दैनिक जीवन में गीता का महत्व: चर्चा का सार

Importance of Geeta in daily life: Essence of discussion, Grand celebration of Geeta Jayanti festival, Vivekananda Kendra Kanyakumari, Raipur, Geeta Parivar Chhattisgarh President Geet Govind Sahu, Subhash Chandrakar Contact Head, Chetan Tarwani City Director, Chhattisgarh, Khabargali

गीता जयंती पर्व पर विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी, रायपुर का भव्य आयोजन 

रायपुर (खबरगली) विवेकानंद केंद्र कन्याकुमारी शाखा, रायपुर द्वारा गीता जयंती पर्व का आयोजन हरिगीर टावर सिविल लाइन में श्रद्धा एवं उत्साह के साथ किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सायं 6 बजे तीन ओंकार प्रार्थना के साथ हुआ। मुख्य वक्ता के रूप में गीता परिवार छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष श्री गीत गोविन्द साहू उपस्थित रहे। मंच पर श्री सुभाष चन्द्राकर संपर्क प्रमुख, विवेकानंद केंद्र छत्तीसगढ़ तथा श्री चेतन तारवानी नगर संचालक, विवेकानंद केंद्र रायपुर भी विराजित थे।

कार्यक्रम के प्रारंभ में श्री सुभाष चन्द्राकर ने विवेकानंद केंद्र की उपाध्यक्ष पद्मश्री निवेदिता भिड़े द्वारा प्रेषित संदेश का वाचन किया, जिसमें गीता को प्रत्येक परिवार में अपनाने के महत्व का उल्लेख था। इसके पश्चात गीता के बारहवें एवं पन्द्रहवें अध्याय का सामूहिक पाठ किया गया। मुख्य वक्ता श्री गीत गोविन्द साहू ने सरल एवं प्रभावी शैली में स्थूल शरीर, मन, बुद्धि और चेतना के स्वरूप को समझाया तथा निष्काम कर्म, अहंकार, लालच और क्रोध जैसे मानसिक अवगुणों के दुष्प्रभावों पर प्रकाश डाला। गीता परिवार के अध्यक्ष, आदरणीय गीत गोविंद साहू जी द्वारा दैनिक जीवन में गीता के महत्व पर रखी गई चर्चा अत्यंत लाभप्रद और रोचक रही। उन्होंने जीवन के गंभीर सत्यों को अत्यंत सरल ढंग से प्रस्तुत किया।

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1. समस्याओं की पहचान और मूल कारण

साहू जी ने जोर देकर कहा कि जीवन की समस्याओं का हल खोजने से पहले, समस्या को पहचानना और उसके मूल कारण को जानना अत्यंत आवश्यक है।

• मूल समस्या: उनके अनुसार, हमारी मूल समस्या दो चीज़ों में निहित है: * स्वयं के यथार्थ स्वरूप को न पहचानना। * जीवन में सांसारिक सुखों की अत्यधिक कामना रखना।

2. कार्य न करने के तीन बाधाएँ

उन्होंने किसी भी कार्य को आरम्भ करने या उसमें प्रवृत्त होने से पहले मन में आने वाली तीन प्रमुख बाधाओं का उल्लेख गीता का आधार लेकर किया, जिनके कारण बहुधा लोग निष्क्रिय हो जाते हैं: * कार्य करें या न करें? (निर्णय लेने में असमंजस) * कार्य में सफल होंगे या असफल? (असफलता का भय) * लोग क्या कहेंगे? (सामाजिक निंदा का डर)

3. शरीर की तीन अवस्थाएँ (पदार्थ के उदाहरण से)

जीवन को समझने के लिए, उन्होंने पदार्थ की तीन अवस्थाओं (ठोस, द्रव, गैस) का सुंदर उदाहरण दिया और बताया कि हमारा शरीर भी इसी प्रकार तीन अवस्थाओं में कार्य करता है: * शरीर: ठोस अवस्था * इंद्रियाँ: द्रव अवस्था * मन: गैस की अवस्था

4. परिवर्तन और उन्नति का मार्ग

जिस प्रकार एक अवस्था से दूसरी अवस्था में परिवर्तन के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार शरीर को चरम सीमा तक रूपांतरित (या उन्नत) करने के लिए विभिन्न प्रकार के तप एवं साधनों की आवश्यकता होती है। इन साधनों का मूल आधार *पतंजलि का अष्टांग योग* है। उन्होंने गीता के श्लोकों में छिपे हुए पतंजलि के कुछ सूत्रों को स्पष्ट किया।

5. गीता: जीवन जीने का शास्त्र

गीता कुछ और नहीं, बल्कि जीवन जीने का शास्त्र है, जो हमें यह सिखाती है कि जीवन को किस प्रकार उन्नत बनाया जाए। जीवन में उन्नत बनने के लिए हमें स्थूल (बाहरी) से उठकर सूक्ष्म (आंतरिक) की ओर यात्रा करनी होगी। इस प्रक्रिया को ही साधना कहा गया है। * उत्तम साधनाएँ: सभी साधनाओं में कर्म योग तथा भक्ति योग सबसे उत्तम हैं, जिन्हें अपनाकर व्यक्ति सहज ही अपने जीवन को ऊपर उठा सकता है और उन्नत बन सकता है।

6. गीता का विग्रह (रूपक)

उन्होंने गीता के संदेश को एक रूपक (विग्रह) के माध्यम से समझाया: * शरीर: रथ है। * इंद्रियाँ: घोड़े के समान हैं। * मन: अर्जुन है। * आवश्यकता: मन रूपी अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण जैसे सारथी की आवश्यकता है, जो हमारे जीवन को सही मार्ग दिखा सकें। परम पूज्य स्वामी गोविंद देव गिरी जी महाराज के संदेश को दोहराते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि गीता वीरों का ग्रंथ है, जो व्यक्ति बार-बार गिरकर भी खड़ा होने का सामर्थ्य रखता है, गीता उसे ही सही मार्ग दिखाती है। यह चर्चा स्पष्ट करती है कि गीता केवल धर्मग्रंथ नहीं, बल्कि दैनिक जीवन की समस्याओं का वैज्ञानिक समाधान प्रस्तुत करने वाला एक व्यावहारिक मार्गदर्शक है।

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कार्यक्रम के समापन अवसर पर श्री चेतन तारवानी ने "सुनने की कला" के महत्व पर प्रेरक उद्बोधन दिया। कार्यक्रम का सुगठित मंच संचालन श्री आशीष दुबे नगर प्रमुख, विवेकानंद केंद्र रायपुर ने किया। केंद्र परिचय श्री ओंकार ताम्रकार द्वारा प्रस्तुत किया गया। विवेकानंद केंद्र मध्य प्रांत की सह-संगठक कुमारी रितुमानी दत्ता ने पूरे कार्यक्रम का समन्वय एवं दिशा-निर्देशन किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साधक, परिवार एवं युवा उपस्थित रहे। अंत में सभी ने कर्मयोग के सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में अपनाकर स्वयं तथा समाज को श्रेष्ठ बनाने का संकल्प लिया।