
रायपुर (खबरगली) गणेश प्रतिमाओं के स्वरूप में बदलाव को लेकर छत्तीसगढ़ में विवाद गहराता जा रहा है। रायपुर में कुछ स्थानों पर पारंपरिक स्वरूप से हटकर कार्टूननुमा या आकर्षक अंदाज में गणेश प्रतिमाएं स्थापित की गईं, जिस पर हिंदू संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। सोमवार को सर्व हिंदू समाज ने एसएसपी कार्यालय पहुंचकर शिकायत दर्ज कराते हुए ऐसी प्रतिमाओं का तत्काल विसर्जन और आयोजकों पर कार्रवाई की मांग की। इस मामले पर ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद महाराज ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि भगवान की प्रतिमाओं में किसी अन्य का स्वरूप दिखाना पाप है और इसे बनाने वाले मूर्तिकार भी दोषी हैं।
शंकराचार्य ने जताई आपत्ति
शंकराचार्य ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार सभी देवी-देवताओं का स्वरूप पहले से निर्धारित है। उनमें मनमाने बदलाव की अनुमति नहीं है। उन्होंने कहा— “परमात्मा को हर जगह देखा जा सकता है, लेकिन किसी नश्वर व्यक्ति को भगवान की प्रतिमा में दिखाना अपमानजनक है। यह रचनात्मकता नहीं बल्कि धार्मिक विकृति है। मूर्तियों में बदलाव करने वाले कलाकार भी पाप के भागी हैं।”
हिंदू संगठनों की भी नाराजगी.. की एसएसपी कार्यालय में शिकायत

इधर सर्व हिंदू समाज के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में SSP कार्यालय पहुंचे और ज्ञापन सौंपकर धार्मिक भावनाओं को आहत करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। संगठन की प्रतिनिधि विश्वामिनी पांडे ने बताया कि देशभर की तरह रायपुर में भी गणपति बप्पा की स्थापना धूमधाम से की जा रही है। लेकिन कुछ पंडालों में पारंपरिक स्वरूप बदलकर गणपति की प्रतिमाओं को कार्टून या क्यूट स्टाइल में सजाया गया है। इससे समाज की धार्मिक भावनाएं आहत हो रही हैं और बच्चों-युवाओं के बीच भगवान का मजाक बनने का खतरा है। सर्व हिंदू समाज ने प्रशासन से ऐसे पंडालों की समितियों पर दंडात्मक कार्रवाई और विवादित प्रतिमाओं के तुरंत विसर्जन की मांग की है। संगठन ने चेतावनी दी है कि अगर कार्रवाई नहीं हुई तो उग्र आंदोलन किया जाएगा, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासन की होगी। सर्व हिंदू समाज के नीलकंठ महाराज और विश्वदिनी पांडेय ने कहा कि बच्चों और युवाओं के बीच इन बदली हुई प्रतिमाओं से गलत छवि बन रही है। धार्मिक आयोजनों की पवित्रता प्रभावित हो रही है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि प्रशासन ने समय पर कदम नहीं उठाया तो समाज उग्र आंदोलन करेगा।
शास्त्रों के अनुसार ऎसा हो प्रतिमाओं का स्वरूप: शंकराचार्य
शंकराचार्य ने समझाया कि गणेश प्रतिमाओं का निर्माण केवल स्वरूप ही नहीं, बल्कि धातु, विधि और पूजा-पद्धति के अनुरूप होना चाहिए। शास्त्रों के मुताबिक अल्पकालिक उत्सवों के लिए केवल मिट्टी की प्रतिमा बनाई जानी चाहिए, ताकि विसर्जन के बाद प्रकृति को नुकसान न पहुंचे। प्लास्टर ऑफ पेरिस, लोहा और प्लास्टिक से बनी प्रतिमाएं न शास्त्रसम्मत हैं और न ही पर्यावरण के लिए उचित। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में सुपारी या गोमय गणेश जैसी सरल और पर्यावरण-अनुकूल विधियों का भी उल्लेख है।
आने वाली पीढ़ी पर पड़ेगा असर
शंकराचार्य ने चेताया कि भगवान के स्वरूप में लगातार बदलाव से आने वाली पीढ़ी असली रूप को भूल जाएगी और भटक जाएगी। “जब प्रतिमा बदलेगी तो उसके सामने खड़े होने वाले का व्यवहार भी बदल जाएगा। यह परंपरा का अपमान है और इसे रोकना आवश्यक है।” रचनात्मकता या विकृति? उन्होंने साफ कहा कि भगवान के स्वरूप में बदलाव रचनात्मकता नहीं है। असली रचनात्मकता छोटे को बड़ा बनाने या एक सामान्य वस्तु को दिव्यता में बदलने में है, न कि देवी-देवताओं के निर्धारित स्वरूपों में छेड़छाड़ करने में।
- Log in to post comments