
वरिष्ठ पत्रकार यशवंत गोहिल के फेस बुक वाल से
जैसे ही हम रशियन गर्ल सुनते हैं दिमाग़ में एक छवि बनती है…लड़कों के चेहरे पर एक अलग मुस्कान उभरती है और 20-25 हजार रुपए का ट्रांसेक्शन बताया जाता है। कपिल शर्मा के एक शो में कपिल कहते हैं….‘ओ हो…रशियन…15 हजार..’। रशियन गर्ल्स पूरे देश में परोसी जा रही हैं।छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी पिछले दिनों उजबेकिस्तान की एक लड़की रशियन गर्ल बताकर सुर्खियों में बनी रही।
इसकी नैतिकता और अनैतिकता के संदर्भ में मैं यहां कुछ नहीं कहना चाहता। इस पर लंबी बहस हो सकती है। हमने समाज का एक ऐसा रूप गढ़ा है, जिसमें पर्दे के पीछे नैतिकता का आदर्श बने मूर्तिमान ‘अनैतिक’ हो जाते हैं और ‘नैतिक कर्म’ करते हैं। ख़ैर, वो रशियन गर्ल कल जेल से रिहा हो गई। उसे जमानत मिल गई।
इस रशियन गर्ल ने पिछले दिनों वीआईपी रोड की तरफ बिलासपुर के व्यक्ति के साथ एक एक्सीडेंट कर दिया। उस व्यक्ति को तो पहले ही जमानत मिल गई, लेकिन ये लड़की फंस गई थी। उसे अब जमानत मिली है। जमानत का आधार ये रहा कि उस लड़की को गाड़ी चलानी नहीं आती थी। पुलिस ने जिस बयान पर दस्तखत करवाए, वो हिंदी में लिखा हुआ था और उसे हिंदी पढ़नी नहीं आती। वो कल शाम बाहर आ गई।
कहानी ये है कि उस लड़की का एक बेटा है चार साल का। वो उजबेकिस्तान में है। इस लड़की का पासपोर्ट जब्त है। उसे हिंदी नहीं आती। अंग्रेजी में भी हाथ तंग है। पैसे बिल्कुल नहीं हैं। वकील की फीस देने के लिए भी नहीं। जेल से बाहर आते ही उसने अपने 4 साल के बेटे से उजबेकिस्तान में वीडियो कॉल से बात की। वो अपने बेटे को देखकर रो रही थी। उसे रोते हुए सभी देख रहे थे, लेकिन मजबूरी वसूलने का लड्डू भी मन में फूट रहा था। उस वक्त वो एक मां थी। मुनव्वर राना साहब का एक शेर है-
“ख़ुदा ने ये सिफ़त दुनिया की हर औरत को बख्शी है कि वो पागल भी हो जाए तो बेटे याद रहते हैं”
वास्तव में ये लड़की पागल सी ही हो गई है। उजबेकिस्तान के दूतावास ने इस लड़की को लेने से शायद इनकार कर दिया है। यहां उसके पास पैसे नहीं है। उसे जो लेकर आए थे, वो सारे दलाल जेल में बंद हैं। होटल वाले रूम नहीं दे रहे। जिस वकील ने केस लड़ा, उसको भी पैसे नहीं दिए हैं। उस लड़की की मदद करने वाले अपनी पत्नी के साथ जा रहे हैं, ताकि किसी तरह का दाग़ न लगे। वो हर कदम में संदेहभरा जीवन जी रही है। उसके इस पक्ष को लिखने पर मुझपर भी तंज किए जा सकते हैं, लेकिन ये एक पक्ष तो है न..।
प्रोस्टीट्यूशन समाज में सदियों से एक व्यवस्था रही है। कभी खुले तौर पर एक हिस्से में बनाई जाती थी। आज वो बंद व्यवस्था का हिस्सा है। हमारे इतिहास में ऐसी कहानियां भी लिखी गईं, जिसमें ‘नगरवधुओं’ ने देश के लिए जासूसी का काम किया है। आम्रपाली जैसे नाम सुंदरता और संसर्ग के लिए विख्यात हुए, जिसने बाद में बुद्ध की शरण ली और सबकुछ जानते हुए बुद्ध ने उसे शरण दी।
लड़के या लड़कियों की खरीद-बिक्री किसी भी मानवतावादी देश में सबसे बड़ा सामाजिक अपराध होना चाहिए। इंसानों के लिए दुनिया बनीं और इंसान ही खरीदे-बेचे जाने लगे। कहीं देह बिक रही है, कहीं ज़मीर और ईमान। स्त्रियों के पास बेचने के लिए शरीर है और पुरुषों के पास उनका ज़मीर और ईमान। फर्क इतना ही है?
छत्तीसगढ़ की 41 लड़कियां बिहार में अभी ही रेस्क्यू की गई थीं। इन लड़कियों को इन्हीं के मां-बाप ने कुछ हजार रुपयों के लिए बेच दिया था। पता चला कि ये इन लोगों की परंपरा रही है। ये लोग ऐसे ही करते आ रहे हैं। जशपुर हमारे यहां मानव तस्करी के लिए बदनाम रहा है। हर बेची जाने वाली लड़की की अपनी एक कहानी है। सोचिए, कितनी कहानियां रोज़ लिखी जा सकती हैं, अगर कोई लिखना चाहे तो…।
हम आज उसी समाज में जी रहे हैं, जहां न सिर्फ वाइफ स्वैपिंग जैसे शब्द गढ़ लिए गए, बल्कि सारे रिश्तों को भेदने वाली कहानियां लिखी जा रही हैं। एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में हर पांच घंटे में एक बच्ची से रेप हो रहा है। हर 10 में से 9 रेप के केस में आरोपी या तो रिश्तेदार हैं या फिर पड़ोसी या करीबी। ये एक बीमार सोच वाले समाज का आईना है। मोबाइल में बंद समाज की मानसिकता का खुलापन है। मैंने किसी संदर्भ में बहुत पहले लिखा था-
“दुनिया की सबसे सस्ती वस्तु है किसी स्त्री की देह और दुनिया की सबसे महंगी वस्तु है उसी स्त्री का मन”
लोगों ने देह खरीदा और मन को निचोड़ते रहे। कई लड़कियों ने पुरुषों की इस कमज़ोरी को पैसे कमाने का या अपने शौक पूरा करने का ज़रिया बना लिया। और ये अब बढ़ता जा रहा है। इसमें अब लड़की उजबेकिस्तान की हो, रशिया की हो, बैंकॉक की हो या इंडिया की, किसी को फर्क नहीं पड़ता। उजबेकिस्तान की वो लड़की पैसे के लिए बिकी, अपना शरीर बेचा और अब अपनी आत्मा से दूर है। मेरे रिपोर्टर से बात करती हुई कहती है कि बिस्तर पर भी सोती हूं तो बेटा याद आता है। यानी उस वक़्त कोई पुरुष उसकी देह को स्त्री समझ रहा होता है। वो उसी के पैसे भी दे रहा है, लेकिन स्त्री की देह और उसके मन में बहुत फर्क है। वो वैश्या हो सकती है, लेकिन एक मां भी है। एक मानवतावादी समाज को एक मां की जो मदद हो सके, करनी चाहिए। बाकी बिके हुए तो बहुत से लोग हैं…बिकना अच्छा है या बुरा, ये समाज तय करे।
-यशवंत गोहिल
(लेखक दैनिक भास्कर डिजिटल के स्टेट एडिटर हैं )
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