
नई दिल्ली/रायपुर (खबरगली) केंद्र सरकार ने बुधवार को बड़ा फैसला लिया है। केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में जातिगत जनगणना के फैसले पर मुहर लगाई गई है। इस फैसले को लेकर सीएम साय ने कहा कि यह मोदी सरकार की ऐतिहासिक, प्रशंसनीय और अभिनंदनीय पहल है। वहीं, भूपेश बघेल ने कहा कि राहुल गांधी की मांग के सामने केंद्र सरकार को झुकना पड़ा है।
बता दें कि जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी, लेकिन 2021 में कोरोना महामारी के कारण जनगणना टल गई थी। जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। इस फैसले का विपक्ष ने भी स्वागत किया है। विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम सियासी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुल संख्या का पता चल सके।
कांग्रेस समाज को बांटने का काम कर रही है : साय
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस निर्णय को सामाजिक सद्भाव और समावेशी विकास की दिशा में ऐतिहासिक एवं दूरदर्शी पहल बताया है। उन्होंने कहा कि इससे देश में सामाजिक नीति निर्माण को ठोस आधार मिलेगा और वंचित वर्गों के लिए प्रभावी योजनाएं बनाई जा सकेंगी। मुख्यमंत्री साय ने कांग्रेस पार्टी की दोहरी नीति पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद से कांग्रेस जातिगत जनगणना से भागती रही है। वर्ष 2010 में जब यूपीए सरकार थी, तब भी अधिकांश दलों की सहमति के बावजूद कांग्रेस ने इसे रोका। आज फिर वही पार्टी जातीय सर्वेक्षणों को राजनीति का माध्यम बनाकर समाज को बांटने का प्रयास कर रही है।
केंद्र का विषय है जनगणना
मुख्यमंत्री साय ने स्पष्ट किया कि जनगणना केंद्र का विषय है और जब जातियों की गणना उसी के माध्यम से होगी तो उसकी विश्वसनीयता, पारदर्शिता और नीति निर्धारण में उपयोगिता कहीं अधिक होगी। कई राज्यों ने सर्वे के नाम पर जो जातीय आंकड़े जुटाए, वे राजनीतिक एजेंडे से प्रेरित थे और इससे सामाजिक ताना-बाना प्रभावित हुआ। मुख्यमंत्री साय ने कहा कि छत्तीसगढ़ की 3 करोड़ जनता की ओर से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए सहृदय आभार प्रकट करते हैं।
भूपेश बघेल ने क्या कहा
जातिगत जनगणना के फैसले पर पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने कहा- अब केंद्र सरकार को भी झुकना ही पड़ा। हमारे नेता राहुल गांधी जी ने जातिगत जनगणना की बात शुरु की। विपक्षी दल साथ आकर लगातार आवाज बुलंद करते रहे। और आज केंद्र सरकार को जातिगत जनगणना की घोषणा करनी पड़ी। जातिगत जनगणना को जातिवादी राजनीति का हिस्सा कहने वालों को आज बहुत शर्म आ रही होगी। अब वे इसे उचित ठहराने का बहाना ढूंढेंगे। जातिगत जनगणना तो हो पर ईमानदारी से हो। छोटी बड़ी हर जाति की गणना हो। कोई छूटे नहीं। भूपेश बघेल ने कहा कि इसका फ़ॉर्मेट सरकार पहले जारी करके सभी दलों से सलाह मशविरा करे तभी जनगणना शुरु हो। तभी सभी की भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।
प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर होती है जनगणना
जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी, लेकिन 2021 में कोरोना महामारी के कारण जनगणना टल गई थी। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को भी अपडेट करने का काम बाकी है। अभी तक जनगणना की नई तारीख का आधिकारिक तौर पर एलान भी नहीं किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, जनगणना के आंकड़े 2026 में जारी किए जाएंगे। इससे भविष्य में जनगणना का चक्र बदल जाएगा। जैसे 2025-2035 और फिर 2035 से 2045।
क्यों अहम है जनगणना?
जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। इससे न सिर्फ जनसंख्या बल्कि जनसांख्यिकी, आर्थिक स्थिति कई अहम पहलुओं का पता चलता है। विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम सियासी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुल संख्या का पता चल सके। पहली जनगणना 1872 और आखिरी 2011 में हुई थी# भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, जबकि लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74.04 फीसदी था।
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