नई दिल्ली (khanargali) आज प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती है। देश को आजाद कराने में जितना योगदान महात्मा गांधी का रहा है, उतना ही नेताजी का भी माना जाता है। नेताजी आज भी दुनियाभर के लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनका प्रमुख नारा हर भारत वासी के जहन में आज भी बसा है- 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।' उनकी जयंती के मौके पर देश के कई हिस्सों में विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
जानिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़े कुल 38 रोचक तथ्य जिन्हें पहली बार सिर्फ ख़बरगली प्रकाशित कर रहा है..
1.सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओडिशा, बंगाल डिविजन के कटक में हुआ था। उनके परिवार में 14 सदस्य थे। वह अपने माता-पिता के 14 बच्चों में 9वीं संतान थे। पिता जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वकील थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था।
2. नेताजी के कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर आपत्तिजनक बयान पर उन्होंने खासा विरोध किया, जिसकी वजह से उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था।
3. नेताजी ने इंग्लैंड में 1920 में ब्रिटिश सरकार की प्रतिष्ठित आईसीएस की परीक्षा पास करने के बाद भी उन्होंने वह नौकरी नहीं की। उन्होंने आजादी के लिए भारत के संघर्ष के बारे में सुना तो 23 अप्रैल, 1921 को नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 22 अप्रैल 1921 को भारत सचिव ई०एस० मान्टेग्यू को आईसीएस से त्यागपत्र देने का पत्र लिखा। सुभाष जून 1921 में मानसिक एवं नैतिक विज्ञान में ट्राइपास (ऑनर्स) की डिग्री के साथ स्वदेश वापस लौट आये।
4. सुभाषचंद्र बोस इंग्लैंड से भारत लौटकर चितरंजन दास के साथ जुड़ गए थे। युवा सुभाष चितरंजन दास को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
5. नेताजी का मानना था कि भगवत गीता उनके लिए प्रेरणा का एक बड़ा स्रोत थी।वह जब भी उदास या अकेले होते थे तो भगवत गीता का पाठ जरूर करते थे। वह स्वामी विवेकानंद के व्यक्तित्व और उनकी बातों से भी खासे प्रभावित थे। वे विवेकानंद के सार्वभौमिक भाईचारे, उनके राष्ट्रवादी विचारों और समाज सेवा पर जोर देने की शिक्षाओं पर भी विश्वास करते थे।
6. नेताजी 1920 और 1930 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल के युवा लीडर थे। 1921 में प्रिंस ऑफ वेल्स के भारत आगमन का उन्होंने विरोध किया था। देशबन्दु चितरंजन दास के साथ युवा सुभाष ने इस शाही स्वागत के विरोध में पुरजोर आवाज़ उठाई थी।
7. 1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया तब कांग्रेस ने उसे काले झण्डे दिखाये। कोलकाता में सुभाष ने इस आन्दोलन का नेतृत्व किया।
8. 1928 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में कोलकाता में हुआ। इस अधिवेशन में सुभाष ने खाकी गणवेश धारण करके मोतीलाल नेहरू को सैन्य तरीके से सलामी दी।
9. 26 जनवरी 1931 को कोलकाता में राष्ट्र ध्वज फहराकर सुभाष एक विशाल मोर्चे का नेतृत्व कर रहे थे तभी पुलिस ने उन पर लाठी चलायी और उन्हें घायल कर जेल भेज दिया।
10. 1934 में पिताजी की मृत्यु पर तथा 1936 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लेने के लिए भारत आए।
11. नेताजी को दोनों ही बार ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर वापस देश से बाहर भेज दिया।
12. नेताजी अपने जीवनकाल में नेताजी को 11 बार कारावास की सजा काटी।
13. नेताजी की किताब 'द इंडियन सट्रगल' 1935 में प्रकाशित हुई।
14. 1938 और 1939 में कांग्रेस अध्यक्ष भी बने। हालांकि, 1939 में महात्मा गांधी और कांग्रेस आलाकमान के साथ मतभेदों के बाद उन्होंने कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था औऱ पार्टी से अलग हो गए।
