श्री वृंदावन के सप्त निधि...श्रीकृष्ण के हैं जो विशेष 7 श्रीविग्रह

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सप्त देवालय में से 3 आज भी वृंदावन धाम के मंदिरों में स्थापित हैं, वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं

हर एक ठाकुर जी की कथा और लीला अलग-अलग है

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खबरगली (धर्म - अध्यात्म) श्री वृन्दावन धाम श्री कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंशपुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों के अस्तित्व का भान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन में निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में भी वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है। वर्तमान में टटिया स्थान, निधिवन, सेवाकुंज, मदनटेर,बिहारी जी की बगीची, लता भवन (प्राचीन नाम टेहरी वाला बगीचा) आरक्षित वनी के रूप में दर्शनीय हैं ।

वृंदावन में तकरीबन 5000 छोटे-बड़े मंदिर हैं. कुछ मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराने हैं वर्ष 1515 में महाप्रभु चैतन्य ने यहां के कई मंदिरों की खोज की थी. तब से लेकर अब तक कई मंदिर नष्ट हो चुके हैं और कई नए बने आज हम आपको 7 भगवान कृष्ण के श्रीविग्रहों बारे में बता रहे हैं, जिनका संबंध वृंदावन धाम से है। इन 7 श्रीविग्रहों में से 3 आज भी वृंदावन धाम के मंदिरों में स्थापित हैं, वहीं 4 अन्य स्थानों पर प्रतिष्ठित हैं। हर एक ठाकुर जी की कथा और लीला अलग-अलग है:

1. भगवान गोविंद देवजी, जयपुर

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रूप गोस्वामी को ये श्रीविग्रह वृंदावन के गौमा टीला नामक स्थान से वि. सं. 1592 (सन् 1535) में मिली थी। उन्होंने उसी स्थान पर छोटी सी कुटिया में इस श्रीविग्रह को स्थापित किया। इनके बाद रघुनाथ भट्ट गोस्वामी ने गोविंदजी की सेवा पूजा संभाली, उन्हीं के समय में आमेर नरेश मानसिंह ने गोविंदजी का भव्य मंदिर बनवाया। इस मंदिर में गोविंद जी 80 साल विराजे। औरंगजेब के शासनकाल में ब्रज पर हुए हमले के समय गोविंदजी को उनके भक्त जयपुर ले गए, तब से गोविंदजी जयपुर के राजकीय (महल) मंदिर में विराजमान हैं।

2. भगवान मदन मोहनजी, करौली

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यह श्रीविग्रह अद्वैतप्रभु को वृंदावन में कालीदह के पास द्वादशादित्य टीले से प्राप्त हुई थी। उन्होंने सेवा-पूजा के लिए यह श्रीविग्रह मथुरा के एक चतुर्वेदी परिवार को सौंप दी और चतुर्वेदी परिवार से मांगकर सनातन गोस्वामी ने वि.सं. 1590 (सन् 1533) में फिर से वृंदावन के उसी टीले पर स्थापित की। बाद में क्रमश: मुलतान के नमक व्यापारी रामदास कपूर और उड़ीसा के राजा ने यहां मदनमोहनजी का विशाल मंदिर बनवाया। मुगलिया आक्रमण के समय इन्हें भी भक्त जयपुर ले गए पर कालांतर में करौली के राजा गोपालसिंह ने अपने राजमहल के पास बड़ा सा मंदिर बनवाकर मदनमोहनजी को स्थापित किया। तब से मदनमोहनजी करौली (राजस्थान) में ही दर्शन दे रहे हैं।

3. भगवान गोपीनाथजी, जयपुर

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भगवान श्रीकृष्ण का ये श्रीविग्रह संत परमानंद भट्ट को यमुना किनारे वंशीवट पर मिली और उन्होंने इस श्रीविग्रह को निधिवन के पास विराजमान कर मधु गोस्वामी को इनकी सेवा पूजा सौंपी। बाद में रायसल राजपूतों ने यहां मंदिर बनवाया पर औरंगजेब के आक्रमण के दौरान इनको भी जयपुर ले जाया गया, तब से भगवान गोपीनाथजी वहां पुरानी बस्ती स्थित गोपीनाथ मंदिर में विराजमान हैं।

