ख़बरगली @ साहित्य डेस्क
मैंने कभी यह नहीं कहा कि गांधी जी ने 'हे राम' नहीं कहा था। मैंने यह कहा था कि 'मैं उन्हें हे राम कहते हुए नहीं सुना।' मैं घटना के बाद भीड़ के शोर के कारण कुछ भी नहीं सुन पाया था।
-वी. कल्याणम (1943 से 1948 तक महात्मा गांधी के निजी सचिव )
शुक्रवार 30 जनवरी 1948 की वह सुबह आम दिनों की तरह ही थी. तब किसको पता था कि शाम को क्या होने वाला है? हम हमेशा की तरह साढ़े तीन बजे अपनी प्रार्थना के लिए उठे. उसके बाद रोज की गतिविधियां शुरू हो गईं. गांधीजी ने अपनी पोती आभा को जगाया. इसके बाद उन्होंने स्नान किया और फिर गद्दे पर बैठ गए. उनका दिन हमेशा प्रार्थना के साथ शुरू होता था. उनकी प्रार्थनाओं में सभी धर्मों की पवित्र पुस्तकों की बातें शामिल होती थीं, खासकर हिंदू धर्म और इस्लाम की. यह उनका इस बात पर जोर देने का तरीका था कि मूल में सभी धर्म एक हैं. गांधी जी ने ध्यान में अपनी आंखें बंद कर लीं. आभा अभी भी सोई हुई थी. गांधीजी ने उसकी अनुपस्थिति महसूस कर ली थी. प्रार्थना आभा के बिना ही हुई.
प्रार्थना के तुरंत बाद मनु रसोई में चली गई. रोज की तरह उसने गांधीजी का प्रिय प्रेय-एक चम्मच शहद और नींबू के रस वाला गरम पानी का एक गिलास तैयार किया. जब उसने गिलास गांधीजी को पकड़ाया तो उन्होंने कहा, 'लगता है मेरा असर अपने साथ के लोगों पर भी कम होता जा रहा है. प्रार्थना झाडू की तरह है जिसका मकसद है हमारी आत्मा की शुद्धि. प्रार्थना में आभा के न आने से मुझे बहुत तकलीफ होती है. तुम्हें तो पता ही है कि मैं प्रार्थना को कितना महत्वपूर्ण मानता हूं. अगर तुममें साहस हो तो तुम मेरी तरफ से मेरी अप्रसन्नता उस तक पहुंचा सकती हो. अगर वह प्रार्थना में आने की इच्छुक नहीं है तो उसे मेरा साथ छोड़ देना चाहिए. इसमें हम दोनों की भलाई होगी!'
मैं दिन भर के निर्देश लेने के लिए उनके पास बैठा हुआ था. उन्होंने कहा कि दो फरवरी से उनका जो दस दिन का सेवाग्राम का दौरा शुरू हो रहा है, मैं उसके लिए व्यवस्था करूं. मैंने उनके लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नए संविधान का वह टाइप किया हुआ ड्राफ्ट रखा जो उन्होंने एक दिन पहले मुझसे बोलकर लिखवाया था और जिसमें उन्होंने कांग्रेस को भंग करने और एक नए ऐसे संगठन के निर्माण का सुझाव दिया था जिसका समाज सेवा और ग्रामीण क्षेत्रों की बेहतरी पर और ज्यादा जोर हो. उनका इसे देखने का मन नहीं था. उन्होंने मेरे वरिष्ठ प्यारेलाल जी को बुलाया और यह ड्राफ्ट उन्हें दे दिया.
मैं अब ज्यादा लंबा जीना नहीं चाहता
सर्दियों का मौसम था और गांधीजी अक्सर खुले लॉन में चारपाई पर बैठकर धूप सेंकते हुए दिन बिताते. उनसे मिलने वालों का तांता लगा रहता था. वे कभी खाली बैठे नहीं दिखते थे. जब पहले तय कोई मुलाकात न होती तो वे चिट्ठियां और गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में लेख लिखने में व्यस्त रहते. मंत्री और दूसरे वीआईपी उनसे वक्त लेकर मुलाकात करते जबकि पंडित नेहरू जब दिल्ली होते तो अपने दफ्तर जाते हुए रोज करीब नौ बजे उनसे मिलते. करीब दो बजे लाइफ मैगजीन के मशहूर फोटोग्राफर मार्ग्रेट बर्क ने गांधीजी का साक्षात्कार लिया. इस दौरान उन्होंने पूछा, 'आप हमेशा कहते रहे हैं कि मैं 125 साल तक जीना चाहूंगा. यह उम्मीद आपको कैसे है?' गांधीजी का जवाब उन्हें हैरान करने वाला था. उन्होंने कहा कि अब उनकी ऐसी कोई उम्मीद नहीं है. जब मार्ग्रेट ने इसकी वजह पूछी तो उनका कहना था, 'क्योंकि दुनिया में इतनी भयानक चीजें हो रही हैं. मैं अंधेरे में नहीं रहना चाहता.'
