गुरु गोबिंद सिंह के 4 बेटों के शहादत दिवस 26 दिसंबर को मनाया जाएगा ‘वीर बाल दिवस’

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छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी की पहल रंग लाई

जानें इन 4 साहिबजादों की वीर गाथा

नई दिल्ली/रायपुर (khabargali) छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी की पहल रंग लाई। वीर बाल दिवस 26 दिसंबर को मनाया जाए इस हेतु छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी विगत 10 वर्षों से प्रयासरत थी । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को प्रकाश पर्व के अवसर पर घोषणा की कि सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह के चारों बेटों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस साल से 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।

उन्होंने ट्वीट किया कि यह ‘साहिबजादों’ के साहस और न्याय स्थापना की उनकी कोशिश को उचित श्रद्धांजलि है। गुरु गोबिंद सिंह के चारों पुत्रों की मुगलों ने हत्या कर दी थी। मोदी ने ट्वीट किया, ‘‘वीर बाल दिवस उसी दिन मनाया जाएगा, जब साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबजादा फतेह सिंह जी ने दीवार में जिंदा चिनवा दिए जाने के बाद शहीदी प्राप्त की थी। इन दो महान हस्तियों ने धर्म के महान सिद्धांतों से विचलित होने के बजाय मौत को चुना।’’ उन्होंने कहा, ‘‘माता गुजरी, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी और चार साहिबजादों की बहादुरी और आदर्शों ने लाखों लोगों को ताकत दी। उन्होंने कभी अन्याय के आगे सिर नहीं झुकाया। उन्होंने समावेशी और सौहार्दपूर्ण विश्व की कल्पना की। यह समय की मांग है कि और लोगों को उनके बारे में पता चले।’’

जानें इन चार साहिबजादों की वीर गाथा

दसवें गुरु श्री गुरुगोविंद जी के 4 पुत्र थे, जिन्हें सम्मान से साहिबज़ादे पुकारा जाता है। लगभग 316 साल पहले सन 1704 में इन चार साहिबजादो ने धर्म एवं देश की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया था।

1 . अजीत सिंग उम्र 17 साल,  2. जुझार सिंग उम्र 13 साल,  3. जोरावर सिंग उम्र 9 साल,  4. सबसे छोटे फतेह सिंग- 5 साल

श्री अजीतसिंग एवं जुझारसिंग चमकौर के युद्ध में वजीर खान की सेना से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे। (चमकौर का युद्ध भी मानव इतिहास में बिरला उदाहरण है - जिसमें 40 सिंगो ने 20000 मुगलों की सेना को टक्कर दी थी) जबकि छोटे साहिबजादे जोरावर सिंग(9 वर्ष) एवं फतेह सिंग (5 वर्ष)को जिहादी वजीर खान ने 26 दिसंबर सन 1704 को जिंदा दीवार में चुनवा दिया था। औरंगजेब के पिट्ठू वजीर खान ने दोनों बच्चो जोरावर एवं फतेहसिंग को अनेक प्रलोभन दिए, यातनाएं दी तथा धमकाया कि वे मुसलमान बन जाए अन्यथा मार दिए जाएंगे।

दोनों बच्चों ने अत्यधिक बहादुरी का परिचय दिया। 25 दिसंबर 1704 को वजीर खान ने अपने दरबार में उनसे पूछा कि अगर उन्हें छोड़ दिया जाए तो वे क्या करेंगे ? छोटे साहिबजादे फतेहसिंग ने जो जवाब दिया वह अद्वितीय है। केवल 5 वर्ष का बालक बोला-  फत्तै सिंग के जत्थे सिंग

अर्थात आजाद होने के बाद मैं जंगल में जाऊंगा, घोड़े इकट्ठे करूंगा, अपनी सेना बनाऊंगा और तुम जैसे अत्याचारियो के खिलाफ युद्ध करूंगा।

वजीर खान जैसे दुराचारी दुष्ट के दरबार में 5 साल के बालक द्वारा ऐसी हुंकार भरना अद्भुत, अद्वितीय वीरता का प्रतीक है किंतु पता नहीं हमारे इस इतिहास के पन्ने --- कहां गुम हो गए?

वजीर खान ने काजी से सांठगांठ करके दोनों बच्चों को जिंदा दीवार में चुनवाने का फतवा जारी करवा दिया। अंततः 26 दिसंबर सन 1704 को, स्थान- पंजाब में वर्तमान फतेहसिंग साहिब गुरुद्वारा; समय: प्रातः काल , दोनों साहिबजादे जोरावरसिंग और फतेह सिंग निर्भीक होकर खड़े हो गए और दो जल्लाद उनके चारों तरफ दीवार चुनने लगे। दोनों साहिबजादे ना डरे, ना घबराए, अचल खड़े रहे और निरंतर पाठ करते रहे ......... देह सिवा बस मोहि इहै, सुभ कर्मन ते कबहुँ ना टरोंना डरो असि सो जब जाइ लरो, निसचै करि अपुनी जीत करों।

शाम होते - होते दीवार ऊंची हो गई; ऊपर से भी बंद हो गई और दोनों साहिबज़ादे बेहोश हो गये। किंतु नीच वजीर खान ने दीवार तुड़वाई और जब देखा कि बच्चों में जान बची है तो उसने दोनों बच्चों की गर्दन काट दी। 5 साल और 9 साल के बच्चे मौत के मुंह में पहुंचकर भी विचलित नहीं हुए, ना रोयें, ना डरे, ना धर्म परिवर्तन किया। इससे अद्भुत वीरता और अदम्य साहस की मिसाल और क्या हो सकती है।

छत्तीसगढ़ सिविल सोसायटी ने किया आग्रह

1. इस चार वीर साहिबजादों के अदम्य साहस की कहानी को हम अधिक से अधिक लोगों को शेयर करें। ट्विटर एवं अन्य सोशल मीडिया पर आने वाले दिनों में हम सबको इन वीर बालकों के साहस की कहानी को जन-जन तक पहुंचाना है।

2. इस हेतु प्रत्येक देशवासी 26 दिसंबर को हर मंदिर एवं गुरुद्वारे में अखंड ज्योत जलाएं।

3. आने वाले वर्षों में देश एवं समाज में बदलाव लाने वाले बच्चों को वीर बाल दिवस पर गोल्ड मेडल प्रदान किया जाए जिनमें चारो साहिबजादो के चित्र हो। ऐसी व्यवस्था हमें करनी होगी जिसके अंतर्गत अगले वर्ष से प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर पर चार- चार बच्चों को चुना जाए तथा उनका सम्मान किया जाये।

4. हमें अपने बच्चों को वीर साहिबजादो की कहानी निश्चित रूप से सुनानी है तथा धर्म की रक्षा हेतु उनकी कुर्बानी के लिए हम सब उनके आजीवन, अत्यंत कृतज्ञ रहेंगे ।