बड़ी खबर: हेट स्पीच पर SC सख्त, मीडिया को लगाई फटकार

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कहा- "टीवी एंकरों की बड़ी ज़िम्मेदारी, पूछा- केंद्र चुप क्यों है...?"

नई दिल्‍ली (khabargali) सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को लेकर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए मीडिया पर सवाल उठाए हैं. हेट स्पीच को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस के एम जोसेफ ने बड़ी टिप्पणियां की हैं. कोर्ट ने कहा, " सबसे ज्यादा हेट स्पीच मीडिया और सोशल मीडिया पर है, हमारा देश किधर जा रहा है ?टीवी एंकरों की बड़ी जिम्मेदारी है. टीवी एंकर सवाल पूछ कर गेस्ट को टाइम तक नहीं देते, ऐसे माहौल में केंद्र चुप क्यों है ? एक सख्त नियामक तंत्र स्थापित करने की जरूरत है." सु्प्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से दो सप्‍ताह में जवाब मांगा है. मामले में अब 23 नवंबर को सुनवाई होगी.

जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा, "राजनीतिक दल इससे पूंजी बनाते हैं और टीवी चैनल एक मंच के रूप में काम कर रहे हैं. सबसे ज्यादा नफरत भरे भाषण टीवी, सोशल मीडिया पर हो रहे हैं. दुर्भाग्य से हमारे पास टीवी के संबंध में कोई नियामक तंत्र नहीं है. इंग्लैंड में एक टीवी चैनल पर भारी जुर्माना लगाया गया था. दुर्भाग्य से वह प्रणाली भारत में नहीं है. एंकरों को यह बताना चाहिए कि अगर आप गलत करते हैं तो परिणाम भुगतने होंगे. समस्या तब होती है जब आप किसी कार्यक्रम के दौरान किसी व्यक्ति को कुचलते हैं. जब आप टीवी चालू करते हैं तो हमें यही मिलता है. हम इससे जुड़ जाते हैं. हर कोई इस गणतंत्र का है. यह राजनेता हैं जो लाभ उठा रहे हैं. लोकतंत्र के स्तंभ स्वतंत्र माने जाते हैं. टीवी चैनलों को इन सबका शिकार नहीं होना चाहिए."

जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि आप मेहमानों को बुलाते हैं और उनकी आलोचना करते है. हम किसी खास एंकर के नहीं बल्कि आम चलन के खिलाफ हैं, एक सिस्टम होना चाहिए. पैनल डिस्कशन और डिबेट्स, इंटरव्यू को देखें. अगर एंकर को समय का एक बड़ा हिस्सा लेना है तो कुछ तरीका निर्धारित करें. सवाल लंबे होते हैं जो व्यक्ति उत्तर देता है उसे समय नहीं दिया जाता. गेस्ट को शायद ही कोई समय मिलता है. केंद्र चुप क्यों है आगे क्यों नहीं आता? राज्य को एक संस्था के रूप में जीवित रहना चाहिए. केंद्र को पहल करनी चाहिए. एक सख्त नियामक तंत्र स्थापित करें."

इससे पहले चुनाव के दौरान हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग का हलफनामा दाखिल किया था और कहा था कि उम्मीदवारों को तब तक प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता जब तक केंद्र " हेट स्पीच " या "घृणा फैलाने" को परिभाषित नहीं करता. आयोग केवल IPC या जनप्रतिनिधित्व कानून का उपयोग करता है. उसके पास किसी राजनीतिक दल की मान्यता वापस लेने या उसके सदस्यों को अयोग्य घोषित करने का कानूनी अधिकार नहीं है. अगर कोई पार्टी या उसके सदस्य हेट स्पीच में लिप्त होते हैं तो उसके पास डी रजिस्टर करने की शक्ति नहीं है.

चुनाव आयोग ने केंद्र के पाले में गेंद डाल दी थी. चुनाव आयोग ने कहा था कि हेट स्पीच और अफवाह फैलाने वाले किसी विशिष्ट कानून के अभाव में, चुनाव आयोग IPC के विभिन्न प्रावधानों को लागू करता है जैसे कि धारा 153 ए- समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम. समय-समय पर एडवाइजरी भी जारी कर पार्टियों से प्रथाओं से दूर रहने की अपील करते हैं. यह चुनाव आचार संहिता का भी हिस्सा है.