छत्तीसगढ़ की धरती में खोजे जाएंगे इतिहास के नए अध्याय, इस आठ विजन पर कर रहे काम

New chapters of history will be discovered in the land of Chhattisgarh, work is being done on these eight visions Chhattisgarh news hindi news latest News big news khabargali

रायपुर (khabargali) भारतीय पुरातत्व विभाग की ओर से छत्तीसगढ़ में बहने वाली नदियों के पास अब नई पुरातात्विक धरोहरों की खोज की जाएगी। इसके साथ ही शैलचित्रों को संरक्षित करने, प्रदेश के 36 मृत्तिकागढ़ (मिट्टी के बर्तन) का डॉक्यूमेंमट बनाने, नई जगहों को चिन्हित करने और सभी पुरातात्विक कालों की बसाहट की जानकारी के लिए इतिहास का दस्तावेज सहेजने समेत अन्य कार्य किए जा रहे हैं। इसके लिए विभाग ने 2035 तक के लिए विजन प्लॉन तैयार किया है। इसका उद्देश्य प्रदेश को देशभर में पुरातात्विक पहचान दिलाना है।

वर्तमान में प्रदेश के गठन के बाद से अब तक किए गए पुरातात्त्विक अन्वेषण व उत्खनन, उसके परिणाम और भविष्य में प्रस्तावित परियोजनाओं के आधार पर विजन तैयार किया गया है। वहीं प्रदेश में अब तक ताम्र, पाषाण युगीन संस्कृति से संबंधित एक भी स्थल नहीं है, इसलिए इस क्षेत्र में काम किया जा सकता है। साथ ही यहां मिले मृत्तिकागढ़ समेत अन्य चीजों को विश्व घरोहर में शामिल करने की मांग की जाएगी।

रायपुर जिले की आरंग तहसील के ग्राम रीवा में लंबे समय से पुरातात्विक उत्खनन किया जा रहा है। यहां से भारी मात्रा में मौर्य काल से लेकर कल्चुरी काल तक के अवशेष मिले हैं। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि यह जगह बिड्स के कारखाना के रुप में स्थापित थी। यहां से देशभर में बिड्स का निर्यात किया जाता था। साथ ही भारत का पहली करेंसी सिल्वर पंचमार्क्ड कॉइंस, स्तुभ, कुवें, रिंग समेत बहुत से अवशेष मिले है। इससे पता लगाया जाएगा कि यह किस काल तक के अवशेष हैं।

सरगुजा जिले के महेशपुर में सोमवंशी, त्रिपुरी और कल्चुरी काल के अवशेष मिले हैं। जो कि 8वीं शताब्दी से लेकर 13 वीं शताब्दी तक के हैं। साथ ही इसका धार्मिक महत्व काफी है, यहां शैव, वैष्णव, सूर्य, शक्ति, जैन संप्रदाय के मूर्ति और चार टीले भी मिले हैं। इस धरोहर को स्थल के रूप में संरक्षित कर व डेवलप किया जाएगा। यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा।

छत्तीसगढ़ शैलचित्रों में काफी धनी है। यहां आदिमानवों की गुफाओं में 80 से ज्यादा रॉक पेंटिंग मिली हैं। यह सबसे ज्यादा रायगढ़ और कांकेर में है। इसलिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के आदिदृश्य विभाग और पुरातत्व विभाग के बीच में एमओयू किया गया है। यह प्रदेश में नए स्थल खोजकर उसे संरक्षित करेंगे। पानी और हवा से बचाने के लिए गुफाओं के सामने पेड़ लगाने के साथ ही गुफाओं की दरारों को भरने के लिए रैलिंग लगाने का काम किया जाएगा।

बस्तर और सरगुजा क्षेत्र छत्तीसगढ़ का एक अहम हिस्सा है। अब तक इस क्षेत्र में पुरातत्व स्थल खोजने के लिए खुदाई नहीं की गई है। अब यहां कई जगहों को चिन्हाकिंत किया जाएगा, इसके बाद खुदाई होगी। साथ ही अन्य कार्यो का विस्तार किया जाएगा।

प्रदेश के प्रागैतिहासिक कालक्रम और शैलचित्रों को जानने के लिए सभी जगहों के सैंपल कलेक्ट किए जाएंगे। इसमें रायगढ़, कोरबा, कांकेर समेत अन्य स्थल शामिल हैं। साथ ही तिथि निर्धारण कर शैलाश्रयों को खोजेंगे और जानने की कोशिश करेंगे की यह किस काल काल से लेकर किस काल तक के अवशेष हैं।

नदियों के आसपास के क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर उन्हें चिन्हाकिंत किया जाएगा। इसके बाद नए पुरातात्विक स्थलों को खोजा जाएगा। प्रदेश की शिवनाथ नदी, जोंक, इंद्रावती, रेणुका, हसदेव सरगुजा नदियों के पास सर्वेक्षण किया गया है। अब यहां मिली जानकारियों के अनुसार खुदाई की जाएगी।

प्रदेश के सभी मृत्तिकागढ़ (मिट्टी के बर्तन) को मार्क कर डॉक्यूमेंट तैयार कराया जाएगा। छत्तीसगढ़ का नाम भी रायपुर के 18 और रतनपुर के 18 गढ़ों के नाम से ही पड़ा है। अब तक खुदाई में तीन मृत्तिकागढ़ मिले है। अन्य खोजकर सभी का डॉक्यूमेंट बनाया जाएगा।

चिन्हांकित पुरास्थलों के काल क्रम को चेक करने के लिए उत्खनन किया जाएगा। जिससे यह किस काल के हैं व इसकी बसाहट की जानकारी मिलेगी। जैसे की मल्हार, रीवा और तरीघाट में खुदाई की गई है। इससे इतिहास की जानकारी मिलेगी।

विभाग की ओर से 2035 तक के लिए प्लॉन तैयार किया गया है। इसके अनुरुप नदियों के पास नए पुरातत्व स्थल समेत अन्य पुरातत्विक चीजें खोजी जाएंगी। इससे हम आने वाले समय में छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक इतिहास को अच्छे से बता पाएंगे। 

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