पुलिस का मनोबल पहले ही कमजोर है। वह एक ओर अपराधियों से लड़ रही है, तो दूसरी तरफ भाजपा नेताओं के दबाव से! अब यह आदेश उन्हें और भी कमजोर, झुका हुआ और भयभीत बना सकता है। पुलिस की निडर और निष्पक्ष कार्यप्रणाली में सत्ता दल के नेताओं का दखल बढ़ सकता है!

पटवारी ने सरकार से पूछे ये सवाल

पुलिस की प्राथमिकता अपराध रोकना है या नेताओं को सलाम ठोकना? जब किसी मामले में विधायक थाने आकर दबाव बनाएंगे और पहले सलामी लेंगे, तब पुलिस स्वतंत्र जांच कैसे करेगी? क्या लॉ एंड ऑर्डर की स्थितियों में नेतागिरी के लिए पहुंचने वाले सांसदों को सैल्यूट देने के लिए पुलिस को ट्रेनिंग दी जाएगी? जब कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने की स्थिति बनेगी, तब क्या पुलिस जनता को संभालेगी या नेताओं को सम्मान देगी? पब्लिक डोमेन में आने वाली खबरें बताती हैं कि माफिया सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण में ही गैर-कानूनी कार्य करते हैं! सरकार के इस निर्णय से क्या उनके हौसले बुलंद नहीं होंगे?

पीसीसी चीफ ने इस व्यवस्था के दुष्परिणामों की जानकारी दी यह राजनीतिक दबाव का वैधानिककरण है, क्योंकि अब माफिया नेताओं के जरिए पुलिस पर ज्यादा दबाव बना सकेंगे। अब जनता का भरोसा ज्यादा डगमगाएगा और पुलिस की निष्पक्षता पर भी लोगों को शक होगा। सुरक्षा पंक्ति का आंतरिक अनुशासन टूटेगा और पुलिस विभाग में ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों को भी “झुकना” सिखाया जाएगा। इस निर्णय से अफसरशाही का मनोबल टूटेगा, इसकी वजह है वरिष्ठ अधिकारियों की गरिमा पद से नहीं, सच्चे कर्तव्य से बनती है, जो इस आदेश से धूमिल होगी।