रायगढ़ में जनजागरण: सामाजिक अंधविश्वास एवं कुरीतियों का निर्मूलन आवश्यक-डॉ. दिनेश मिश्र

Public awakening in Raigad - eradication of social superstitions and evils is necessary - Dr. Dinesh Mishra 1
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रायगढ़  (khabrgali) अंधविश्वास निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा — अशिक्षा, गरीबी, चिकित्सा सुविधाओं की अनुपलब्धता तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अभाव में लोग तरह-तरह के अंधविश्वासों के फेर में पड़ जाते हैं, वहीं कई बार शिक्षित लोग भी चमत्कारिक सफलता प्राप्त करने के लिए चमत्कार की धारणा व कथित रूप से अद्भूत शक्ति के दावों व भ्रामक विज्ञापनों पर यकीन कर लेते हैं, जिस कारण उन्हें बाद में शारीरिक व आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।  

रायगढ़ में  पशुबलि के विरोध में कार्य कर रहे गायत्री परिवार के पदाधिकारी संजय गौतम ,सामाजिक कार्यकर्ता अमित पटेल,संदीप अग्रवाल, सहित अनेक कार्यकर्ताओ, से चर्चा हुई तथा रायगढ़ में आगे भी कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय हुआ 
    जनजागरण अभियान में डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा — देश में जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, झाड़-फूँक ,बलि प्रथा,की मान्यताओं एवं डायन टोनही के संदेह में प्रताडऩा तथा सामाजिक बहिष्कार के मामलों की भरमार है। टोनही/डायन प्रताडऩा के मामलों में अंधविश्वास व सुनी-सुनाई बातों के आधार पर किसी निर्दोष महिला को टोनही/डायन घोषित कर दिया जाता है तथा उस पर जादू-टोना कर बच्चों को बीमार करने, फसल खराब होने, व्यापार-धंधे में नुकसान होने के कथित आरोप लगाकर उसे तरह-तरह की शारीरिक व मानसिक प्रताडऩा दी जाती है। कई मामलों में आरोपी महिला को गाँव से बाहर निकाल दिया जाता है। बदनामी व शारीरिक प्रताडऩा के चलते कई बार पूरा पीडि़त परिवार स्वयं गाँव से पलायन कर देता है। कुछ मामलों में महिलाओं की हत्याएँ भी हुई है अथवा वे स्वयं आत्महत्या करने को मजबूर हो जाती है। जबकि जादू-टोना के नाम पर किसी भी व्यक्ति को प्रताडि़त करना गलत तथा अमानवीय है। वास्तव में किसी भी व्यक्ति के पास ऐसी जादुई शक्ति नहीं होती कि वह दूसरे व्यक्ति को जादू से बीमार कर सके या किसी भी प्रकार का आर्थिक नुकसान पहुँचा सके। जादू-टोना, तंत्र-मंत्र, टोनही, नरबलि के मामले सब अंधविश्वास के ही उदाहरण हैं। विदर्भ, छत्तीसगढ़, ओडीसा, झारखण्ड, बिहार, आसाम सहित अनेक प्रदेशों में प्रतिवर्ष टोनही/डायन के संदेह में निर्दोष महिलाओं की हत्याएँ हो रही है जो सभ्य समाज के लिये शर्मनाक है। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड ब्यूरो ने सन् 2001 से 2018तक 3000 से अधिक  महिलाओं की मृत्यु डायन प्रताडऩा के कारण होना माना है। जबकि अधिकतर मामलों में पुलिस रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं। छत्तीसगढ़ में 1357 मामलों में 240 मामलों में टोनही/डायन के संदेह में हत्या की घटना की प्रमाणिक जानकारी है।
    डॉ. मिश्र ने कहा आम लोग चमत्कार की खबरों के प्रभाव में आ जाते हैं। हम चमत्कार के रूप में प्रचारित होने वाले अनेक मामलों का परीक्षण व उस स्थल पर जाँच भी समय-समय पर करते रहे हैं। चमत्कारों के रूप में प्रचारित की जाने वाली घटनाएँ या तो सरल वैज्ञानिक प्रक्रियाओं के कारण होती है तथा कुछ में हाथ की सफाई, चतुराई होती है जिनके संबंध में आम आदमी को मालूम नहीं होता। कई स्थानों पर स्वार्थी तत्वों द्वारा साधुओं को वेश धारण चमत्कारिक घटनाएँ दिखाकर ठगी करने के मामलों में वैज्ञानिक प्रयोग व हाथ की सफाई के ही करिश्में थे। ऐसे प्रयोगों को गाँवों में लोगों के सामने प्रदर्शित करके उनके वास्तविक कारणों की जानकारी भी सभाओं व शिविरों में दी जाती है ताकि लोग चमत्कारों के भ्रम में आकर ठगी के शिकार न बनें। समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड, कुरीतियों तथा सामाजिक बहिष्कार के निर्मूलन के लिए न केवल ग्रामों व शहरों में सभाएँ, कार्यशाला, व्याख्यान व सेमीनार आयोजित करते हैं बल्कि विद्यार्थियों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण व सूझबूझ विकसित करने के लिए विद्यालयों, एन.सी.सी., एन.एस.एस. शिविरों में भी विद्यार्थियों को वैज्ञानिक जानकारी दी जाती है।
    डॉ. मिश्र ने कहा भूत-प्रेत जैसी मान्यताओं का कोई अस्तित्व नहीं है। भूत-प्रेत बाधा व भुतहा घटनाओं के रूप में प्रचारित घटनाओं का परीक्षण करने में उनमें मानसिक विकारों, अंधविश्वास तथा कहीं-कहीं पर शरारती तत्वों का हाथ पाया गया। आज टेलीविजन के सभी चैनलों पर भूत-प्रेत, अंधविश्वास बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित हो रहे हैं। ऐसे धारावाहिकों का न केवल जनता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है बल्कि छोटे बच्चों व विद्यार्थियों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। इस संबंध में हमने राष्ट्रीय स्तर पर एक सर्वेक्षण कराया है जिसमें लोगों ने ऐसे सीरीयलों को बंद किये जाने की मांग की है। ऐसे सीरीयलों को बंद कर वैज्ञानिक विकास व वैज्ञानिक दृष्टिकोण बढ़ाने व विज्ञान सम्मत अभिरूचि बढ़ाने वाले धारावाहिक प्रसारित होना चाहिए। भारत सरकार के दवा एवं चमत्कारिक उपचार के अधिनियम 1954 के अंतर्गत झाड़-फूँक, तिलस्म, चमत्कारिक उपचार का दावा करने वालों पर कानूनी कार्यवाही का प्रावधान है। इस अधिनियम में पोलियो, लकवा, अंधत्व, कुष्ठरोग, मधुमेह, रक्तचाप, सर्पदंश, पीलिया सहित 54 बीमारियाँ शामिल हैं। लोगों को बीमार पडऩे पर झाड़-फूँक, तंत्र-मंत्र, जादुई उपचार, ताबीज से ठीक होने की आशा के बजाय चिकित्सकों से सम्पर्क करना चाहिए क्योंकि बीमारी बढ़ जाने पर उसका उपचार खर्चीला व जटिल हो जाता है।
     डॉ. मिश्र ने कहा अंधविश्वास, पाखंड एवं सामाजिक कुरीतियों का निर्मूलन एक श्रेष्ठ सामाजिक कार्य है जिसमें हाथ बंटाने हर नागरिक को आगे आना चाहिए।