मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने महादेव घाट पर किया कार्तिक पूर्णिमा स्नान

punni mela

 कार्तिक पूर्णिमा स्नान कर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की

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रायपुर (khabargali) छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के महादेव घाट के खारून नदी के तट पर पुन्नी मेले में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है।कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही पिछले 600 वर्षों से आस्था और विश्वास के साथ इस मेले का आयोजन हो रहा है।  मंगलवार तड़के सुबह मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी पहुंचे और खारून में डुबकी लगाकर प्रदेशवासियों की सुख-समृद्धि की कामना की। इस दौरान भूपेश नदी में तैरे और उन्होंने पानी में कलाबाजी भी लगाई। इसके तुरंत बाद मुख्यमंत्री नदी तट स्थित हटकेश्वर महादेव मंदिर पहुंचे और  जलाभिषेक व विशेष पूजा-अर्चना कर मेले की विधिवत शुरुआत की और प्रदेश के विकास के लिए प्रार्थना की । मुख्यमंत्री परंपरागत गंगा आरती कार्यक्रम में सम्मिलित हुए व दीपदान किया। 

इस अवसर पर आयोजित मंचीय कार्यक्रम में लोककलाकार श्री दिलीप षडंगी द्वारा राज्यगीत ‘अरपा पैरी के धार’ की प्रस्तुति दी गयी । कार्यक्रम में विधायक रायपुर पश्चिम श्री विकास उपाध्याय, विधायक रायपुर ग्रामीण श्री सत्यनारायण शर्मा, महापौर प्रमोद दुबे, श्री रामसुंदर दास, श्री प्रदीप शर्मा, श्री विनोद वर्मा सहित अन्य गणमान्य नागरिक और बड़ी संख्या में श्रद्धालुगण उपस्थित थे । खारुन नदी पर मेले की सुबह पुण्य स्नान के पहले सोमवार रातभर धार्मिक कार्यक्रम जैसे शिवमहापुराण, रुद्राभिषेक, गंगा आरती, नृत्य-नाटिका शिवगंगा, रामलीला समेत अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। मेले में और स्नान के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से पहुंच रहे हैं।


600 साल पहले राजा ब्रह्मदेव ने मांगी थी मन्नत, तब से मेला 

हटकेश्वर नाथ महादेव मंदिर के पुजारी ने खबरगली को बताया कि वर्षों से ऐसी मान्यता है कि 600 साल पहले राजा ब्रह्मदेव ने यहां संतान प्राप्ति की मन्नत मांगी थी। मन्नत पूरी होने पर 1428 में खारुन नदी के किनारे कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपनी प्रजा को भोज के लिए आमंत्रित किया। हवन, पूजन, यज्ञ के बाद ग्रामीणों ने खेल तमाशे का आनंद लेते हुए भोजन ग्रहण किया था। इसके पश्चात हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन राजा ग्रामीणों को आमंत्रित करते। कालांतर में यह परंपरा मेले के रूप में परिवर्तित हो गई। यह भी मान्यता है कि राजस्थान स्थित पुष्कर तीर्थ में कार्तिक मेला लगता था। वहां तक जाने में छत्तीसगढ़ के लोगों को कई दिन लग जाते थे। इसे देखते हुए राजा ब्रह्मदेव ने खारुन नदी के किनारे हटकेश्वर महादेव मंदिर में पूजा करने का निर्णय लिया। पूजन-यज्ञ में अपनी प्रजा को न्योता दिया। हजारों ग्रामीणों के भोजन व ठहरने के लिए खारुन नदी के किनारे तंबू गाड़े गए। बच्चों के मनोरंजन के लिए झूले व खेल-तमाशा, नाच-गाना की व्यवस्था की गई। पूजा में शामिल राजा ने ग्रामीणों को दान-दक्षिणा देकर विदा किया। तब से हर साल कार्तिक पूर्णिमा पर मेला का आयोजन किया जा रहा है। पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार भगवान शंकर और भगवान विष्णु ने कार्तिक पूर्णिमा पर अर्ध्य-नारीश्वर का रूप धारण किया था। दो शक्ति को प्रसन्न करने के लिए पूर्णिमा की रात में तुलसी की मंजरी, कमल पुष्प चढ़ाकर जागरण किया जाता है। उषा काल में पूजा की जाती है। 

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