प्रसिद्ध साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल नहीं रहे, राजकीय सम्मान के साथ कल होगी अंतिम विदाई
रायपुर (खबरगली) हिंदी साहित्य के वरिष्ठ कवि, कथाकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार शाम 4.48 बजे रायपुर एम्स में निधन हो गया। निधन हो गया है। वे 88 वर्ष के थे। पिछले कुछ दिनों से वे रायपुर स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में गंभीर अवस्था में भर्ती थे। वे गंभीर श्वसन संक्रमण और कई अन्य जटिल बीमारियों से जूझ रहे थे। श्री शुक्ल को इस महीने की दो तारीख को रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्वज्ञिान संस्थान (एम्स) में भर्ती कराया गया था। सांस लेने में दिक्कत के कारण उन्हें वेंटिलेटर में ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया था। उनके निधन से हिंदी साहित्य जगत में शोक की लहर है। उनका अंतिम संस्कार बुधवार को सुबह 11 बजे मारवाड़ी मुक्तिधाम में किया जाएगा । प्रदेश सरकार ने उन्हें सम्पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई दिए जाने का निर्णय लिया है। उनके परिवार में उनकी पत्नी, बेटा शाश्वत और एक बेटी है।
जीवनभर साहित्य सृजन में ही लगे रहे
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव ज़िले में हुआ था। उन्होंने प्राध्यापन को रोजगार के रूप में चुना। वे जीवनभर साहित्य सृजन में ही लगे रहे। वे उन लेखकों में शामिल थे जिन्होंने कविता और कथा दोनों विधाओं में अपनी अलग, विशिष्ट और गहरी पहचान बनाई। उनकी रचनाओं की भाषा सरल होते हुए भी अत्यंत गूढ़ और मानवीय संवेदनाओं से भरपूर मानी जाती है। रोज़मर्रा की ज़िंदगी, साधारण लोगों के अनुभव और उनके भीतर के संसार को उन्होंने अद्भुत बारीकी से अपनी रचनाओं में जगह दी। साहित्यकारों और पाठकों के बीच उन्हें एक ऐसे लेखक के रूप में जाना जाता है जो शोर नहीं मचाते, बल्कि चुपचाप पाठक के भीतर उतर जाते हैं. उनकी रचनाएं सत्ता, बाजार या आक्रामक विचारधाराओं से टकराने के बजाय मनुष्य की आंतरिक दुनिया, उसकी असुरक्षाओं और उसकी करुणा को केंद्र में रखती हैं। उन्हें हिंदी साहित्य में सादगी भरे लेखन और अनूठी कविताओं के लिये जाना जाता है। उन्होने उपन्यास एवं काव्य विधाओं में साहित्य का शानदार सृजन किया था। वे हिंदी साहित्य में अपने प्रयोगधर्मी लेखन के लिए प्रख्यात रहे हैं। उनकी लेखनी सरल सहज और अद्वितीय शैली के लिए जानी जाती है। उनका नाम हिंदी साहित्य जगत के इतिहास में सुनहरे पन्नों में दर्ज रहेगा।
उनके निधन पर साहित्य जगत की कई प्रमुख हस्तियों ने शोक व्यक्त किया है और इसे हिंदी साहित्य के लिए अपूरणीय क्षति बताया है। विनोद कुमार शुक्ल का जाना एक ऐसे लेखक का जाना है, जिसने कम शब्दों में गहरे अर्थ रचे और हिंदी साहित्य को एक शांत, मानवीय और संवेदनशील स्वर दिया।
विनोद कुमार शुक्ल की प्रमुख कलाकृतियां
उपन्यास: ‘नौकर की कमीज़ ‘ वर्ष 1979, ‘खिलेगा तो देखेंगे ‘ वर्ष 1996, ‘दीवार में एक खिड़की रहती थी ‘ वर्ष 1997, ‘हरी घास की छप्पर वाली झोपड़ी और बौना पहाड़ ‘ वर्ष 2011, ‘यासि रासात ‘ वर्ष 2016, ‘एक चुप्पी जगह’ वर्ष 2018
कहानी संग्रह: ‘पेड़ पर कमरा ‘ वर्ष 1988,‘महाविद्यालय ‘ वर्ष 1996,‘एक कहानी ‘ वर्ष 2021, ‘घोड़ा और अन्य कहानियाँ ‘ वर्ष 2021
काव्य संग्रह: ‘लगभग जयहिंद ‘ वर्ष 1971,‘वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहिनकर विचार की तरह’ वर्ष 1981, ‘सब कुछ होना बचा रहेगा ‘ वर्ष 1992. ‘अतिरिक्त नहीं ‘ वर्ष 2000,‘कविता से लंबी कविता ‘ वर्ष 2001, ‘आकाश धरती को खटखटाता है ‘ वर्ष 2006, ‘पचास कविताएँ’ वर्ष 2011, ‘कभी के बाद अभी ‘ वर्ष 2012, ‘कवि ने कहा ‘ -चुनी हुई कविताएँ वर्ष 2012, ‘प्रतिनिधि कविताएँ ‘ वर्ष 2013, कहानी/कविता पर पुस्तक, ‘गोदाम’, वर्ष 2020. ‘गमले में जंगल’, वर्ष 2021
इन पुरस्कारों से सम्मानित
साल 2024 में 59वां ज्ञानपीठ पुरस्कार समग्र साहित्य पर प्राप्त ‘गजानन माधव मुक्तिबोध फेलोशिप ‘ (मध्य प्रदेश शासन), ‘रजा पुरस्कार ‘ (मध्यप्रदेश कला परिषद), ‘शिखर सम्मान ‘ (म.प्र. शासन), ‘राष्ट्रीय मैथिलीशरण गुप्त सम्मान ‘ (मध्य प्रदेश शासन), ‘दयावती मोदी कवि शेखर सम्मान’ (मोदी फाउंडेशन),‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, (भारत सरकार),‘हिन्दी गौरव सम्मान’ (उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश शासन), ‘मातृभूमि’ पुरस्कार, वर्ष 2020 (अंग्रेजी कहानी संग्रह ‘ब्लू इज लाइक ब्लू’ के लिए), साल 2021 साहित्य अकादमी नई दिल्ली के सर्वोच्च सम्मान ‘महत्तर सदस्य’ चुने गये।
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