अरुण जेटली का एम्स में निधन, फूट-फूट कर रोए पीएम मोदी और शाह

arun jaitley death
  • लंबे समय से बीमार थे पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली

  • बीमारी की वजह से मोदी 2.0 कैबिनेट में शामिल होने से किया था मना

  • 2018 में अरुण जेटली ने किडनी प्रत्यारोपण कराया था

  • वकालत से राजनीति में आए अरुण जेटली बीजेपी के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे.

  • अरुण जेटली दिल्ली एवं ज़िला क्रिकेट संघ डीडीसीए के अध्यक्ष भी रहे.


नई दिल्ली (khabargali)भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली का लंबी बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। वो 67 साल के थे. बीते नौ अगस्त से अरुण जेटली एम्स में इलाज करा रहे थे. एम्स की प्रवक्ता आरती विज ने मीडिया के लिए जारी प्रेस रिलीज में बताया है कि जेटली ने शनिवार को दोपहर 12 बजकर सात मिनट पर अंतिम सांस ली.

पैर में हुआ था सॉफ्ट टिशू कैंसर

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली का इलाज एम्स में एंडोक्रिनोलोजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट और कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टरों की निगरानी में चल रहा था। वहीं इससे पहले पिछले साल ही जेटली का किडनी प्रत्यारोपण हुआ था। इसके बाद उन्हें बाएं पैर में सॉफ्ट टिशू कैंसर हो गया था। जेटली इसकी सर्जरी के लिए इसी साल जनवरी में अमेरिका गए।

प्रधानमंत्री मोदी ने अरुण को श्रद्धांजलि देते हुए लगातार चार ट्वीट किया.

उन्होंने लिखा, "मैंने एक अहम दोस्त खो दिया है, जिन्हें दशकों से जानने का सम्मान मुझे प्राप्त था. मुद्दों पर उनकी समझ बहुत अच्छी थी. वो हमें अनेक सुखद स्मृतियों के साथ छोड़ गए. हम उन्हें याद करेंगे." प्रधानमंत्री मोदी ने ये भी लिखा कि बीजेपी और अरुण जेटली के बीच एक ना टूटने वाला बंधन था. उनके मुताबिक, "एक तेजस्वी छात्र नेता के तौर पर उन्होंने आपातकाल के समय हमारे लोकतंत्र की सबसे आगे होकर रक्षा की थी. वो हमारी पार्टी के लोकप्रिय चेहरा थे. जिन्होंने समाज के अलग-अलग तबकों तक पार्टी के कार्यकर्मों और विचारों को स्पष्ट रूप से पहुंचाया."

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने जेटली के असामयिक निधन पर गहरा दुख व्यक्त  किया.

कांग्रेस के ट्वीटर हैंडल पर सोनिया गांधी का संदेश साझा किया गया. जिसमें लिखा था अरुण जेटली की मृत्यु पर दुख जताते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि जेटली ने एक सार्वजनिक व्यक्ति, सांसद और मंत्री के रूप में लंबी पारी खेली और सार्वजनिक जीवन में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.

एक नजर उनके जीवन यात्रा पर

अरुण जेटली का जन्म 28 दिंसबर 1952 को महाराज किशन जेटली और रतन प्रभा जेटली के घर में हुआ था। अरुण जेटली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर्स स्कूल नई दिल्ली से पूरी की और इसके बाद वह स्नातक करने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री राम कॉलेज ऑफ कॉमर्स चले गए। अरुण जेटली ने 24 मई 1982 को संगीता जेटली से शादी कर ली। उनके दो बच्चे है, बेटे का नाम रोहन और बेटी का नाम सोनाली है।

पिता की तरह वकालत से शुरू किया करियर

अरुण जेटली के पिता एक वकील थे। जेटली ने भी पिता के पदचिन्हों पर चलते हुए स्नातक करने के बाद 1977 में दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय से कानून की पढ़ाई की। पढ़ाई करने के बाद अरुण जेटली ने सुप्रीम कोर्ट में वकालत करना शुरू कर दिया। इसके बाद जेटली देश  प्रसिद्ध वकीलों की सूची में शामिल में हो गए। जनवरी 1990 में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायलय ने वरिष्ठ अधिवक्ता नामित कर दिया। इससे पहले 1989 में वीपी सिंह के प्रधानमंत्रीकाल में अरुण जेटली को अपर सॉलिसिटर जनरल बनाया गया था। इसके बाद अरुण जेटली कई बड़े मुकदमों में पेश हुए।