मार्ग्रेट के जाने के बाद प्रोफेसर एनआर मलकानी दो व्यक्तियों के साथ आए. पाकिस्तान में हमारे डिप्टी हाई कमिश्नर मलकानी ने गांधीजी को सिंध के हिंदुओं की दुर्दशा बताई. उनकी बात धैर्य के साथ सुनने के बाद गांधीजी ने कहा, 'अगर लोगों ने मेरी सुनी होती तो ये सब नहीं होता. मेरा कहा लोग मानते नहीं. फिर भी जो मुझे सच लगता है मैं कहता रहता हूं. मुझे पता है कि लोग मुझे पुराने जमाने का आदमी समझने लगे हैं.'
20 जनवरी का बम धमाका
20 जनवरी की प्रार्थना सभा में एक बम धमाका हुआ था. यह बम मदन लाल नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने फेंका था. लेकिन यह गांधीजी को नहीं लगा. इससे एक दीवार टूट गई थी. लेकिन गांधीजी को कभी नहीं लगा कि कोई उन्हें मारने आया था. उन्होंने भारत सरकार के उस फैसले के खिलाफ उपवास किया था जिसमें पाकिस्तान को दिया जाने वाला पैसा (50 करोड़ रु.) इस आधार पर रोक दिया गया था कि उसने अफरीदी कबायलियों के साथ मिलीभगत करके कश्मीर पर हमला करके उसे अपने में मिलाने की कोशिश की थी. गांधीजी का जीवन बचाने के लिए सरकार झुक गई थी और वह रकम पाकिस्तान को दे दी गई थी. कट्टरपंथी हिंदू गांधीजी के इस कदम से नाराज थे और उन्हें लग रहा था कि वे हिंदू समुदाय को नुकसान पहुंचाकर मुसलमानों का तुष्टिकरण कर रहे हैं. माना जा रहा था कि बम धमाके की यह घटना इसी का नतीजा थी. यही वजह थी कि बिड़ला भवन में तैनात पुलिस बल की संख्या बढ़ा दी गई थी. हालांकि पुलिस को लग रहा था कि सुरक्षा को और भी प्रभावी बनाने के लिए उन्हें प्रार्थना सभा में शामिल होने या फिर किसी दूसरे मकसद से भीतर आने वाले हर व्यक्ति की तलाशी लेने की इजाजत दी जानी चाहिए.
जब एक पुलिस सुपरिटेंडेंट यह प्रस्ताव लेकर मेरे पास आए तो मैंने गांधीजी से सलाह मांगी. कुछ ही मिनटों के भीतर डीआईजी पहुंच गए और उन्होंने कहा कि वे गांधीजी से बात करना चाहते हैं. मैं उन्हें भीतर ले गया. डीआईजी का कहना था कि उनकी जान को खतरा है और जिन सुविधाओं की मांग की गई है वे दी जानी चाहिए नहीं तो अगर कोई हादसा हो गया तो पुलिस की फजीहत होगी.
गांधीजी का कहना था, 'जो आजादी के बजाय सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं उन्हें जीने का हक नहीं है.' लोगों की तलाशी के लिए सहमत होने की बजाय वे प्रार्थना सभा रोक देंगे. इसके बाद पुलिस से कहा गया कि वह सादी वर्दी में तैनात रहकर संदिग्ध लोगों पर नजर रखे और खास ध्यान रखे कि प्रार्थना के लिए जाते या वहां से लौटते हुए कोई गांधीजी पर हमला न कर दे.
सरकार बने अभी सिर्फ पांच महीने ही हुए थे, लेकिन मीडिया में पंडित नेहरू और सरदार पटेल के मतभेदों की खबरें जमकर छप रही थीं. गांधीजी इन अफवाहों से परेशान थे और इस समस्या का हल ढूंढना चाहते थे. वे तो यहां तक सोच रहे थे कि सरदार पटेल को इस्तीफा देने के लिए कह दें. उन्हें लगता था कि शायद इससे देश चलाने के लिए नेहरू को पूरी तरह से खुला हाथ मिल जाएगा. उन्होंने चार बजे पटेल को चर्चा के लिए बुलाया था और वे चाहते थे कि प्रार्थना के बाद वे इस मुद्दे पर बात करें. अपनी बेटी मणिबेन के साथ पटेल जब पहुंचे तो गांधीजी खाना खा रहे थे.