15. जब सुभाष जेल में थे तब गान्धीजी ने अंग्रेज सरकार से समझौता किया और सब कैदियों को रिहा करवा दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारियों को रिहा करने से साफ इन्कार कर दिया। नेजाती ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने का भरसक प्रयत्न किया।भगत सिंह को न बचा पाने पर सुभाष गांधी और कांग्रेस से नाराज हो गए।
16. सुभाष गांधी जी की अहिंसा की विचारधारा से सहमत नहीं थे। उनका मानना था कि आजादी हासिल करने के लिए सिर्फ अहिंसात्मक आंदोलन ही पर्याप्त नहीं होंगे और सशस्त्र प्रतिरोध की वकालत की।
17. जलियांवाला बाग हत्याकांड ने उन्हें इस कदर विचलित कर दिया कि, वे भारत की आजादी की लड़ाई में कूद पड़े।
18. 1941 में उन्हें एक घर में नजरबंद करके रखा गया था, जहां से वे भाग निकले। सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश सरकार को अपनी योजनाओं से कई बार चकमा दिया था। एक ऐसा ही वाक्या उनके नजरबंद रहने के दौरान सामने आया। जब वह सभी को चकमा देकर काबुल के रास्ते जर्मनी पहुंच गए। वहां उन्होंने हिटलर से मुलाकात की। खास बात यह थी कि बोस ने जर्मनी तक पहुंचने के लिए कोलकाता से गोमो तक कार से यात्रा की, इसके बाद वह पेशावर तक ट्रेन से पहुंचे। फिर वह वहां से काबुल पहुंचे। वहां कुछ दिन रहने के बाद फिर वह भारत की स्वतंत्रता में सहयोग के लिए नाजी जर्मनी और जापान गए। ऐसा कहा जाता है कि बोस ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया था।
19. जर्मनी में वह ऑस्ट्रेलियाई मूल की महिला एमिली शेंकल से मिले और दोनों ने सन् 1942 में बाड गास्टिन में हिन्दू पद्धति से विवाह रचा लिया। उनकी एक बेटी अनीता बोस है। जो एक प्रसिद्ध जर्मन अर्थशास्त्री हैं।
20. कहा जाता है कि जब नेता जी ने जापान और जर्मनी से मदद लेने की कोशिश की थी तो ब्रिटिश सरकार ने 1941 में उन्हें ख़त्म करने का आदेश दिया था।
21. उन्होंने 1942 में जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किया था। उनकी आजाद हिंद फौज में ब्रिटिश मलय, सिंगापुर और अन्य दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्सों के युद्धबंदी और बागानों में काम करने वाले मजदूर शामिल थे। बाद में इसमें बर्मा और मलाया में स्थित भारतीय स्वयंसेवक भी भर्ती किए गए। आज हिंद फौज की स्थापना करने के बाद सुभाष चंद्र बोस ने युवाओं को अपनी सेना में शामिल करने की योजना बनाई।इसके लिए उन्हें देश के युवाओं से अनुरोध किया कि वह उनकी फौज में शामिल होकर उनका साथ दें। इसी समय उन्होंने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा दिया था।बोस चाहते थे कि वह अपनी फौज की मदद से भारत को ब्रिटिश सरकार से आजाद कराएं।
22. 21 अक्टूबर 1943 को सुभाष बोस ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी। इस सेना को जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी।
23. 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर आक्रमण किया और कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त भी करा लिया।
24. आज़ाद हिंद फौज में करीब 8500 सैनिक शामिल थे। इसमे एक महिला यूनिट भी थी जिसकी कप्तान लक्ष्मी स्वामीनाथन थी।
25.19 मार्च 1944 के दिन पहली बार आजाद हिंद फौज के लोगों ने झंड़ा फहराया था।
26. आजादी के लिए कोहिमा का युद्ध 4 अप्रैल 1944 से 22 जून 1944 तक लड़ा गया एक लंबा और बहुत ही भयानक युद्ध था।
27. 5 जुलाई 1943 को सिंगापुर के टाउन हाल के सामने 'सुप्रीम कमाण्डर' के रूप में नेता जी ने अपनी सेना को सम्बोधित करते हुए 'दिल्ली चलो' का नारा दिया।
28. आजाद हिंद सरकार का अपना बैंक भी था जिसे आजाद हिंद बैंक का नाम दिया गया था। इसकी स्थापना साल 1943 में हुई। इस बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये तक का नोट जारी किया था।
29. एक लाख रुपये के नोट पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी।
30. इस सरकार का अपना डाक टिकट और झंडा तिरंगा था। वहीं राष्ट्रगान जन-मन-गण को बनाया गया था। एक दूसरे के अभिवादन के लिए जय हिंद के नारे का इस्तेमाल किया जाता था।
