सारकेगुड़ा न्यायिक जाँच रिपोर्ट का खुलासा-  “मुठभेड़ फ़र्ज़ी थी.. मारे गए लोग ग्रामीण थे.. खुले मैदान में मौजुद ग्रामीणों को गोली मारी गई

Sarkeguda Judicial Inquiry report

न्यायिक जाँच आयोग और जस्टिस वी के अग्रवाल ने सारकेगुड़ा में नक्सलियो से मुठभेड के सरकारी दावे को ख़ारिज किया 

रायपुर (khabargali) वर्ष 2012 में छत्तीसगढ़ के बीजापुर ज़िले के सारकेगुड़ा में नक्सलियो से मुठभेड़ का दावा न्यायिक जाँच में पूरी तरह फ़र्ज़ी पाया गया है। 11 जुलाई 2012 को गठित यह जाँच रिपोर्ट एक महिने पहले सरकारी अमले तक पहुँच गई थी। न्यायिक जाँच आयोग एकल सदस्यीय थी और जस्टिस वी के अग्रवाल ने जाँच की थी।  यह रिपोर्ट सारकेगुड़ा में नक्सलियो से मुठभेड के सरकारी दावे को ख़ारिज करती है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष में कई साक्ष्यों के कथन और मेडिकल रिपोर्ट के आधार शामिल हैं। पुलिस की ओर से दावा था कि, 2012 में 28-29 जून की दरमियानी रात सारकेगुड़ा में पुलिस नक्सली मुठभेड़ हुई, और इसमें सत्रह ग्रामीण मारे गए जिसमें सात नाबालिग थे, जबकि दस अन्य घायल हुए थे।पुलिस का दावा था कि, जंगल में नक्सली बैठक कर रहे थ।नक्सलियो की ओर से पहले फ़ायरिंग हुई जिसमें उनके 6 सुरक्षाकर्मी घायल हुए।सुरक्षाबलों का दावा था कि,उनकी ओर से फ़ायरिंग आत्मरक्षार्थ की गई थी।

 न्यायिक जाँच आयोग की रिपोर्ट की खास बातें

रिपोर्ट में लिखा गया- “बैठक मैदान में थी, ना कि जंगल में, बैठक के सदस्यों पर एकतरफ़ा हमला किया गया। सुरक्षा बलों ने ग्रामीणों से मारपीट भी की। अगली सुबह एक व्यक्ति को घर में घुसकर मार डाला गया। इस मसले की पुलिस जाँच में भी गड़बड़ी है। यह प्रमाणित नहीं किया गया है कि.. कोई मृतक या घायल ग्रामीण नक्सली था”

रिपोर्ट में यह भी लिखा गया- “फ़ायरिंग एकतरफ़ा थी, जो सुरक्षा बलों की ओर से चलाई गई। डीआईजी एस इलंगो और डिप्टी कमांडर मनीष बमोला जो कि ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे। उन्होंने एक गोली नहीं चलाई। यह साबित करता है कि, बैठक के सदस्यों द्वारा कोई गोली नहीं चलाई गई। क्योंकि यदि फ़ायरिंग होती तो दोनों अधिकारी प्रतिशोध और आत्मरक्षा में फ़ायरिंग करते”

जस्टिस वी के अग्रवाल ने आगे लिखा-
“जिन सुरक्षा बलों को चोटें आई हैं वो दूर से आई चोटें नहीं है। वे क्रॉस फ़ायरिंग से आई हैं” । रिपोर्ट मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए निष्कर्ष देती है। “यह मुठभेड़ नहीं थी।.सुरक्षाबलों ने अनुचित अकारण और जानबूझकर घातक बल का प्रयोग किया था।ग्रामीणों को क़रीब से गोली मारी गई थी। और जान से मारने के ईरादे से सर और धड़ पर मारी गई थी। कम से कम छः ग्रामीणों के सर पर गोली लगी थी। दस की पीठ पर गोली थी।पीठ पर गोली यह बताती है कि जब भाग रहे थे तब गोली चलाई गई। ग्रामीणों को गोली मारने के बाद पीटा भी गया था। एक ग्रामीण इरपा रमेश को उसके घर के सामने पीट पीट कर सुरक्षाकर्मियों ने मार दिया”
“व्यक्ति झूठ बोल सकता है परिस्थितियाँ नहीं..इसलिए परिस्थितियाँ रिकॉर्ड पर दिखाई देती हैं.. उन पर विचार और चर्चा करनी चाहिए.. और रिकॉर्ड पर मौजुद सबूतों को उसके आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा।

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