जैतु साव मठ और श्री शिवरीनारायण मठ में आंवला नवमी का त्यौहार परंपरागत रूप से मनाया गया

Lord Lakshminarayan, Lord Shri Krishna, Vrindavan Gokul, Amla Tree, Dwapara Yuga, Adi Shankaracharya, Jaitu Sav Math and Shri Shivrinarayan Math, Amla Navami Festival, Chitrotpala Ganga, Tradition, Rajeshree Mahant Ramsundar Das Ji Maharaj, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

जानें आंवला नवमी का पौराणिक महत्व

Lord Lakshminarayan, Lord Shri Krishna, Vrindavan Gokul, Amla Tree, Dwapara Yuga, Adi Shankaracharya, Jaitu Sav Math and Shri Shivrinarayan Math, Amla Navami Festival, Chitrotpala Ganga, Tradition, Rajeshree Mahant Ramsundar Das Ji Maharaj, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

रायपुर (khabargali) जैतु साव मठ पुरानी बस्ती रायपुर में और चित्रोत्पला गंगा के पावन तट पर युग -युगांतर से विराजित भगवान शिवरीनारायण की पावन धारा में आंवला नवमी का त्यौहार परंपरागत रूप से मनाया जैतु साव मठ में प्रातः भगवान लक्ष्मीनारायण जी को चांदी के सिंहासन में विराजमान करके विधिवत् पुजा अर्चना के बाद माताओ द्वारा मौली धागा से आंवला की प्रदक्षिणा की गई, एवं 56 भोग की नैवेद्य अर्पण किया गया और आंवला वृक्ष के नीचे बैठ कर भोजन प्रसादी वितरण किया गया ।

Lord Lakshminarayan, Lord Shri Krishna, Vrindavan Gokul, Amla Tree, Dwapara Yuga, Adi Shankaracharya, Jaitu Sav Math and Shri Shivrinarayan Math, Amla Navami Festival, Chitrotpala Ganga, Tradition, Rajeshree Mahant Ramsundar Das Ji Maharaj, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

पुजन‌ में राजेश्री महंत रामसुंदर दास जी महाराज जी, अजय तिवारी जी, सचिव महेंद्र अग्रवाल जी, पुजारी सुमित तिवारी जी, दीपक पाठक ,एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालु जन‌ उपस्थित थे।

वहीँ सायंकालीन बेला में चित्रोत्पला गंगा के पावन तट पर युग -युगांतर से विराजित भगवान शिवरीनारायण की पावन धारा में भी आंवला नवमी का त्यौहार परंपरागत रूप से मनाया गया श्री शिवरीनारायण मठ में यह आयोजन संपन्न हुआ। इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए महामंडलेश्वर राजेश्री महन्त रामसुन्दर दास जी महाराज विशेष रूप से उपस्थित हुए। इस अवसर पर आंवला वृक्ष के नीचे भगवान श्री हरि की विशेष पूजा अर्चना की गई, आरती एवं स्तुति गान संपन्न होने की पश्चात सभी श्रद्धालु भक्तों ने आंवला नवमी का प्रसाद भगवान शिवरीनारायण की पावन धारा में प्राप्त किया। इसमें नगर की माताएं बड़ी संख्या में सम्मिलित हुई।

Lord Lakshminarayan, Lord Shri Krishna, Vrindavan Gokul, Amla Tree, Dwapara Yuga, Adi Shankaracharya, Jaitu Sav Math and Shri Shivrinarayan Math, Amla Navami Festival, Chitrotpala Ganga, Tradition, Rajeshree Mahant Ramsundar Das Ji Maharaj, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

इस अवसर पर आंवला नवमी का महत्व प्रतिपादित करते हुए राजेश्री महन्त जी महाराज ने कहा कि- कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है, इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है इस दिन किया गया पूजा- अर्चना, दान- पुण्य सभी अक्षय बना रहता है। भगवान श्री हरि की भक्ति की प्राप्ति होती है साधक को मोक्ष की प्राप्ति सुलभता से हो जाती है।

इस अवसर पर विशेष रूप से जगदीश मंदिर के पुजारी श्री त्यागी जी महाराज, मुख्तियार सुखराम दास जी, बृजेश केशरवानी,पूर्णेन्द्र तिवारी, वीरेन्द्र तिवारी, योगेश शर्मा निरंजन लाल अग्रवाल, सुबोध शुक्ला, कमलेश सिंह, हर प्रसाद साहू, हेमंत दुबे,देवालाल सोनी, गोपाल अग्रवाल, प्रमोद सिंह, लक्ष्मी सिंह चंदेल,ज्ञानेश शर्मा, सतीश साहू, रामखिलावन तिवारी, जगदीश यादव, भूपेंद्र पांडे,संतोष साहू, तेरस साहू, निर्मल दास वैष्णव, प्रतीक शुक्ला, पुरेन्द्र सोनी, रामचरण कर्ष, बलराम शुक्ला,सहित अनेक गणमान्य जन एवं नगर की माताएं बड़ी संख्या में उपस्थित थी। पूजा अर्चना पंडित नवीन शर्मा जी ने संपन्न कराया।

आंवला नवमी का महत्व

आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा का खास महत्व है. मान्यता है कि इस दिन दान आदि करने से पुण्य का फल इस जन्म में तो मिलता ही है साथ ही अगले जन्म में भी मिलता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदें टपकती हैं, इसलिए इस दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठने और भोजन करने की परंपरा है. ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है. इसके साथ ही अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है। आंवला या अक्षय नवमी के दिन से द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था। इस युग में भगवान श्रीहरि विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण ने जन्म लिया था। आंवला नवमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन-गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा प्रस्थान किया था। यही वो दिन था जब उन्होंने अपनी बाल लीलाओं का त्याग कर कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था। इसीलिए आंवला नवमी के दिन से वृंदावन परिक्रमा भी प्रारंभ होती है। आंवला नवमी के दिन ही आदि शंकराचार्य ने एक वृद्धा की गरीबी दूर करने के लिए स्वर्ण के आंवला फलों की वर्षा करवाई थी।

Category