पालघर में साधुओं की बर्बर हत्या के संदर्भ में छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने उठाए ज्वलंत प्रश्न

Paalghar sadhu murder, khabargali

रायपुर (khabargali) पालघर साधुओं की भीड़ द्वारा अमानवीय तरीके से हत्या के संदर्भ में छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने बुलेटिन जारी कर ज्वलंत प्रश्न उठाए हैं। सोसाइटी के संयोजक डॉ कुलदीप सोलंकी ने जो बुलेटिन जारी किया उसके प्रमुख अंश:

आज हम आपसे अत्यंत हृदयविदारक एवं शर्मनाक घटना जो महाराष्ट्र के पालघर में दो साधू सहित उनके ड्राइवर की हुई हत्या के संदर्भ में चर्चा करेंगे। जैसा की आप सबको विदित है जूना अखाड़ा के दो साधु श्री कल्पवृक्षगिरी महाराज एवं श्री सुशीलगिरी महाराज तथा उनके ड्राइवर की पालघर में अत्यंत बर्बरता पूर्वक हत्या; 15 पुलिस वालों के सामने थाने की अधिग्रहित क्षेत्र में कर दी गई। कुछ मीडिया ने बताया कि उग्र भीड़ आदिवासियों की थी, क्या आदिवासी ऐसा कर सकते है ? इस घटना ने हम सबको अंदर तक झकझोर दिया है । उससे भी बड़ी विडंबना - समाज के प्रबुद्ध वर्ग कहलाने वाले मीडिया, शिक्षित वर्ग एवं ओपिनियन मेकर्स की उदासीनता है।

कुछ अनसुलझे प्रश्नों पर हमारी टीम लगातार जवाब ढूंढने का प्रयास कर रही है किंतु मिल नहीं रहे हैं--

1. वर्तमान लाॅकडाउन में 200 से ढाई सौ लोग हथियारों सहित पालघर के थाने के सामने कैसे एकत्रित हो गए हैं?

2. भीड़ में साधुओं पर पहले ही हमला कर दिया था तथा उनकी गाड़ी बीच सड़क पर पलटा कर क्षतिग्रस्त कर चुकी थी। और गाड़ी पर पत्थर और धारदार हथियारों से हमला किया जा रहा था। उस दौरान स्थानीय पुलिस कहां थी ? फिर किस मजबूरी वश पुलिस के सिपाही उनको थाने से उत्तेजक भीड़ के सामने से बाहर निकालने की कोशिश कर रहे थे ? क्या यह स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर है ?

3. विभिन्न वीडियो में दिख रहा है कि पुलिस बल भी काफी संख्या में तैनात था किंतु उन्होंने उग्रवादियों को cordon off करके हिरासत में लेने के बजाएं उनके सामने वृद्ध साधुओं को चारे के रूप में क्यों डाल दिया ?

4. दो दिन बीतने के बाद भी हत्यारों का नाम क्यों नहीं बताया जा रहा है?

5. इंडियन एक्सप्रेस, NDTV जैसे मीडिया को झूठी खबरें फैलाने का बेरोकटोक कारोबार करने का अधिकार संविधान की किस धारा के अंतर्गत मिला हुआ है। क्या भारत सरकार इन पर कोई कार्यवाही नहीं कर सकती?

6. भारत सरकार खासकर गृह मंत्रालय का इस संदर्भ में एक भी वक्तव्य क्यों नहीं आया है क्या यह घटना उनके कार्यक्षेत्र में नहीं आती?

7. क्या भारत देश हिंदुओं के लिए सुरक्षित है? ऐसे अनेक प्रश्न हमारी टीम के समक्ष निरंतर खड़े हैं। जिसका उत्तर हम नहीं ढूंढ पा रहे हैं। समस्त सदस्यों से निवेदन है कि अगर उनके पास इनका कोई भी उत्तर हो कृपया बताएं ।

हमारी टीम ने इन घटनाओं की वजह का आंकलन किया तथा विभिन्न लोगों से बातचीत भी की जिनके का सार इस प्रकार है:

1. कोई व्यक्ति अकेला अपराध करें तब तो हमारी न्याय व्यवस्था उस को उचित दंड दे पाती है किंतु अगर बड़ा जनसमुदाय इकट्ठा होकर अपराध करें, सुनियोजित तरीके से अपराध करें तो अक्सर सारे के सारे अपराधी छूट जाते हैं।

2. सालों पुरानी समस्या -- न्याय मिलने तक का सफर बहुत लंबा और थकाने वाला होता है जिसे हम निर्भया के प्रकरण में देख चुके हैं अतः अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाते हैं।

3. अपराधियों पर गैरजरूरी दया दिखाई जाती है जिससे नए अपराधी जन्म लेते हैं।

4. हमारा सिनेमा चाहे वह बॉलीवुड हो या साउथ की फिल्में हो अपराध को एवं हिंसा को बहुत GLAMOURISE करके (बहुत सजाकर) पेश करते हैं जिसकी वजह से अपराध वृत्ति पोषित होती है।

कुल मिलाकर हमारा वर्तमान सामाजिक परिवेश क्रिमिनल का बोलबाला एवं सीधे सच्चे का मुंह काला हो गया है। और इससे दिन प्रतिदिन हमारी सामाजिक व्यवस्था अधोगति में जाने की आशंका है । क्या इसका कोई समाधान है ?

1. वर्तमान समय में हमें अपने मीडिया की जवाबदेही फिक्स करना अत्यंत आवश्यक है।

2. विभिन्न फिल्मों एवं टीवी सीरियल में हिंसा को ग्लैमराइज करने का काम तत्काल बंद होना चाहिए।

3. इसके साथ ही केंद्र सरकार को यह भी देखना चाहिए कि क्यों हमारे कोर्ट समय पर फैसले नहीं दे पा रहे हैं ।

4. कब तक जज और वकीलों की कमी की दुहाई दी जाती रहेगी? क्यों नहीं जल्द से जल्द न्याय व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए एवं जनहित में इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई हो। एक बात तो तय है की वर्तमान में सोशल मीडिया के माध्यम से अगर हम सब एकजुट होकर अपनी बात बार-बार, लगातार दोहराते रहें तो बड़ी से बड़ी सरकार को भी उसका संज्ञान लेना पड़ता है; तथा कार्रवाई करनी पड़ती है। अतः आप सबसे निवेदन है कि इस क्रूर हत्याकांड पर अपनी राय जरुर व्यक्त करें।