सदर बाजार, टूरी हटरी, गायत्री नगर, आमापारा, अश्विनी नगर, लिली चौक, कोटा, गुढिय़ारी के जगन्नाथ मंदिरों में श्रद्धालुओं को काढ़े का प्रसाद वितरित
19 जून को नेत्रोत्सव मनाया के दिन भगवान स्वस्थ होकर नेत्र खोलेंगे...20 को है रथयात्रा
रायपुर (khabargali) प्राचीन परंपरा अनुसार भगवान जगन्नाथ स्वामी जी उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा हर साल ज्येष्ठ महीने की भीषण गर्मी में लू लग जाने व शीतल जल से स्नान करने के कारण बुखार और अतिसार( उल्टी, दस्त) से पीड़ित होते हैं। इस दौरान मानव शरीर पर लागू होने वाले सारे नियम भगवान पर भी लागू होते हैं। उनकी पूरी सेवा की जाती है। भगवान को पहले शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाएं दी जाती हैं और फिर औषधियों से बने तेल की मालिश की जाती है।
धार्मिक परंपरा के अनुसार बीमार होने के बाद से भगवान को खाना-पीना में भी परहेज रखना होता है। ऐसे में उन्हें दलिया, खिचड़ी और मूंग की दाल सहित हल्के खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है। 15 दिन तक परंपरा का निर्वहन करते हुए आयुर्वेद पद्धति से जगन्नाथ जी, दाऊ बलभद्र और बहन सुभद्रा का उपचार होता है। ऐसे में उन्हें आयुर्वेदिक काढ़े दिए जाते हैं। शास्त्रानुसार भगवान जगन्नाथ के अस्वस्थ होने को उनकी 'ज्वरलीला' कहा जाता है। इस दौरान श्रद्धालु केवल मंदिर के बाहर ही मत्था टेककर भगवान के स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं।
सदर बाजार, टूरी हटरी, गायत्री नगर, आमापारा, अश्विनी नगर, लिली चौक, कोटा, गुढिय़ारी के जगन्नाथ मंदिरों में भगवान को स्वस्थ करने के लिए अलग-अलग दिन औषधियुक्त काढ़ा पिलाने की रस्म निभाई जा रही है। 19 जून को नेत्रोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन भगवान स्वस्थ होकर नेत्र खोलेंगे। इसके अगले दिन 20 जून को भगवान अपनी प्रजा से मिलने के लिए रथ पर सवार होकर रथयात्रा के रूप में नगर भ्रमण पर निकलेंगे। इधर व्यापक पैमाने पर रथयात्रा महोत्सव की तैयारियां शुरू हो गई हैं। 18 जून को अमावस्या तिथि पर अंतिम काढ़ा पिलाएंगे। काढ़ा का प्रसाद ग्रहण करने श्रद्धालु मंदिर पहुंच रहे हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ को लगाए गए काढ़ा का प्रसाद ग्रहण करने पर सालभर तक रोगों से मुक्ति मिलती है। बंद पट के भीतर पुजारी भोग अर्पित करके मंदिर के बाहर प्रतीक्षारत श्रद्धालुओं को काढ़े का प्रसाद वितरित कर रहे हैं।भगवान के उपचार के लिए औषधियुक्त काढ़ा में दशमूली दवा तैयार की जाती है। जिसमें शाला परणी, बेल, कृष्ण पारणी, गम्हारी, अगीबथु, लबिंग कोली, अंकरांती, तिगोखरा, फणफणा, सुनररी, वृहती और पोटली मंदिर की बावड़ी के जल के साथ पीसकर काढ़ा बनाया जा रहा है। को मिलाकर दवा बनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान के अस्वस्थ होने के दौरान श्रद्धालु हालचाल जानने मंदिर के द्वार तक जाएं तो उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
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