दिलों की धड़कन थामने वाला होगा पल: चांद पर चंद्रयान-2 की लैंडिंग पर बोले इसरो प्रमुख
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चांद पर कदम रखने को तैयार है चंद्रयान 2 का लैंडर विक्रम
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सॉफ्ट लैंडिंग पर दुनियाभर की निगाहें, आखिर 15 मिनट अहम
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सिर्फ 37% सॉफ्ट लैंडिंग हुई हैं सफल, इसरो को पूरा भरोसा
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ऑर्बिटर लगाता रहेगा चक्कर, रोवर करेगा चांद पर प्रयोग
बेंगलुरु / नई दिल्ली (khabargali) चंद्रयान-2 के लैंडर 'विक्रम' की चांद की सतह पर ऐतिहासिक 'सॉफ्ट लैंडिंग' पर न सिर्फ भारत की बल्कि पूरी दुनिया की नजर है। चांद की सतह पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग आज देर रात (छह-सात सितंबर की मध्य रात्रि) करीब दो बजे करीब होगी। इसरो के वैज्ञानिक भी पूरी तरह से मिशन चंद्रयान-2 और उसके हर अपडेट पर लगातार नजरें बनाए हुए हैं। एक छोटी सी चूक पूरे मिशन को खत्म कर सकती है। 22 जुलाई को जब चंद्रयान-2 ने उड़ान भरी तब से ही इसरो के वैज्ञानिकों की टीम हर दिन 16-16 घंटे काम कर रही है। चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-2 की सॉफ्ट लैंडिंग पर वैज्ञानिक मिशन ऑपरेशन कॉम्पलेक्स से टेलीमेट्री पारामीटर्स को ट्रैक कर रहे हैं। इसके साथ ही भारत चंद्र मिशन में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर देगा। हालांकि, ये चुनौती इतनी आसान नहीं है। लैंडिंग के अंतिम 15 मिनट बेहद चुनौतीपूर्ण होंगे। पूरे मिशन की कामयाबी इन अंतिम 15 मिनट पर ही टिकी है। आइये जानतें हैं क्या हैं ये चुनौतियां?
अंतिम 15 मिनट की ये 13 चुनौतियों पर टिका है पूरा मिशन
- 1. लैंडिंग की अवधि काफी खतरनाक होगी। दरअसल लैंडर को चांद पर लैंडिंग के लिए उचित जगह का चुनाव खुद करना होगा जो समतल और सॉफ्ट हो।
- 2. चंद्रयान-2 जब 100 मीटर की दूरी पर होगा, तो एकत्र किए गए डाटा और तस्वीरों के आधार पर सुरक्षित लैंडिंग की जगह का चुनाव करेगा और इस पूरी प्रक्रिया में तकरीबन 66 सेकेंड का वक्त लगेगा।
- 3. अब तक चांद को लेकर जो भी अध्ययन हुए हैं, उसमें चांद की सतह को काफी ऊबड़-खाबड़ बताया गया है। चांद पर गड्ढे और पहाड़ हैं। जबकि लैंडिंग की सतह 12 डिग्री से ज्यादा उबड़-खाबड़ नहीं होनी चाहिए, ताकि यान में किसी तरह की गड़बड़ी न हो। लैंडर गलत जगह उतरा तो वह फंस सकता है या किसी पहाड़ से टकराकर क्षतिग्रस्त भी हो सकता है। इससे पूरा मिशन खत्म हो जाएगा।
- 4. चंद्रयान-2, चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा। आज तक यहां कोई भी मून मिशन नहीं पहुंचा है। इस वजह से चंद्रयान की लैंडिंग और चुनौतीपूर्ण है क्योंकि चांद का ये हिस्सा हमेशा अंधेरे में रहता है।
- 5. सतह पर उतरने के बाद चार घंटे बाद तक विक्रम एक ही स्थान पर रहेगा। इस दौरान वह आसपास की सतह, वहां के तापमान आदि के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाएगा।
- 6. चार घंटे बाद विक्रम का दरवाजा खुलेगा और उसके अंदर से प्रज्ञान बाहर निकलेगा।
- 7. जब चंद्रयान-2 की दूरी केवल 10 मीटर रह जाएगी तो उसके 13 सेकेंड के अंदर यह चांद की सतह को छू लेगा।
- 8. लैंडिंग के समय विक्रम के सभी पांच इंजन काम करना शुरू कर देंगे।
- 9. चंद्रयान जब चांद की सतह से 400 मीटर की दूरी पर होगा तो वह 12 सेकेंड तक लैडिंग के लिए जरूरी डाटा एकत्रित करेगा। ये क्षण मिशन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होगा।
- 10. डाटा एकत्र करने की प्रक्रिया से करीब 89 सेकेंड पहले 400 मीटर की ऊंचाई पर ही इसरो के कंट्रोल रूम से विक्रम को थोड़ी देर के लिए तकनीकी जरूरतों के लिए बंद किया जाएगा।
- 11. चंद्रयान 2 चांद की सतह से जब करीब पांच किलोमीटर की दूरी पर होगा तो उसकी रफ्तार कम की जाएगी। उसकी रफ्तार घटाकर 331.2 किमी प्रतिघंटा हो जाएगी।
