
तीजा ने दिखाया पुरुष भी समझते हैं अपनी पत्नियों के योगदान को
ख़बरगली @ साहित्य डेस्क
पति और पत्नी के प्रेम का पर्व तीजा पूरी श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जा रहा है। गरीब गुरबा से लेकर धनबल से मजबूत पतिदेवों ने अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार अपनी सुआरी पत्नियों को तीज पर लुगरा साड़ी भेंट देकर खुश कर दिया। निर्जला व्रत रहना आसान नहीं होता लेकिन व्रत धारी महिलाओं का संकल्प इसे सफलता पूर्वक संपन्न करवाता है।
पतिव्रता महिलाओं ने तीजा मानने के लिए अपने-अपने पतियों से साड़ी भेंट पाने के बाद मायके की ओर रुख कर लिया था। उनके पतिदेव बच्चों के साथ अकेले रह गए थे। इसी के साथ पतियों ने भी अपनी पत्नियों के मायके जाने की स्थिति में अपने घरों में परंपरागत रूप से पत्नियों के द्वारा किए जाने वाले कम को संभाल कर अच्छा पति होने का मुजायरा पेश किया। कुछ ऐसे ही आदर्श पतियों से ख़बरगली ने बात की-
शिक्षक संस्कार श्रीवास्तव ने बड़े हर्ष के साथ उत्सव मनाते हुए बताया कि पत्नियां अपने-अपने मायके में रहेंगी तब उनके पति घर में क्या करेंगे ? घर में बर्तन वाली , चौक झाड़ू पोछा कपड़ा साफ करने वाली बाईयां महिलाएं भी नहीं आएंगी। गणेश चतुर्थी के बाद ही सुहागिन महिलाएं अपने-अपने पतिदेव के घरों में वापस लौटेंगी। लिहाजा हम पतिदेवों को अपने-अपने घरों में खाना बनाने से लेकर चौका चूल्हा झाड़ू बर्तन कपड़ा साफ सफाई की जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। कहीं एक जगह इकट्ठा होकर भोजन आदि बनाने के लिए सेलिब्रेशन भी किया गया है। पत्नी व्रत कर रही हैं तो हम बच्चों के लिए भोजन बनाकर उनका पेट भर रहे हैं। हमें कालेज के जमाने में खुद हॉस्टल में रहकर पाककला सीखने को प्रैक्टिकल मौका मिला है जिसे हम पति समाज पूरे मन से पूरा करने की कोशिश किए हैं।
वहीँ दैनिक अखबार नवभारत के वरिष्ठ पत्रकार संजीव दीवान का कहना है कि उन्हें पाक कला में पहले से ही रुचि है इसलिए वे बड़ी सहजता से रसोई के सब काम ख़ुशी- ख़ुशी निपटा लेते हैं। वे ख़बरगली को बिना संकोच किए यह भी बताते हैं कि वे बर्तन भी बड़ी सफाई से साफ कर लेते हैं। संजीव बताते हैं कि घर के ये कार्य वे सिर्फ तीज के वक्त ही नहीं बल्कि उन दिनों भी करते है जब-जब उनकी पत्नी मायके जाती हैं या उनका कभी थोड़ा स्वास्थ्य भी गड़बड़ाता है। उनका कहना है कि घर की महिलाओं का परिवार के प्रति बड़ा योगदान होता है ऐसे में पुरुषों को भी चाहिए कि हमेशा उन्हें सहयोग करें।

कुछ ऐसा ही कहना है सचिन श्रीवास्तव का कि समय पड़ने पर पत्नी की सहायता के लिए पतियों को भी घर के काम करना चाहिए। आखिर अपने पति के लिए ही तो वें इतना कठिन व्रत रखतीं हैं।
वहीँ कुछ ऐसे पतियों से भी बात हुई जिनके नाम और तश्वीरें हम प्रकाशित नहीं कर रहे हैं, इनका कहना है कि उनको भोजन बनाना नहीं आता। इसीलिए मार्केट से रेडीमेड भोजन और बर्तन नहीं मांजने पड़ें इसके लिए डिस्पोजल बर्तन आदि ले आए थे। खैर ऐसा नहीं है कि इस तरह से मजबूर पति अपनी पत्नी से प्यार नहीं करते, अब जिन्होंने कभी घर के ऐसे काम नहीं किए हैं वो बेचारे आखिर क्या करें? कुल मिलाकर तीजा पति और पत्नी में घर के कार्यों को लेकर परंपरागत जो पहचान थी उसमें बदलाव लाने का संदेश दे गया।
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