ग्रामीण जनता तक सही इलाज पहुंचाना मकसद
रायपुर (khabargali) राजधानी के डॉ. गीतेश अमरोहित ने छत्तीसगढ़ चिकित्सा शब्दावली की एक किताब लिखी है। इस तरह की किताब राज्य में पहली बार किसी डॉक्टर ने बनाई है। उनका मानना है कि जब कोई डॉक्टर किसी मरीज को बीमारी के बारे में पूछते हैं तो ग्रामीण मरीज छत्तीसगढ़ी में ही बातचीत करते हैं। ताकि चिकित्सा शब्दावली से गैर छत्तीसगढिय़ा डॉक्टर भी मरीज की परेशानी ठीक से समझ कर उनका इलाज कर सके। अभी हालिया वर्षों में मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया के निर्देशानुसार राज्य के मेडिकल कॉलेजों में स्थानीय भाषा की कक्षाएं प्रथम वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए लगायी जा रही है। ऐसे में यह किताब अत्यंत उपयोगी है। बकौल डॉ. गीतेश अमरोहित छत्तीसगढ़ में ग्रामीण जनता तक सही इलाज पहुंचाना है तो उनकी ही भाषा में सुनना होगा, निर्देश परामर्श भी उसी भाषा में देनी होगी। चीन या रूस जैसे कई देशों में चिकित्सा पाठ्यक्रम में पहले वर्ष के दौरान वहंा की स्थानीय भाषा का ज्ञान कराया जाता है। बाकायदा इसकी परीक्षा ली जाती है। इसका सीधा उद्देश्य है कि मरीज की बातों को डॉक्टर आसानी से समझे और उसके बाद इलाज करे।
इन उदाहरण से समझें
छत्तीसगढ़ी में कोथा पिरात हे का मतलब हिंदी भाषा या गैर छत्तीसगढिय़ा डॉक्टर पेट दर्द से समझ लेता है। लेकिन हकीकत में नाभि के निचले हिस्से में दर्द से होता है। हो सकता है कि मरीज के आंत संबंधी कोई बीमारी हो। माहवारी की समस्या हो या कोई स्त्री रोग हो सकता है। नस में पीरा होत हे का मतलब नस में दर्द हो रहा है। हिन्दी में नस का मतलब नर्व से होता है जबकि छत्तीसगढ़ी में नस खून की नली को कहते हैं।
इस पुस्तक में चिकित्सा प्रमाण पत्र, विकलांगता प्रमाण पत्र, लेटर हेड, भर्ती दस्तावेज, ओपीडी स्लिप, डिस्चार्ज स्लिप, नर्सेस नोट, फिजियोथेरेपी नोट जैसे अनेकों मेडिकल दस्तावेजों का छत्तीसगढ़ी रूपांतरण दिया गया है।
जानें डॉ. गीतेश अमरोहित को
डॉ. गीतेश अमरोहित ने लंबे समय तक राजधानी रायपुर के मेडिकल कॉलेज अस्पताल के न्यूरो सर्जरी विभाग में सेवाएं दी हैं। मेडिकल पुस्तकों के लेखन के बाद उन्होंने छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के क्षेत्र में लेखन कार्य शुरू किया। डॉ. अमरोहित की मानक छत्तीसगढ़ी शब्दकोश, छत्तीसगढ़ी कहावत कोश, छत्तीसगढ़ी मुहावरा कोश, छत्तीसगढ़ी पहेलियां, मानक छत्तीसगढ़ी व्याकरण, छत्तीसगढ़ बहुभाषिक कोश, छत्तीसगढ़ी पहाड़ा, छत्तीसगढ़ी निबंध, छत्तीसगढ़ी पत्र लेखन सहित छत्तीसगढ़ एवं छत्तीसगढ़ी भाषा पर पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा डॉ. अमरोहित द्वारा लिखी किताब कौशल्या का हिन्दी एवं अंगे्रेजी भाषा में भी अनुवाद हुआ है।
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