सौम्या चौरसिया को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत

Saumya Chaurasia gets interim bail from Supreme Court, Supreme Court grants interim bail to suspended Chhattisgarh officer Chaurasia in coal scam money laundering case, Khabargali

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की निलंबित अधिकारी चौरसिया को कोयला घोटाला मनी लॉन्ड्रिंग मामले में अंतरिम जमानत दी

सुप्रीम कोर्ट ने आरोप पत्र दाखिल किए बिना लंबी हिरासत पर प्रवर्तन निदेशालय की सख्त आलोचना की

नई दिल्ली/रायपुर (khabargali) सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ की निलंबित अधिकारी सौम्या चौरसिया को अंतरिम जमानत दी है, जो राज्य के कोयला घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में 1 साल 9 महीने से हिरासत में हैं। अदालत ने उनकी लंबी हिरासत और आरोप पत्र दाखिल न होने जैसे महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला सुनाया। चौरसिया, जो छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की उप सचिव रह चुकी हैं, ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के 28 अगस्त, 2024 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी तीसरी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी।

एसएलपी (सीआरएल) नंबर 12494/2024 में सुनवाई करते हुए, न्यायमूर्ति सूर्य कांत, दीपांकर दत्ता और उज्जल भुइयां की पीठ ने उन्हें शर्तों के साथ अंतरिम जमानत दी और कहा कि इतने लंबे समय तक बिना आरोप पत्र दाखिल किए हिरासत में रखना अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 26 अक्टूबर, 2024 की तारीख निर्धारित की है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना और अगली तारीख पर पक्षों को विस्तृत सुनवाई का अवसर देने के लिए, हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाए, बशर्ते कि वह ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपयुक्त जमानत बांड दाखिल करें। साथ ही, अदालत ने स्पष्ट किया कि चौरसिया की रिहाई का मतलब उनकी सरकारी सेवा में बहाली नहीं होगा, और वह अगले आदेश तक निलंबित रहेंगी। चौरसिया की जमानत पर कई कड़ी शर्तें लगाई गई हैं, जिनमें ट्रायल कोर्ट की सभी सुनवाइयों में उपस्थित रहना, गवाहों को प्रभावित करने या सबूतों से छेड़छाड़ न करना, अपना पासपोर्ट कोर्ट में जमा करना और देश छोडऩे से पहले ट्रायल कोर्ट से अनुमति लेना शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में कई महत्वपूर्ण कारकों को ध्यान में रखा, जिनमें यह तथ्य भी शामिल था कि चौरसिया ने लगभग दो साल की हिरासत का सामना किया है, उनके कुछ सह-आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है, और उनके खिलाफ अब तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। विशेष रूप से, उच्च न्यायालय ने यह देखा था कि अन्य आरोपियों के खिलाफ गैर-जमानती वारंट निष्पादित नहीं होने के कारण ट्रायल आगे नहीं बढ़ पा रहा है। सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां ने प्रवर्तन निदेशालय की पीएमएलए मामलों में कम दोषसिद्धि दर पर गंभीर चिंता व्यक्त की, खासकर जब बिना आरोप पत्र दाखिल किए हिरासत की अवधि लंबी हो जाती है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (्रस्त्र) एस.वी. राजू से पूछताछ करते हुए, न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा, "बिना आरोप पत्र दाखिल किए आप किसी व्यक्ति को कितने समय तक जेल में रख सकते हैं? अधिकतम सजा 7 साल है, और संसद में बताया गया कि केवल 41 मामलों में ही पीएमएलए के तहत दोषसिद्धि हुई है।" यह टिप्पणी विशेष रूप से वित्तीय अपराधों की जांच के दौरान न्यायिक प्रक्रियाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठाती है। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने भी सुनवाई के दौरान हैरानी जताई कि सुनवाई वारंटों के निष्पादन में देरी के कारण आगे नहीं बढ़ रही थी। उन्होंने सवाल किया, "क्या यह उचित है कि किसी को बिना ट्रायल के लंबे समय तक हिरासत में रखा जाए?"

वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे, जो चौरसिया की ओर से पेश हुए, ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल लगभग दो साल से हिरासत में है और ट्रायल में कोई प्रगति नहीं हुई है। उन्होंने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनीष सिसोदिया मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि इसी आधार पर चौरसिया को भी राहत दी जानी चाहिए। दवे ने यह भी तर्क दिया कि चौरसिया के तीन सह-आरोपियों को पहले ही जमानत दी जा चुकी है। हालांकि एसजी एस.वी. राजू ने इस जमानत का कड़ा विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि चौरसिया एक सिविल सेवक हैं और उनके पास जनता के प्रति उच्च स्तर की जिम्मेदारी है, इसलिए उनके मामले में सख्त न्यायिक दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए। राजू ने आरोप लगाया कि चौरसिया अवैध कोयला लेवी संग्रह में मुख्य भूमिका निभा रही थीं, और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई जरूरी थी।

चौरसिया के खिलाफ मामला छत्तीसगढ़ में कोयला और खनिज परिवहनकर्ताओं से अवैध लेवी संग्रह और जबरन वसूली के आरोपों से जुड़ा है। प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें दिसंबर 2022 में गिरफ्तार किया था। तब से, उनकी जमानत याचिकाएं विफल रही हैं, जिसमें जून 2023 में उच्च न्यायालय द्वारा उनकी पहली जमानत याचिका खारिज की गई थी और दिसंबर में उनकी विशेष अनुमति याचिका को भी खारिज कर दिया गया था। मई 2024 में उनकी दूसरी जमानत याचिका को वापस ले लिया गया था, और अगस्त 2024 में उनकी तीसरी जमानत याचिका को भी खारिज कर दिया गया। इसके बाद चौरसिया ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जहां सितंबर 2024 में मामला सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुआ।

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