प्रचंड गर्मी इंसानों के लिए 'वरदान' भी है...

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ख़बरगली विशेष : 'नौतपा' के आज आखिरी दिन पर पढ़ें भीषण गर्मी का महत्व और वैज्ञानिक कनेक्शन

ख़बरगली@अजय सक्सेना

इस बार देश में नौतपा के एक दिन पहले से भीषण गर्मी का कहर जारी है. लोग हलकान हैं. हर दिन अधिकतम तापमान के नए-नए रिकॉर्ड बन रहे. लाखों लोग अस्पताल में भर्ती हुए तो सैकड़ों मौतें भी हुईं. नौतपा की शुरुआत 25 मई से हुई थी, आज 2 जून नौतपा का आखिरी दिन है. माना जाता है कि नौतपा जब से आरंभ होता है, उस दिन से लेकर आने वाले 9 दिनों तक धरती पर भीषण गर्मी होती है. शास्त्रों के अनुसार, जब ज्येष्ठ मास में सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करते हैं, तब-तब गर्मी बढ़ती है. इस अवधि में सूर्यदेव धरती के और करीब आ जाते हैं यानी इस दौरान गर्मी अपने चरम पर होती है. यही नहीं इस माह लू भी चलती है, जो लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. पर गर्मी इंसानों के लिए 'वरदान' भी है . इस लेख के जरिए ख़बरगली आपको बता रहा है नौपता और भीषण गर्मी का महत्व और वैज्ञानिक कनेक्शन.

वैज्ञानिकों का 'नौतपा' को लेकर यह कहना है

विज्ञान और वैज्ञानिक नौतपा को एक ट्रेडिशनल नॉलेज मानते है. जिसे साथ लेकर चला जाता है. इसे मानना चाहिए लेकिन 'नौतपा' सिर्फ एक शब्द है. मई के तीसरे हफ्ते से जून के पहले हफ्ते तक करीब 15 दिन देश में भयानक हीटवेव चलती है. इसे हॉट वेदर सीजन कहते हैं. इसलिए अगर कहीं पर नौतपा शब्द का इस्तेमाल होता है, तो उसमें गलत कुछ नहीं है. साइंस नौतपा को नहीं मानता है. वैज्ञानिकों का यह कहना है कि अगर गर्मी 9 के बजाय 15 दिन चलती रही, महीना भर चलती रही तो क्या उसे भी नौतपा कहेंगे? जिस तरह गर्मी में नौतपा शब्द का इस्तेमाल होता है. वैसे ही सर्दियों में कश्मीर में चिल्लई कलां का इस्तेमाल किया जाता है. यानी भयानक सर्दियों के 40 दिन.

गर्मी के दीर्घकालिक फायदे

गर्मी के बहुत सारे तात्कालिक नुकसान हैं तो कुछ दीर्घकालिक फायदे भी हैं. अगर खेतीबाड़ी के हिसाब से देखा जाए तो गर्मी के ये 9 दिन बेहद खास होते हैं. किसान ऐसा मानते आए हैं कि इन दिनों में जितनी ज्यादा गर्मी पड़ेगी, बारिश उतनी ही जमकर होगी. अधिक गर्मी की वजह से कीड़े-मकौड़े, जहरीले जीव-जंतुओं के अंडे नष्ट होंगे, चूहों की संख्या नियंत्रित रहेगी और बुखार के वायरस नष्ट होंगे. सूरज की तीखी किरणों से नदी, तालाब और पोखर का जल बैक्टीरिया मुक्त हो पाता है. अगर सूरज की गर्मी न हो तो जल इंसानो के इस्तेमाल के लायक बचेगा ही नहीँ.

वहीँ नौतपा को लेकर मारवाड़ी में एक कहावत प्रसिद्ध है, ‘दोए मूसा, दोए कतरा, दोए टिड्डी, दोए ताव.. दोयां रा बादी जल हरे, दोए विसर, दोए बाव..इस कहावत का समर्थन मौसम वैज्ञानिक भी करते हैं. अगर ज्यादा गर्मी नहीं पड़ेगी और लू नहीं चलेगी तो कीड़े मकौड़े अधिक रहेंगे, सांप-बिच्छू की पैदावार अधिक होगी. फसल को नुकसान पहुंचाने वाले कीड़े बढ़ेंगे, टिड्डियों के अंडे नष्ट नहीं होंगे. ऐसे में जीवन के लिए जितनी बारिश और सर्दी जरूरी है उतनी ही गर्मी भी जरूरी है. ‘जेठ चले पुरवाई, सावन धूल उड़ाई’ की कहावत भी इसी लिए कही गई है.

चिकित्सकों का यह कहना है

वहीं चिकित्सक कहते हैं, ‘हमारे शरीर के लिए, अत्यधिक गर्म मौसम के संपर्क में आने से कुछ स्वास्थ्य लाभ भी होते हैं. ज्‍यादा तापमान के दौरान, हमारा शरीर हीट शॉक प्रोटीन (एचएसपी) और कोल्‍ड शॉक प्रोटीन नाम के दो बेहद महत्‍वपूर्ण पदार्थों का उत्पादन करता है. ये दो प्रोटीन हैं जिनकी वजह से शरीर में इम्‍यूनिटी यानि रोग प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा मिलता है. अक्‍सर गंभीर बीमारी कैंसर जैसी स्थिति में अनियंत्रित होने वाली कोशिकाओं को लेकर ये प्रोटीन तय करते हैं कि क्षतिग्रस्त कोशिकाएं मर जाएं. साथ ही नई कोशिकाएं जन्‍म लें. इतना ही नहीं ये दोनों प्रोटीन हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं, ताकि किसी भी रोग से लड़ा सके. खास बात है कि ये शरीर में तनाव भी कम करते हैं और मस्तिष्क की रक्षा करते हैं.’

हीट शॉक प्रोटीन कितना जरूरी?

 हीट शॉक प्रोटीन कितने जरूरी हैं इस पर एल्सेवियर द्वारा प्रकाशित पुस्तक ब्रेनर इनसाइक्लोपीडिया ऑफ जेनेटिक्स में हीट शॉक प्रोटीन पर एक अध्याय में रूसी विज्ञान अकादमी की साइबेरिया शाखा के साइटोलॉजी और जेनेटिक्स संस्थान के मिखाइल पोरोमेन्को कहते हैं, ‘हीट शॉक प्रोटीन विशेष प्रोटीन होते हैं. ये तब बनते हैं जब कोशिकाएं अपने सामान्य विकास तापमान से ऊपर के तापमान के संपर्क में आती हैं. एचएसपी का संश्लेषण एक सार्वभौमिक घटना है, जो मनुष्यों के अलावा अध्ययन किए गए सभी पौधों और जानवरों की प्रजातियों में भी होती है. शॉक प्रोटीन और मेंटल हेल्‍थ- ‘शॉक प्रोटीन का कॉग्निटिव क्षमताओं पर पॉजिटिव असर देखा गया है. इन प्रोटीन के द्वारा ब्रेन की खतरनाक अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी कुछ बीमारियों की प्रोग्रेस को धीमा किया जा सकता है. ये प्रोटीन ब्रेन में नुकसान को रोकते हैं. यहां तक कि अवसाद के रोगियों में भी यह फायदेमंद हैं.