सरदार पटेल के साथ आखिरी मुलाकात
प्रार्थना का समय पांच बजे था. लेकिन गांधीजी और पटेल के बीच बातचीत पांच बजे के बाद भी जारी रही. पांच बजकर दस मिनट पर बातचीत खत्म हो गई. इसके बाद गांधीजी शौचालय गए और फिर फौरन ही प्रार्थना वाली जगह की तरफ बढ़ चले जो करीब 30-40 गज की दूरी पर रही होगी. कमरे से बाहर निकलते ही चार या पांच सीढिय़ां थीं और फिर लॉन शुरू हो जाता था. गांधीजी को प्रार्थना सभा में पहुंचने में 15 मिनट की देर हो गई थी. हमेशा की तरह गांधीजी चुस्त चाल के साथ सिर झुकाए चल रहे थे और उनकी नजर जमीन पर जमी हुई थी. उनके हाथ अपनी दोनों पोतियों के कंधे पर थे. करीब ही बाईं तरफ से मैं उनके पीछे-पीछे चल रहा था. हम उन सीढिय़ों पर चढऩे लगे जो प्रार्थना के लिए बने मंच तक जा रही थीं. लोग हाथ जोड़कर गांधीजी का अभिवादन कर रहे थे और वे भी जवाब दे रहे थे. सीढिय़ों से 25 फुट दूर एक फुट ऊंचा लकड़ी का वह आसन बना था जिस पर वे बैठते थे. लोग उनके लिए जगह बनाते हुए एक तरफ हो रहे थे. अपनी जेब में रिवॉल्वर रखे हत्यारा (नाथूराम गोडसे) इस भीड़ में ही मौके का इंतजार कर रहा था. गांधीजी मुश्किल से पांच या छह कदम ही आगे बढ़े होंगे कि उसने बहुत करीब से एक के बाद एक गोलियां तेजी से दाग दीं. उनकी फौरन मृत्यु हो गई. वे पीछे गिर पड़े. उनके घावों से काफी मात्रा में खून बहे जा रहा था और इस घटना से मची भगदड़ में उनका चश्मा और खड़ाऊं न जाने कहां छिटक गए थे. मैं अपनी जगह पर जड़ रह गया.
खबर तेजी से फैली. पटेल तब तक जा चुके थे. मैं अपने कमरे की तरफ भागा और फोन से नेहरू के दफ्तर तक यह खबर भिजवाई. मैं किसी तरह से भीड़ के बीच से निकलते हुए कार में बैठा और इस घटना की खबर देने के लिए मुश्किल से पांच मिनट की दूरी पर स्थित पटेल के घर की तरफ चला. इस दौरान गांधीजी की पार्थिव देह उठाकर उनके कमरे तक लाई जा चुकी थी. वे चटाई पर पड़े थे और लोग उनके इर्द-गिर्द बैठे थे. ऐसा लगता था जैसे वे सोए हों. उनका शरीर कुछ समय तक गर्म ही था. रात आंसुओं में बीती.
हे राम' नहीं कहा था
माना जाता है कि जब गांधी जी की हत्या हुई तो उन्होंने ईश्वर को याद करते हुए 'हे राम' कहा था. हालांकि वे हमेशा कहते थे कि वे राम का नाम लेते हुए मरना चाहेंगे लेकिन, इसकी कोई संभावना नहीं थी कि वे तब एक शब्द भी बोल पाते. किसी चतुर पत्रकार ने अनुमान के आधार पर यह टिप्पणी की थी जो पूरी दुनिया में चर्चित हो गई, लेकिन इसकी विश्वसनीयता कभी नहीं जांची गई. इतना बड़ा झूठ उस व्यक्ति की जबान पर बिठा दिया गया जो सत्य का प्रचारक था. यदि गांधी जी बीमार होते या बिस्तर से उठने की हालत में न होते तो वे राम को जरूर याद करते. लेकिन यहां उन्हें वह मौका नहीं दिया गया. यह भी बड़ी हैरत भरी बात है कि गांधी जी की हत्या के लिए बने जांच आयोग ने कभी हम लोगों से, जो उस दिन उनके इतने करीब थे, जानकारी लेने की कोशिश ही नहीं की.
(satyagrah.scroll.in से साभार/संपादित अंश।) प्रस्तुति: आशीष सिंह
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