
रायपुर (khabargali) आज शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि है। इसे दुर्गाष्टमी और महा अष्टमी के नाम से जाना जाता है। नवरात्रि के आठवें दिन मां शक्ति के आठवें स्वरूप मां महागौरी की पूजा का विधान होता है और इस दिन कन्या पूजन किया जाता है। जिसमें 2 वर्ष से लेकर 10 वर्ष की आयु की कन्या को घर पर बुलाकर उनका स्वागत और पूजा की जाती है। नवरात्रि के पर्व पर दुर्गा अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है। आज शाम तक हवन का क्रम चलेगा। अष्टमी तिथि समाप्त होने से पहले देवी मंदिरों में हवन प्रारंभ होगा और नवमीं तिथि प्रारंभ होने के बाद पूर्णाहुति दी जाएगी।
महामाया मंदिर के पुजारी पं.मनोज शुक्ला ने बताया कि सोमवार को अष्टमी तिथि पर श्रद्धालु अठवाही यानी रोठ, पूड़ी, खीर, मिठाई अर्पित करेंगे। प्रधान जोत कक्ष में हवन पूजन होगा। हवन कुंड में कुशकुण्डिका, अग्नि आवाहन पूजन किया जाएगा। कन्या के हाथों हवन की अग्नि प्रज्वलित की जाएगी। अग्नि देवता, दिगपाल देवता समेत अन्य देवी-देवताओं का आह्वान और श्रीदुर्गा सप्तशती के 700 मंत्रों का उच्चारण करके आहुति दी जाएगी। 13 अध्याय के मंत्रों से हवन पश्चात मां समलेश्वरी देवी मंदिर के हवन कुंड में अग्नि स्थापना पूजन करके 108 बाहर आहुति दी जाएगी। इसके पश्चात पुन: महामाया मंदिर के हवन कुंड में दिगपाल बलि, नवग्रह बलि, क्षेत्रपाल बलि पूजा करके अष्टमी-नवमी की युति में शाम को पूर्णाहुति दी जाएगी।
रात्रि में होगा जोत विसर्जन
महामाया मंदिर की परंपरा के अनुसार, हवन पूर्णाहुति के पश्चात रात्रि में गुप्त रूप से मंदिर परिसर की बावड़ी में महाजोत एवं मनोकामना जोत का विसर्जन करने की प्राचीन परंपरा निभाई जाएगी। महामाया मंदिर में जोत प्रज्ज्वलित करने की परंपरा अलग है। अष्टमी में हवन के पश्चात रात्रि में मंदिर की प्राचीन बावड़ी में ही गुप्त रूप से विसर्जन किया जाता है। महाजोत के विसर्जन के दौरान मंदिर परिसर में केवल पुजारी, बैगा होते हैं। एक भी श्रद्धालु मौजूद नहीं रहता। मंदिर के प्रधान बैगा रात्रि में महाजोत को मंदिर परिसर में बनी बावड़ी में पंडितों के साथ मंत्रोच्चार करके महाजोत का विसर्जन करते हैं।
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