
..तश्वीरों में देखें भक्तिमय यात्रा
रायपुर (khabargali) छत्तीसगढ़ की राजधानी के गायत्री नगर से कई वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार कांवड़ यात्रा’ निकली, जिसमें गायत्री नगर , सेलटैक्स कालोनी, पिंक सिटी, स्टील सिटी और विजय नगर जैसे आसपास के भक्तों के लगभग 200 भक्त शामिल हुए। महादेव घाट के खारुन नदी का जल लेकर हाटकेश्वर महादेव मंदिर में जलाभिषेक किया।उसके बाद पुनः खारून नदी का जल लेकर भक्तों ने कांवड़ यात्रा के रूप में गायत्री नगर स्तिथ साईं मंदिर तक पैदल यात्रा से आकर जलाभिषेक किया।
पारंपरिक वस्त्रों के साथ , भक्तिमय संगीत के बीच यह कांवड़ यात्रा राजधानी में आकर्षण का केंद्र रही। सिद्धि विनायक, शिव, साईं, हनुमान मंदिर समिति द्वारा इस आयोजन में भव्य भंडारा भी संपन्न हुआ।
कांवड़ यात्रा का धार्मिक महत्व
महादेव को प्रसन्न कर मनोवांछित फल पाने के लिए कई उपायों में एक उपाय कांवड़ यात्रा भी है, जिसे शिव को प्रसन्न करने का सहज मार्ग माना गया है। कहते हैं, पहले कांवड़िया रावण थे। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सदाशिव को कांवड़ चढ़ाई थी। आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान श्री राम ने कांवड़िया बनकर सुल्तानगंज से जल लिया और देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया। वैसे तो कांवड़ शब्द के कई मायने हैं। एक अर्थ यह भी है- क यानी ब्रह्म (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) और जो उनमें रमन करे वह कांवड़िया जो नियमों का सम्यक पान करके अपने आपको इन देवों की शक्तियों से संपूरित कर दे इसके पीछे मान्यता यह भी है कि जब समुद्रमंथन के बाद 14 रत्नों में विष भी निकला था और भोलेनाथ ने उस विष का पान करके दुनिया की रक्षा की थी। विषपान करने से उनका कंठ नीला पड़ गया और कहते हैं इसी विष के प्रकोप को कम करने के लिए, उसे ठंडा करने के लिए शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है और इस जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होकर आपकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कहा जाता है कि कांधे पर कांवड़ रखकर बोल बम का नारा लगाते हुए चलना भी काफी पुण्यदायक होता है। इसके हर कदम के साथ एक अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है।












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