article by Sanjay Dubey

संजय दुबे का आलेख

खबरगली@साहित्य डेस्क

दिवाली हर साल आती है, आगे भी आएगी।खुशियों का पर्व तो है ही,इससे ज्यादा वैभव का भी पर्व है। वैभव और आत्मीयता को दिखाने के अलावा कुछ मीठा हो जाए या मुंह मीठा करने करवाने का भी पर्व दीपावली है। बदलते जमाने के साथ साथ लोग भी बदले ,दस्तूर भी बदले। पहले दिवाली मिलन एक परम्परा थी। अपने परिवार सहित स्नेहीजनों के यहां जाकर शुभ कामनाएं देने का रिवाज था।घर में बने पकवान अपनत्व का परिचायक थे,अभी भी है लेकिन सीमित होते जा रहे है मोबाइल ने कमोबेश ये हक छीन लिया। शुभ कामनाएं तो इलेक्ट्रानिक हो गई। घर बैठे कितनों को संदेश भेजना है?