सोनिया गांधी फिर बनीं खेवनहार, बनीं कार्यकारी अध्यक्ष

sonia gandhi

नए अध्यक्ष के चयन तक दोबारा संभालेंगी यह पद

लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद 25 मई को राहुल ने दे दिया था इस्तीफा

1998 से 2017 तक सोनिया कांग्रेस की अध्यक्ष थीं

नई दिल्ली(khabargali) इस्तीफा वापस लेने का कांग्रेस नेताओं का इसरार मानने से राहुल गांधी के साफ इनकार के बाद पार्टी की कार्य समिति (सीडब्ल्यूसी) ने शनिवार को सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया। पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल और मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने संवाददाताओं से कहा कि राहुल गांधी द्वारा पार्टी नेताओं का आग्रह 'विनम्रता' से अस्वीकार किए जाने के बाद सीडब्ल्यूसी ने सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया। वह नए अध्यक्ष के चुनाव तक यह जिम्मेदारी निभाएंगी।  इस फैसले से साफ संकेत हैं कि कांग्रेस अभी भी गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता को पार्टी की कमान देने को तैयार नहीं हैं. कांग्रेस ने ऐसे समय में सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी है जब पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौरे में है.


तीन प्रस्ताव भी पारित किए

सीडब्ल्यूसी की दो बार हुई बैठक में तीन प्रस्ताव भी पारित किए.  एक प्रस्ताव में बतौर अध्यक्ष राहुल गांधी के योगदान की सराहना की गई है, दूसरे में सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किए जाने तथा तीसरे प्रस्ताव में जम्मू-कश्मीर की स्थिति का उल्लेख है.  

19 सालों तक अध्यक्ष रहीं

सोनिया गांधी 14 मार्च, 1998 से 16 दिसंबर, 2017 तक कांग्रेस अध्यक्ष रह चुकी हैं और उनके अध्यक्ष रहते 2004 से 2014 तक पार्टी केंद्र में सत्तासीन रही.

सोनिया इसलिए जरूरी

सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनाने का कदम युवा और अनुभवी नेताओं के बीच सामंजस्य बनाते हुए पार्टी को आगे ले जाने की रणनीति के तहत उठाया गया है. माना जा रहा है कि राहुल के नेतृत्व में काम करने वाले युवा नेताओं को सोनिया के तहत काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी तथा अनुभवी नेताओं का तो सोनिया के नेतृत्व में काम करने का लंबा अनुभव है. साथ ही अब राहुल पार्टी संगठन में बदलाव के अपने कामों को सोनिया के माध्यम से जारी रख पाएंगे, जिसका पार्टी के अंदर एक गुट विरोध कर सकता था.

राहुल का 20 महीने का सफर, नहीं मिला सत्ता का शिखर

परिवार की सफल और समृद्ध विरासत, बड़ा संगठन, सिपहसालारों की फौज और जीतोड़ मेहनत भी बतौर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को राजनीति के उस मुकाम तक नहीं पहुंचा सकी जहां उनसे पहले गांधी-नेहरू परिवार के कई लोग न सिर्फ पहुंचे, बल्कि लंबे समय तक बने रहे. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उनके करीब 20 महीने के सफर में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनावी जीत के तौर पर बड़ी सफलताएं मिली, लेकिन इस साल के लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार उनकी नाकामी की बड़ी इबारत लिख गया और इसी के साथ पार्टी के मुखिया के तौर पर उनकी पारी का पटाक्षेप भी हो गया.
अध्यक्ष रहते हुए गांधी ने पार्टी की कार्य संस्कृति में बदलाव का प्रयास किया. उन्होंने टिकट आवंटन, संगठन की कार्यशैली में पारदर्शिता लाने के लिए कदम उठाया तथा संगठन में चुनाव कराने की परंपरा शुरू की.  गुजरात के चुनाव में कांग्रेस भले ही मामूली अंतर से हार गई, लेकिन कई सियासी जानकारों ने गांधी के नेतृत्व और पार्टी की चुनावी रणनीति की तारीफ की.