ख़बरगली विशेष: जानें कैसे राज्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति होती है और इनकी शक्तियां एंव कार्य क्या होते हैं?

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रायपुर (khabargali) राज्य में दो नए राज्य सूचना आयुक्त (State information commissioner) मनोज कुमार त्रिवेदी एवं धनवेंद्र जायसवाल की नियुक्ति की हुई है। राज्यपाल अनुसुईया उइके ने उन्हें राज्य सूचना आयुक्त के पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। मंगलवार को ही इन्‍होंने पदभार भी ग्रहण कर लिया और कार्यभार संभालते ही विभागीय कामकाज को लेकर मंथन भी शुरू कर दिया गया है। आपको बता दें कि सूचना आयुक्त के तौर पर धनेंद्र जायसवाल और मनोज त्रिवेदी का कार्यकाल तीन साल का होगा। इस दौरान दोनों को 2.25 लाख रुपए सैलरी और गाड़ी-बंगला सहित अन्य तमाम सरकारी सुविधा मिलेंगी।

ख़बरगली अपने पाठकों को यहां बता रही है कि आखिर राज्य सूचना आयोग की संरचना क्यों की गई है ? कैसे सूचना आयुक्त की नियुक्ति होती है और इनकी शक्तियां एंव कार्य क्या होते हैं।

क्या है राज्य सूचना आयोग ?

राज्य सूचना आयोग एक उच्च प्राधिकारयुक्त स्वतंत्र निकाय है ,जो इसमें दर्ज शिकायतों की जांच करता है। एंव उनका निवारण करता है । यह सम्बंधित राज्य सरकार के अधीन कार्यरत कार्यालयों , वित्तीय संस्थानों,सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एंव अपीलों की सुनवाई करता है।

सूचना आयोग की सरंचना

राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य आयुक्त एवं सूचना आयुक्त होते हैं जिनकी संख्या 10 से अधिक नहीं होनी चाहिए, इन सभी की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसमें प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री, विधानसभा में विपक्ष का नेता एवं मुख्यमंत्री द्वारा मनोनीत एक कैबिनेट मंत्री होता है। इस आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य बनने वाले सदस्यों में सार्वजनिक जीवन का पर्याप्त अनुभव होना चाहिए। तथा उन्हें विधि, विज्ञान और तकनीकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन आदि का विशिष्ट अनुभव होना चाहिए। उन्हें संसद या किसी राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए। ये किसी राजनीतिक दल से संबंधित किसी लाभ का पद धारण ना करते हों, तथा ये कोई लाभ का पद या व्यापार ना करते हो।

कार्यकाल एंव सेवा शर्तें एवं वेतन भत्ते

इनका कार्यकाल 5 वर्ष या 65 वर्ष की आयु जो भी पहले हो ,तक पद पर बने रह सकतें है । उन्हें पुनर्नियुक्ति की पात्रता नहीं होती है । राज्य की मुख्य सूचना आयुक्त के वेतन भत्ते एवं सेवा शर्तें निर्वाचन आयुक्त के समान होते हैं इसी प्रकार अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन भत्ते एवं सेवा शर्तें राज्य के मुख्य सचिव के समान होते हैं उनके सेवाकाल में उनके वेतन-भत्तों एवं सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

राज्यपाल मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों को निम्न प्रकारों से उनके पद से हटा सकता है

1. यदि वे दिवालिया हो गए हों।

2. यदि उन्हें किसी नैतिक चरित्रहीनता के अपराध के संबंध में दोषी करार दिया गया हो। (राज्यपाल की नजर में)

3. यदि वे अपने कार्यकाल के दौरान किसी अन्य लाभ के पद पर कार्य कर रहे हो

4. यदि वे (राज्यपाल की नजर) में वे शारीरिक या मानसिक रूप से अपने दायित्वों का निर्वहन करने में अक्षम हो। या किसी ऐसे लाभ के पद को प्राप्त करते हुए पाए जाते हैं, जिससे उनका कार्य व निष्पक्षता प्रभावित होती हो ।

5. इसके अलावा राज्यपाल आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर भी हटा सकते हैं।

हालांकि इन मामलों में राज्यपाल मामले को जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पास भेजते है, तथा यदि उच्चतम न्यायालय जांच के बाद मामले को सही पाता है तो वह राज्यपाल को इस बारे में सलाह देता है। उसके उपरांत राज्यपाल अध्यक्ष व अन्य सदस्यों को पद से हटा देते हैं ।

सूचना आयुक्त की शक्तियां एंव कार्य

आयोग का यह दायित्व है कि वे किसी व्यक्ति से प्राप्त जानकारी एंव शिकायतों का निराकरण करें-

जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति ना होने के कारण किसी सूचना को प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हो। उसे चाही गयी जानकारी देने से मना कर दिया गया हो। उसे चाही गई जानकारी निर्धारित समय में ना प्राप्त हुई हो। यदि उसे लगता हो सूचना के एवज में मांगी गई फीस सही नहीं है। यदि उसे लगता है कि उसके द्वारा मांगी गई सूचना अपर्याप्त ,झूठी या भ्रामक है ,तथा सूचना प्राप्ति से सम्बंधित कोई अन्य मामला । यदि किसी ठोस आधार पर कोई मामला प्राप्त होता है । तो आयोग ऐसे मामले की जांच का आदेश दे सकता है (स्व प्रेरणा शक्ति) जांच करते समय निम्न मामलों के संबंध में आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है वह किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने एवं उस पर दबाव डालने के लिए समन जारी कर सकता है तथा मौखिक या लिखित रूप से शपथ के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है। किसी दस्तावेज़ को मंगाना एवं उसकी जांच करना। किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज को मंगाना। किसी गवाह या दस्तावेज को प्रस्तुत करने या होने के लिए समन जारी करना। तथा कोई अन्य मामला जिस पर विचार करना आवश्यक हो। शिकायत की जांच करते समय आयोग लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज या रिकॉर्ड की जांच कर सकता है तथा इस रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इनकार नहीं किया जा सकता है। यानी (सभी सार्वजनिक दस्तावेज प्रस्तुत करना अनिवार्य है) आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह लोक प्राधिकारी से अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करें । इसमें सम्मिलित है– किसी विशेष रूप में सूचना तक पहुंच। जहां कोई भी जन सूचना अधिकारी नहीं है वहां ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने का आदेश देना। सूचनाओं के प्रकार या किसी सूचना का प्रकाशन। रिकॉर्ड के प्रबंधन,रखरखाव एवं विशिष्टीकरण की रीतियों में किसी प्रकार का आवश्यक परिवर्तन। सूचना के अधिकार के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था। इस अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में लोक प्राधिकारी से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना। आवेदक द्वारा चाही गई जानकारी न मिलने पर या उसे क्षति होने पर लोक प्राधिकारी को इसका मुआवजा देने का आदेश करना। तथा इस अधिकार के अंतर्गत अर्थदंड लगाना। तथा किसी याचिका को अस्वीकार करना। इस अधिनियम के क्रियान्वयन के संदर्भ में आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन राज्य सरकार को प्रस्तुत करता है तथा सरकार प्रतिवेदन को विधानमंडल के पटल पर रखती है। जब कोई लोक प्राधिकारी इस अधिनियम का पालन नहीं करता तो आयोग इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। ऐसे कदम उठा सकता है जो इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।