Laughter

तीली" पुस्तक समीक्षा

ख़बरगली। ग़ज़ल अपने आरंभिक दौर में ओहदेदारों, जागीरदारों, मनसबदारों , अमीरों, उमराओं, नवाबों बादशाहों के हल्कों तक सीमित थी. ग़ालिब का दौर आते आते यह आम फ़हम और आम अवाम तक अपनी पहचान बनाती गई और आज ग़ज़ल हर ख़ास –ओ-आम में मक़बूल और लोकप्रिय है.इसमें मुहब्बत ,हुस्न ,इश्क,हिज़्र ,विसाल,रंज़,आंसू,हँसी,खुशी,आहें,कराहें,जाम-मीना,साकी की बातें होती रहीं.उस दौर को “अदब-बराए-अदब” कहा गया.चूँकि यह सारे हाव-भाव,ख़याल, जज़बात मनुष्यता के आरम्भ से ही विद्यमान हैं और अंत तक रहेंगे ,इसलिए आज भी जब सुदेश कुमार मेहर यह कहते हैं –