31. उन्होंने जर्मनी में आजाद हिंद रेडियो स्टेशन की भी स्थापना की। 32. 6 जुलाई 1944 को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से महात्मा गांधी के नाम एक प्रसारण जारी करके बापू से आशीर्वाद और शुभकामनाएं मांगी। 32. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी उन्हें बहुत मानते थे। उन्होंने नेताजी को 'देशभक्तों के देशभक्त' की उपाधि से नवाजा था। दिल्ली में संसद भवन में उनका विशालकाय पोर्टेट लगा है तो पश्चिम बंगाल विधानसभा भवन में उनकी प्रतिमा लगाई गई है।
33. सुभाष चंद्र बोस आजाद हिंद फौज की स्थापना के बाद से ही वर्दी पहनने लगे थे। उन्हें अपनी वर्दी से सबसे ज्यादा प्यार था।कहा जाता है कि वह युवाओं में जोश भरने के लिए ऐसा करते थे।आजाद हिंद फौज की स्थापना के बाद से उनकी जितनी भी तस्वीरें सामने आई उनमें उन्होंने वर्दी पहनी हुई है। उनका मानना था कि किसी चीज को पाने के लिए उसके साथ जुड़ना बहुत जरूरी है।
34. सुभाष चंद्र बोस महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता बुलाने वाले सबसे पहले शख्स थे। यह बहुत कम लोगों को ही पता है कि उन्होंने महात्मा गांधी से कुछ मुलाकात के बाद ही उन्हें यह उपाधि दी। इसके बाद अन्य लोग भी गांधी जी को राष्ट्रपिता बोलने लगे। हालांकि कुछ समय बाद वह महात्मा गांधी और उनकी पार्टी से अलग हो गए। बोस ने रंगून के रेडियो चैनल से महात्मा गांधी को संबोधित करते हुए पहली बार राष्ट्रपिता कहा था।
35. भारतमाता के वीर सपूत नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में रहस्यमयी ढंग से मौत हो गई थी। नेताजी की मौत आज भी लोगों के लिए पहेली बनी हुई है। तमाम किस्से कहानियों में उन्हें जीवित बताया गया है। नेताजी ने जापानी शासित फॉर्मोसा जो अब ताइवान के नाम से जाना जाता है से जापान के लिए उड़ान भरी थी। लेकिन उनका विमान ताइवान की राजधानी ताइपे में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया। वह टोक्यो जा रहे थे। विमान में अचानक से तकनीकी खराबी आ जाने के कारण आग लग गई और जलते-जलते वह क्रैश हो गया। बताया जाता है कि इस हादसे में नेताजी बुरी तरह से जल गए थे और उन्होंने पास के ही जापान के अस्पताल में दम तोड़ दिया। यह भी माना जाता है कि विमान हादसे में जो व्यक्ति बुरी तरह से जख्मी था और जिसने अस्तपाल में दम तोड़ा वह वाकई में सुभाषचंद्र बोस थे भी या नहीं। यह भी संभावना जताई गई के वह हादसे में बच गए हों। सरकार ने इस मामले की जांच के लिए तमाम जांच समितियां गठित कीं, लेकिन आज तक उनकी मौत कोई पुख्ता सुबूत नहीं मिल पाए हैं।
36. हालांकि, उनकी मौत के बारे में कई विवाद और रहस्य हैं। उनके कई समर्थकों ने कहा कि उनकी मौत विमान दुर्घटना के कारण नहीं हुई है।
37. कहा जाता है कि नेताजी, गुमनामी बाबा बनकर फैजाबाद में लंबे समय तक रहे। 1985 में जब गुमनामी बाबा की मृत्यु हुई तो उनके सामान को देखकर सब दंग रह गए। गुमनामी बाबा फर्राटेदार अंग्रेजी, बांग्ला और जर्मन बोलते थे। उनके पास महंगी सिगरेट, शराब, अखबार, पत्रिकाएं आदि थीं। उनके सामान से नेताजी की निजी तस्वीरें भी मिलीं जिससे कयास लगाए गए कि वही नेताजी थी। रॉलेक्स की घड़ी, आजाद हिंद फौज की यूनीफॉर्म, 1974 में आनंद बाजार पत्रिका में छपी 24 किस्तों वाली 'विमान दुर्घटना की कहानी', शाहनवाज और खोसला आयोग की रिपोर्ट, आदि मिले। कहते हैं गुमनामी बाबा का अंतिम संस्कार उसी जगह किया गया जहां भगवान श्रीराम ने जल समाधि ली थी।
38. कहा जाता है कि बोस की पराक्रमी सेना ‘आजाद हिंद फौज’ को लेकर एक महत्वपूर्ण किताब ‘ए हिस्ट्री ऑफ इंडियन नेशन आर्मी 1942-45’ लिखी गई थी जिसके छह पन्ने आज भी लोगों के सामने नहीं आ सके हैं। वो 186 से 191 पेज थे। इन पन्नों को पूरी तरह से गोपनीय रखा गया है। दरअसल, यह किताब भारत सरकार द्वारा संकलित है। इस किताब को प्रसिद्ध इतिहासकार प्रफुल्ल चंद गुप्ता की निगरानी में संकलित किया गया है। इस किताब को लेकर इन पन्नों के कारण ही विवाद पैदा होता रहा है। इन छह पन्नों में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विमान हादसे से जुड़ी ऐसी कई जानकारियां मौजूद हैं। इस किताब को जनता के समाने लाने की बात लगातार पहले भी
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