- 12. चांद पर उतरने से ठीक 15 मिनट पहले जब चंद्रयान करीब 30 किमी दूर होगा तो उसकी रफ्तार को कम करना शुरू कर दिया जाएगा। कई चरण में इसकी रफ्तार को लगातार कम किया जाएगा, चांद पर इसकी सॉफ्ट लैंडिंग कराए जाने के लिए ये जरूरी होगा।
- 13. चांद की सतह पर उतरने के 15 मिनट बाद लैंडर विक्रम वहां की पहली तस्वीर इसरो के कंट्रोल रूम में भेजेगा।
इस तरह पहुंचेगा सतह के करीब
बीते बुधवार विक्रम चांद की सतह पर उतरने की ओर बढ़ने के लिए जरूरी ऑर्बिट में दाखिल हो गया था। अब शुक्रवार देर रात 1 से 2 बजे के बीच यह सतह की ओर बढ़ने लगेगा। चांद के आखिरी ऑर्बिट से निकलने के बाद सतह से 35 किमी दूर से विक्रम लैंडिंग के लिए बढ़ना शुरू कर देगा। पहले 10 मिनट में यह 7.7 किमी की ऊंचाई तक आएगा और उसके अगले 38 सेकंड में 5 किमी ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। इसके 89 सेकंड बाद 400 मीटर और फिर 66 सेकंड में 100 मीटर की ऊंचाई पर पहुंच जाएगा।
100 मीटर की दूरी से लैंडिंग पर फैसला
सतह से 100 मीटर की दूरी से ही विक्रम लैंडिंग साइट को लेकर आखिरी फैसला करेगा। इसरो ने पहले ही साउथ पोल पर एक प्राइमरी और एक सेकंडरी साइट चुन रखी हैं। इसरो ने जो साइट्स चुनी हैं वह ऐसी जगह पर हैं जहां से लैंडिंग के वक्त सूरज सही ऐंगल पर हो। इससे रोवर को बेहतर तस्वीरें लेने में मदद मिलेगी। लैंडिंग के लिए मैन्जीनियस और सिंपीलियस नाम के क्रेटर्स के बीच दक्षिण पोल से करीब 350 किमी दूर उतरना विक्रम की प्राथमिकता रहेगी।
यूं उतरेगा 'विक्रम'
लैंडर के पास प्राइमरी साइट के भी दो विकल्प हैं और उस वक्त की स्थिति के हिसाब से वह फैसला करेगा कि लैंडिंग कहां करनी है। इसके 78 सेकंड्स के अंदर कुछ चक्कर काटने के बाद लैंडर करीब 1:30-2:30 के बीच सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। मिशन से जुड़े एक साइंटिस्ट ने बताया है कि अगर विक्रम प्राइमरी साइट के पहले जोन में उतरने का फैसला करता है, तो 65 सेकंड में यह सतह से 10 मीटर की दूरी पर पहुंच जाएगा।
यह है जटिल कदम
अगर इसे दूसरी लैंडिंग साइट चुननी पड़ी तो पहले 40 सेकंड यह 60 मीटर की दूरी तक जाएगा और उसके अगले 25 सेकंड में 10 मीटर तर पहुंच जाएगा। एक बार विक्रम सतह से 10 मीटर की दूरी पर पहुंच जाता है तो इसे नीचे जाने में 13 सेकंड लगेंगे। सॉफ्ट लैंडिंग ऐसी प्रक्रिया होगी जिसे लेकर सबसे ज्यादा सतर्कता बरती जानी है।
इसरो को है भरोसा
सॉफ्ट लैंडिंग सफलता से करना इसलिए जरूरी है क्योंकि चंद्रयान 2 के रोवर के अंदर रीसर्च से जुड़े जरूरी उपकरण मौजूद हैं। इतिहास पर नजर डालें तो सॉफ्ट लैंडिंग के सिर्फ 37% प्रयास अभी तक सफल हुए हैं। हालांकि, इसरो को अपनी अडवांस्ड टेक्नॉलजी और लॉन्च करने से पहले रोवर, ऑर्बिटर और लैंडर के सबसिस्टम, सेंसर और थ्रस्टर पर किए गए टेस्ट्स की वजह से पूरा भरोसा है कि वह सफलतापूर्वक लैंडिंग कर लेगा।
क्या है सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने पूर्व में बताया था कि चंद्रयान 2 की लैंडिंग किसी साइंस फिक्शन फिल्मों की तरह होगी। साइंस फिक्शन फिल्मों में जिस तरह उड़नतश्तरियों को उतरते हुए दिखाया जाता है, 'विक्रम' भी चांद की सतह पर उसी तरह से उतरेगा। लैंडिंग की इस विशेष प्रक्रिया को ही सॉफ्ट लैंडिंग कहा जा रहा है। इस प्रक्रिया में लैंडर पर लगा कैमरा, लेजर आधारित सिस्टम, कंप्यूटर और सभी सॉफ्टवेयर को बिलकुल सही समय पर व एक-दूसरे से तालमेल बैठाना होगा। इसरो अध्यक्ष ने कहा था, 'मुझे नहीं लगता किसी देश ने इस प्रक्रिया के जरिये लैंडिंग की है। इसमें लैंडर पर लगे कैमरे की मदद से वहां की तस्वीरें ली जाएंगी। फिर इसी आधार चंद्रयान के कंप्यूटर लैंडिंग की सही जगह तय करेंगे।'
फिर बाहर आएगा रोवर
एक बार सॉफ्ट लैंडिंग होने के बाद शनिवार तड़के 5:30- 6:30 बजे के बीच रोवर प्रज्ञान 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से लैंडर से बाहर निकलेगा और शुरू हो जाएंगे चांद पर वैज्ञानिक प्रयोग। ऑर्बिटर इस दौरान चांद की कक्षा में घूमता रहेगा और विक्रम अपनी जगह साउथ पोल पर ही बना रहेगा।
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