4. भगवान जुगलकिशोर जी, पन्ना

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भगवान श्रीकृष्ण का ये श्रीविग्रह हरिरामजी व्यास को वि.सं. 1620 की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यासजी ने उस श्रीविग्रह को वहीं प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। यहां भगवान जुगलकिशोर अनेक वर्षों तक बिराजे पर मुगलिया हमले के समय जुगलकिशोरजी को उनके भक्त ओरछा के पास पन्ना ले गए। पन्ना (मध्य प्रदेश) में आज भी पुराने जुगलकिशोर मंदिर में दर्शन दे रहे हैं।

5. भगवान राधारमणजी, श्री वृंदावन धाम

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श्रीला गोपाल भट्ट गोस्वामी को गंडक नदी में एक शालिग्राम शिला मिला। वे उसे वृंदावन ले आए और केशीघाट के पास मंदिर में प्रतिष्ठित कर दिया। भक्त के द्वारा दिए वस्त्रों को धारण न करा पाना और एक दिन किसी दर्शनार्थी ने कटाक्ष कर दिया कि चंदन लगाए शालिग्रामजी तो ऐसे लगते हैं मानो कढ़ी में बैगन पड़े हों। यह सुनकर गोस्वामीजी बहुत दुखी हुए पर सुबह होते ही शालिग्राम से भगवान राधारमण का दिव्य श्रीविग्रह प्रकट हो गया। यह दिन वि.सं. 1599 (सन् 1542) की वैशाख पूर्णिमा का था। वर्तमान मंदिर में इनकी प्रतिष्ठापना सं. 1884 में की गई. श्री वृन्दावन धाम में मुगलिया हमलों के बावजूद यही एक मात्र श्रीविग्रह है, जो वृंदावन से कहीं बाहर नहीं गए इन्हें भक्तों ने वृंदावन में ही छुपाकर रखा। सबसे विशेष बात यह है कि जन्माष्टमी को जहां दुनिया के सभी कृष्ण मंदिरों में रात्रि बारह बजे उत्सव पूजा-अर्चना, आरती होती है, वहीं राधारमणजी का जन्म अभिषेक दोपहर बारह बजे होता है, मान्यता है ठाकुरजी अत्यंत सुकोमल होते हैं उन्हें रात्रि में जगाना ठीक नहीं.

6. भगवान राधाबल्लभजी, वृंदावन धाम

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परम भगवान श्रीकृष्ण का यह श्रीविग्रह हित हरिवंशजी को दहेज में मिला था। उनका विवाह देवबंद से वृंदावन आते समय चटथावल गांव में आत्मदेव ब्राह्मण की बेटी से हुआ था। पहले वृंदावन के सेवाकुंज में (संवत् 1591) और बाद में सुंदरलाल भटनागर (कुछ लोग रहीम को यह श्रेय देते हैं) द्वारा बनवाए गए लाल पत्थर वाले पुराने मंदिर में राधाबल्लभजी प्रतिष्ठित हुए। मुगलिया हमले के समय भक्त इन्हें कामा (राजस्थान) ले गए थे। वि.सं. 1842 में एक बार फिर भक्त इस श्रीविग्रह को वृंदावन ले आए और यहां नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठित किया, तब से भगवान राधाबल्लभजी जी यहीं विराजमान है।

7. भगवान बांकेबिहारीजी, श्री वृंदावन धाम

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मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी को संगीत के मुख्य आचार्य स्वामी हरिदासजी महाराज के हरिभक्ति ,आराधना को साकार रूप देने के लिए भगवान बांकेबिहारीजी निधिवन में प्रकट हो गए। स्वामीजी ने इस श्रीविग्रह को वहीं प्रतिष्ठित कर दिया। मुगलों के आक्रमण के समय भक्त इन्हें भरतपुर ले गए। वृंदावन के भरतपुर वाला बगीचा नाम के स्थान पर वि.सं. 1921 में मंदिर निर्माण होने पर बांकेबिहारी एक बार फिर वृंदावन में प्रतिष्ठित हुए, तब से यहीं भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। भगवान बिहारीजी का प्रमुख विशेषता यह है कि यहाँ साल में एक दिन ही ठाकुर के चरण दर्शन होते है, साल में एक बार ही ठाकुर बंशी धारण करते हैं | यहां साल में केवल एक दिन (जन्माष्टमी के बाद भोर में) मंगला आरती होता है, जबकि वैष्णव मंदिरों में नित्य सुबह मंगला आरती होने का परंपरा है।

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