राजस्थान विधानसभा में पारित राइट टू हेल्थ बिल का एएचपीआई छत्तीसगढ़ ने किया पुरजोर विरोध

Right to Health Bill passed in Rajasthan Legislative Assembly, AHPI Chhattisgarh strongly opposes, Dr. Rakesh Gupta, General Secretary Atul Singhania, khabargali

चिरंजीवी योजना के होते हुए इस बिल का कोई औचित्य नहीं 

निजी अस्पतालों से बिना सामंजस्य बनाये पारित किया गया बिल 

85% से अधिक गंभीर मरीजों का इलाज निजी क्षेत्र करता है   

मरीज और डॉक्टर के आपसी विश्वास को कमजोर करेगा राइट टू हेल्थ बिल 

निजी अस्पतालों का संचालन अव्यवहारिक बनाएगा यह बिल 

एएचपीआई महामहिम राज्यपाल से बिल पर हस्ताक्षर नहीं करने का करेगा अनुरोध 

रायपुर (khabargali) एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स इंडिया (एएचपीआई) छत्तीसगढ़ शाखा ने राजस्थान विधानसभा में 21 मार्च को पारित हुए  राइट टू हेल्थ बिल का सैद्धांतिक रूप से पुरजोर विरोध किया है।

एएचपीआई छत्तीसगढ़ शाखा के अध्यक्ष डॉ राकेश गुप्ता और महासचिव अतुल सिंघानिया ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि राजस्थान सरकार जब पहले ही चिरंजीवी योजना के अंतर्गत प्रदेशवासियों के इलाज के लिए 25 लाख रुपए तक का बीमा घोषित कर चुकी है तब इस प्रकार के राइट टू हेल्थ बिल का कोई औचित्य नहीं रह जाता क्योंकि चिरंजीवी योजना के अंतर्गत प्रदेश के अधिकांश अस्पताल पहले से ही सेवाएं दे रहे हैं। राजस्थान में 65% से अधिक सामान्य मरीजों और 85% से अधिक गंभीर मरीजों को प्राइवेट सेक्टर द्वारा स्वास्थ्य सुविधाएं दी जा रही हैं। ऐसे में राजस्थान में लागू किया गया राइट टू हेल्थ बिल एकतरफा और अप्रासंगिक है जिसे बिना किसी पारदर्शिता के और बिना निजी अस्पताल संचालकों से सामंजस्य बनाये पारित किया गया है।  

ज्ञात हो 70% से अधिक अस्पताल कुछ चुनिंदा स्पेशलिटी की सेवाएं ही देते हैं। मल्टीस्पेशलिटी की सुविधाएं केवल कॉरपोरेट अस्पतालों में और टियर 1 श्रेणी के शहरों में ही होती हैं। चिकित्सकीय आपातकाल में मरीजों को मल्टीस्पेशलिटी सुविधाओं की जरूरत होती है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई गर्भवती महिला गंभीर स्थिति में हृदय रोग के अस्पताल में पहुँच जाए या कोई एक्सीडेंट का मरीज प्रसूति के अस्पताल में पहुँच जाए तो उन्हें किस प्रकार आपातकालीन चिकित्सा सुविधा मिलेगी? 

डॉ. गुप्ता ने कहा कि राजस्थान सरकार द्वारा जल्दबाजी में लाया गया यह राइट टू हेल्थ बिल मरीज और डॉक्टर के बीच आपसी समझ और विश्वास की भावनाओं को कमजोर करेगा। राइट टू हेल्थ में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि चिकित्सकीय आपातकाल में मरीज की स्थिति स्थायित्व में आते तक उसके इलाज का खर्च कौन उठाएगा।  ऐसी स्थिति में अस्पतालों को आर्थिक हानि और मरीजों से टकराव की प्रबल संभावना होगी।  डॉ. गुप्ता ने कहा कि एएचपीआई अब राजस्थान के महामहिम राज्यपाल से मिलकर अनुरोध करेगा कि मरीजों के हित को देखते हुए जब तक उपरोक्त समस्याओं का निराकरण नहीं होता तब तक महामहिम इस बिल पर अपने हस्ताक्षर न करें।

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