सत्ता और प्रतिष्ठा का यक्ष प्रश्न

The Yaksh question of power and prestige, an analysis on the current politics of Chhattisgarh from the pen of senior journalist Ravindra Ginnore, Khabargali

छत्तीसगढ़ की वर्तमान राजनीति पर एक विश्लेषण वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र गिन्नौरे की कलम से

ख़बरगली (साहित्य डेस्क)

विधानसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आ रहा है वैसै वैसे चुनावी सर्वेक्षण सरगर्म हो चले हैं। कांग्रेस सरकार का इंटरनल सर्वेक्षण को जितना भयभीत कर रहा हैं उतनी ही भाजपा अपने जीत के आंकड़ों में उलझी हुई है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा सरकार को अप्रत्याशित रूप से पराजित किया था। छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीट में से कांग्रेस ने 69 सीटों पर भाजपा हराया और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बागडोर सम्हाले भूपेश बघेल मुख्यमंत्री बने। दो उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीत हासिल की। पांच साल तक चली भूपेश बघेल की सरकार आखिर अपने सर्वेक्षण में पिछड़ क्यों गई।

फिर भी छत्तीसगढ़ में फिर से सत्ता में काबिज होने के लिए कांग्रेस उस रणनीति पर चल रही है जिसे भाजपा ने नज़र अंदाज़ कर दिया था। लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीतकर आत्ममुग्ध भाजपा की रमन सरकार बुरी तरह पराजित हुई ।

2018 के विधानसभा चुनाव के पहले छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी 'जनता कांग्रेस' बना ली थी। जोगी के उपर कांग्रेसी नेता भितरघात का आरोप हर चुनाव में लगाते रहे थे। छत्तीसगढ़ में 2018 के चुनाव में एक लहर सी चली जिसमें भाजपा से सत्ता कांग्रेस के हाथ चली गई।पिछला चुनाव कांग्रेस ने जीता था या फिर जनता ने भाजपा से नाराज़ हो उसे हराया था यह यक्ष प्रश्न आज फिर उठ खड़ा हुआ है।

2018 के चुनाव में जीतकर आये कांग्रेसी विधायकों का कार्यकाल ही उनका भविष्य तय करेगा जो आसन्न विधानसभा चुनाव परिणाम में परिलक्षित होगा। हाल ही के चुनावी सर्वेक्षण में कांग्रेस सरकार के सैंतीस विधायक और पांच मंत्रियों के ऊपर हार का ख़तरा मंडराता दिख रहा है। कांग्रेस सरकार के पांच मंत्री अपने क्षेत्र में कमजोर हुए जो दूसरे जिलों के प्रभारी भी रहे हैं।

कांग्रेस के इंटरनल सर्वेक्षण से डराया जा रहा है या सचेत कर रहा है कि वे चुनाव के पहले अपनी छबि सुधार लें। चुनाव के मद्देनजर सरकार ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया है। छत्तीसगढ़ में चल रही जनहित की योजनाओं के क्रियान्वयन में तेजी दिखाई है। कांग्रेस अपने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लेकर चुनाव लड़ेंगी वहीं भाजपा में रमनसिंह के अलावा कोई चेहरा नज़र नहीं आ रहा है।

'चांवल वाले बाबा' के नाम से चर्चित हुए रमनसिंह से छत्तीसगढ़ का जनमानस आखिर क्यों खफा हुआ जिसके चलते भाजपा की शर्मनाक हार हुई थी, लोगों की नाराज़गी को इस बार परखा जाना चाहिए।

चुनावी सर्वेक्षण सरगर्म हो चले हैं। कांग्रेस अपनी सत्ता कायम रखने के लिए नये सिरे से उन चेहरों की तलाश में जुटीं है जो जीत हासिल कर सके। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस फिर से अपनी जीत के आशान्वित है इस लिए ही कांग्रेस की टिकट के लिए दावेदारों की संख्या भी बढ़ गई है। कांग्रेस के इंटरनल सर्वेक्षण में जहां हार की आशंका जताई जा रही है उनका दुबारा टिकिट पाना आसान नहीं दिखता। अप्रत्याशित रूप से जीते कांग्रेस प्रत्याशियों के रिपोर्ट कार्ड को खंगाला जा रहा है। इस बार युवा चेहरों के ओबीसी और महिलाओं को सामने लाकर सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखने की तर्ज पर चलती दिख रही है।

भाजपा भी अपने प्रत्याशियों की हार से सबक लेते हुए आमूलचूल फेरबदल करती दिख रही है। ढाई हजार रुपए क्विंटल में धान खरीदी और बिजली बिल हाफ का वायदा के साथ सत्ता में काबिज हुई कांग्रेस ने पूरी तरह निभाया है। छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा को पुनर्स्थापित करने में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पहल करके अपने साथ कांग्रेस को स्थापित करने का काम किया है।

विधानसभा चुनाव में इस बार कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। अजीत जोगी की जनता कांग्रेस, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और बसपा के समर्थक बिखर गए हैं। भाजपा अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए ऐड़ी चोटी का ज़ोर लगा रही है तो कांग्रेस सत्ता में कायम रहने के लिए अपनी रणनीति पर काम कर रहे है।

- रविन्द्र गिन्नौरे

ravindraginnore58@gmail.com

(ये लेखक के निजी विचार हैं )

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