प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार शिवशंकर शुक्ल नहीं रहे

Senior litterateur Shivshankar Shukla, first novelist of Chhattisgarhi language, Bhabhi Ka Mandir, Diana Ke Anjor, Khabargali

गुरुवार को हुआ निधन, छत्तीसगढ़ी भाषा के हैं पहले उपन्यासकार

रायपुर (khabargali) छत्तीसगढ़ी साहित्य को अपने उपन्यासों, कहानियों और बाल साहित्य से समृद्ध करने वाले प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार 91 वर्षीय शिवशंकर शुक्ल का 20 अप्रैल, गुरुवार को निधन हो गया। उन्हें छत्तीसगढ़ी भाषा का पहला उपन्यासकार माना जाता है। 8 दिसंबर 1932 को जन्में श्री शुक्ल बचपन से ही मेधावी थे। उनकी पहली रचना आठ वर्ष की उम्र में इलाहाबाद से प्रकाशित बाल पत्रिका विनोद में छपी। उनका पहला हिंदी उपन्यास 'भाभी का मंदिर' 1958 में छपकर आया। छत्तीसगढ़ी भाषा पहला उपन्यास 'दियना के अंजोर' 1964 में प्रकाशित हुआ। जिसकी भूमिका महान साहित्यकार और 'सरस्वती' पत्रिका के संपादक रह चुके पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी ने लिखा। उनका तीसरा उपन्यास 'मोंगरा' 1966 में छपकर आया। इसका हिंदी अनुवाद प्रसिद्ध साहित्यकार व छत्तीसगढ़ी राजगीत के रचयिता नरेंद्र देव वर्मा ने किया। इस उपन्यास का रशियन भाषा में भी अनुवाद हुआ, जिसे डॉ. वारा नोकोव ने किया।

उनका पहला छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह 'रधिया' 1968 और दूसरा 'छत्तीसगढ़ी कहिनी' 1970 प्रकाशित हुआ। उन्होंने ढेर सारे बाल साहित्य की रचना की है, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा। उनके द्वारा रचित बाल साहित्य में डोकरी के कहिनी छत्तीसगढ़ी भाषा में (पाँच भाग में) 1957, हाथी उड़ा आकाश में (हिंदी) 1953, अकल हे फेर पइसा नइए (छत्तीसगढ़ी) 1955, पइसा के रुख (छत्तीसगढ़ी) 1974, दामांद बाबू दुलरू (छत्तीसगढ़ी) 1996, राजकुमारी नैना (हिंदी) 1994 और कुछु कांही 2016 में प्रकाशित हुआ।

उन्हें कई सम्मान व पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। जिनमें रायपुर संभागीय साहित्य सम्मेलन, राजभाषा आयोग, प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति व राष्ट्र भाषा प्रचार समिति रायपुर आदि प्रमुख हैं। श्री शुक्ल ने 1955-1956 एक वर्ष तक छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका का भी प्रकाशन किया। प्रदेश के प्रतिष्ठित अखबारों में उनकी कहानियों का प्रकाशन हुआ है। छत्तीसगढ़ के मूर्धन्य साहित्यकार हरि ठाकुर ने भी उनके उपन्यासों के प्रसंशक रहे हैं। श्री शुक्ल जिला कांग्रेस कमेटी के पूर्व महामंत्री भी थे। उनका अंतिम संस्कार गुरुवार दोपहर 2 बजे मारवाड़ी मुक्तिधाम में किया गया। वे अपने पीछे भरा-पूरा परिवार छोड़कर गए हैं। उनके एक पुत्र आदित्य शुक्ल व नाती अगस्त्य, अद्भुत व नातिन अम्बिका शुक्ल हैं।

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