50 हजार साल बाद पहली बार धरती की ओर आ रहा है हिमयुग के समय का धूमकेतु
धूमकेतु का व्यास करीब एक किलोमीटर
नई दिल्ली (khabargali) 1 फरवरी की रात को बेहद अद्भुत नजारा देखने को मिलेगा। अगले महीने अंतरिक्ष से ऐसा मेहमान आ रहा है, जो इससे पहले हिमयुग में आया था। यानी करीब 50 हजार साल पहले। इसके बाद ये कब आएगा ये बता पाना मुश्किल है। लेकिन अगला चक्कर 50 हजार साल बाद ही लगेगा। यह एक धूमकेतु (Comet) है। इस धूमकेतु का नाम है C/2022 E3 (ZTF)। अगर आपके इलाके में आसमान साफ रहेगा तो आप इसे नंगी आंखों से देख सकते हैं। इसे देखने के लिए किसी दूरबीन या टेलिस्कोप की जरुरत नहीं पड़ेगी। लेकिन इस नजारे का लुत्फ उठाना के लिए आपको ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ेगी। असल में यह एक धूमकेतु है, जो इससे पहले हिमयुग में आया था। इसका नाम सी/2022 ई3 है। इससे पहले यह 50 हजार साल पहले अपर पेलियोलिथिक काल में आया था, जब इंसानों की आधुनिक प्रजाति (होमो सेपियंस) भी नहीं थे।
रात में दिन जैसा उजाला होगा
हमारे सौर मंडल की बाहरी सर्किल से यात्रा करने के बाद यह धूमकेतु 12 जनवरी को सूर्य के सबसे करीब से गुजरेगा और 1 फरवरी को पृथ्वी के सबसे पास देखा जाएगा, जब यह धूमकेतु अपने पूरे शबाब पर होगा। इस दौरान इससे निकलने वाली रोशनी रात में दिन जैसा उजाला कर सकती है। ज्विकी ट्रांसिएंट फैसिलिटी में काम करने वाले प्रोफेसर थॉमस प्रिंस का कहना है कि यह धूमकेतु पृथ्वी के सबसे करीब होने पर सबसे चमकीला होने वाला है।
करीब एक किलोमीटर धूमकेतु का व्यास होगा
पेरिस ऑब्जर्वेटरी के एक खगोल वैज्ञानिक निकोलस बीवर ने अनुमान लगाते हुए बताया कि, बर्फ और धूल से बने और हरे रंग की रोशनी का उत्सर्जन करने वाले इस धूमकेतु का व्यास (डाइमीटर) करीब एक किलोमीटर बताया है। धूमकेतु की तुलना में काफी छोटा बताया जा रहा है। दरअसल, यह आखिरी धूमकेतु था, जिसे बिना किसी सहायता के नंगी आंखों से देखा गया था, जो मार्च 2020 में पृथ्वी के पास से गुजरा था। इससे पहले 1997 में हेल-बोप धूमकेतु पृथ्वी के पास से गुजरा था। इसका संभावित व्यास करीब 60 किलोमीटर था। हेल-बोप धूमकेतु कई दशकों में सबसे ज्यादा चमकदार और 20वीं सदी में सबसे अधिक अवलोकित किए गया था। इसे नग्न आंखों से 18 महीने तक देखा गया था।
मार्च में खोज हुई थी
इस धूमकेतु को पिछले साल मार्च में खोजा गया था, जिसके बाद से लगातार कैलिफोर्निया की ज्विकी ट्रांसजिएंट फैसिलिटी के वैज्ञानिकों द्वारा ट्रैक किया जा रहा है।
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