बड़ी खबर: केंद्रीय कैबिनेट ने पास किया महिला आरक्षण बिल, केंद्रीय मंत्री बोले-केवल मोदी में नैतिक साहस

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33 प्रतिशत महिला आरक्षण से कैसा बदलाव आएगा?

नई दिल्ली (khabargali) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में सोमवार देर शाम केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक हुई। सूत्रों के मुताबिक, लगभग पौने दो घंटे चली मोदी कैबिनेट की बैठक में महिलाओं के लिए संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत आरक्षण के विधेयक को मंजूरी दे दी गई। संसद के विशेष सत्र के पहले दिन की कार्यवाही पूरी होने के बाद देर शाम सेंट्रल कैबिनेट की बैठक हुई। कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे सहित कई विपक्षी नेताओं ने महिलाओं के लिए इस 33 पर्सेंट रिजर्वेशन की मांग रखी थी। मौजूदा लोकसभा में 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 का 15 प्रतिशत से भी कम है।

आज विशेष सत्र के पहले दिन संसद की कार्यवाही के बाद कैबिनेट की बैठक को लेकर पहले से अनुमान लगाया जा रहा था कि कोई बड़ा निर्णय लिया जा सकता है।  संसद के विशेष सत्र के दूसरे दिन मंगलवार को लोकसभा एवं राज्यसभा की कार्यवाही नये संसद भवन में संचालित होगी। आज इसकी घोषणा दोनों सदनों में की गयी।

इस फैसले का स्वागत करते हुए केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने X पर लिखा है-महिला आरक्षण की मांग पूरा करने का नैतिक साहस मोदी सरकार में ही था। जो कैबिनेट की मंज़ूरी से साबित हो गया।

अगर यह कानून का रूप ले लेता है तो यह ऐतिहासिक कदम होगा

अगर यह महत्वपूर्ण विधेयक संसद के इस विशेष सत्र में आसानी से पारित होकर कानून का रूप ले लेता है तो यह ऐतिहासिक कदम होगा। ध्यान रहे महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में एक तिहाई आरक्षण देने वाला यह अहम सुधार करीब तीन दशकों से लंबित था। यह बिल पास कराने की पहली कोशिश 1996 में हुई थी। उस समय इस विधेयक को जिस तरह का विरोध झेलना पड़ा था, वह अचंभित करने वाला था। सत्तारूढ़ दल और मुख्य विपक्षी दल इसके समर्थन में थे, इस लिहाज से विधेयक पारित होने में कोई बड़ी बाधा नहीं थी। लेकिन जो छोटे दल इसके विरोध में थे, उससे जुड़े सदस्यों ने जबर्दस्त हंगामा किया, यहां तक कि बिल की प्रतियां छीन कर फाड़ दी गईं। उस स्थिति में विधेयक संसद में पेश ही नहीं किया जा सका।

माना जा रहा था कि भले ही प्रमुख दलों के नेतृत्व ने औपचारिक तौर पर विधेयक के पक्ष में स्टैंड लिया था, लेकिन प्राय: सभी दलों के पुरुष सांसद अंदर ही अंदर इसके खिलाफ थे और विरोध कर रहे सांसदों को, परदे के पीछे से, इन सबका समर्थन हासिल था। यही मुख्य वजह रही कि करीब 27 साल से सभी प्रमुख दलों की सहमति के बावजूद यह विधेयक कानून नहीं बन सका। मगर पिछले करीब तीन दशकों के दौरान न केवल समाज में महिलाओं की स्थिति बदली बल्कि खुद राजनीति में भी व्यापक बदलाव आया है। जीवन के हर क्षेत्र में महिलाएं आगे बढ़ी हैं, उन्होंने खुद को सशक्त बनाया है। यहां तक कि चुनाव में भागीदारी के मामले में भी उन्होंने पुरुषों को पीछे छोड़ दिया है। इस लिहाज से 2019 लोकसभा चुनावों को खास माना जा सकता है। इन चुनावों में पहली बार महिला वोटरों की संख्या पुरुष वोटरों से ज्यादा हो गई। जाहिर है, राजनीति ज्यादा समय तक इन बदलावों की अनदेखी नहीं कर सकती। लेकिन यह बात भी ध्यान में रखने वाली है कि महिला सशक्तीकरण का सीधा संबंध विकास की रफ्तार से होता है। और राजनीतिक भागीदारी एवं नीति निर्माण में प्रत्यक्ष भूमिका महिला सशक्तीकरण के सबसे प्रभावी उपाय हैं। ऐसे में इस बिल का करीब तीन दशकों तक लटके रहना न सिर्फ महिला हितों के लिए बल्कि विकास की गति के लिहाज से भी नुकसानदेह रहा। जाहिर है, देर बहुत हो गई, लेकिन फिर भी यह पहल अच्छी है।