एबीवीपी से शुरू हुई राजनीति.. उच्च पदों पर बढ़ते चले गए 

अरुण जेटली ने बहुत ही कम उम्र से ही राजनीति में दाखिला ले लिया था। 22 साल की उम्र में जब वह स्नातक कर रहे थे, उस दौरान उन्हें 1974 में दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र संगठन का अध्यक्ष चुन लिया गया था। इसके बाद वह विभिन्न युवा मोर्चा के संघठनों से जुड़े रहे। जेटली को बाद में दिल्ली एबीवीपी का अध्यक्ष और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का राष्ट्रीय सचिव बना दिया गया था। जेटली 1991 में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बनें और फिर 1999  के आम चुनाव से पहले बीजेपी ने उन्हें पार्टी का प्रवक्ता बना दिया। समय के साथ-साथ  जेटली की पकड़ बीजेपी में मजबूत होती गई। वह लगातार अपने कुशल कार्यशैली की वजह से बीजेपी संघठन में उच्च पदों पर बढ़ते चले गए।

1999 को वाजपेयी सरकार में सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री बने

अरुण जेटली को पहली बार मंत्रीपरिषद में शामिल होने का मौका अटल बिहारी वाजपेयी के तीसरे शासनकाल में मिला। उन्हें पहली बार एनडीए सरकार में 13 अक्टूबर 1999 को  सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया। इसके साथ ही जेटली को विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) की भी जिम्मेदारी सौंपी गई।
समय के साथ ही जेटली राजनीतिक तौर पर मजबूत होते गए।  2000 में उन्हें राज्यमंत्री से पदौन्नति करके कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। इस दौरान उन्हें  कानून, न्याय और कंपनी मामलों के साथ जहाजरानी मंत्रालय का कैबिनेट मंत्री बनाया। जेटली को बाद में , वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय का भी मंत्री बनाया गया। सरकार के साथ ही जेटली की पदौन्नति संगठन में भी होती गई। वे राष्ट्रीय प्रवक्ता और फिर 2004 में महासचिव भी बने।

विपक्ष के नेता के रूप में बनाई अक्रामक छवि

2004 से 2014 तक एनडीए केंद्र की सत्ता से बाहर रही।  2009 में जेटली को राज्यसभा में विपक्ष के नेता बनाया गया और इस दौरान वह बीजेपी का पक्ष राज्यसभा में मजबूती से रखते रहे। हालांकि, राज्यसभा में विपक्ष के नेता के पद पर रहते हुए जेटली ने महासचिव के पद से इस्तीफा दे दिया था।

मोदी सरकार की आर्थिक नीति और इकोनॉमी को नई दिशा दी

राजनीतिक पंडितों की मानें तो अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी को दिल्ली की सियासत में दाखिल कराने में अहम भूमिका निभाई। गुजरात से लाकर और कैसे दिल्ली में मोदी बीजेपी के पीएम चेहरा बने, उसमे जेटली का अहम रोल रहा। इसका फायदा उन्हें सरकार आने के बाद 2014 में मिला,जब केंद्र में उन्हें वित्त के साथ कॉर्पोरेट मामलों का भी मंत्री बनाया गया। इसके बाद वह कुछ समय के लिए रक्षा मंत्री भी रहे। वन नेशन वन टैक्स यानी जीएसटी को लाने में भी जेटली ने अहम भूमिका निभाई।

पार्टी के संकट मोचक रहे जेटली

केंद्र की मोदी सरकार के फैसलों पर जब भी सवाल उठे, तो उस वक्त जेटली सबसे पहले आगे आकर बचाव करते थे। वह चाहे 'एक देश एक कर यानी वन नेशन वन टैक्स' (जीएसटी) की बात रही हो या फिर नोटबंदी के बाद सरकार की हो रही आलोचना। जेटली हर मोर्चे पर मोदी सरकार का बचाव करने के लिए आगे खड़े रहे है।  वहीं जब कांग्रेस और समूचा विपक्ष राफैल सौदे में भ्रष्टाचार की बात कह रहा था और मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा था, तो उस वक्त भी जेटली थे, जिन्होंने न सिर्फ मुखर होकर सरकार का बचाव किया बल्कि इसके फायदे भी देश को समझाए।

 



 

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