श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा: छत्तीसगढ़ की पावन भूमि पर परंपरा, श्रद्धा और सामाजिक समरसता का अभूतपूर्व उत्सव

Sri Jagannath Rath Yatra: An unprecedented celebration of tradition, faith and social harmony on the holy land of Chhattisgarh, preparations for a grand event in Gayatri Nagar, Raipur, the country's second largest Jagannath temple, Purandar Mishra, MLA from Raipur North Assembly constituency, Chhattisgarh, Khabargali

रायपुर के गायत्री नगर में स्थित देश के दूसरे सबसे बड़े जगन्नाथ मंदिर में भव्य आयोजन की तैयारी

रायपुर (खबरगली) भारतवर्ष की धार्मिक परंपराएं केवल मंदिरों की दीवारों तक सीमित नहीं हैं। वे सड़कों पर उतरती हैं, जन-मन में बसती हैं, और समय के साथ समाज के हर वर्ग को जोड़ती हैं। ऐसा ही एक अद्वितीय पर्व है — श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा। सदियों से ओडिशा के पुरी में मनाया जाने वाला यह पर्व अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी भव्यता और आस्था के साथ मनाया जा रहा है, और यह आयोजन अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन चुका है। श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा। सदियों से ओडिशा के पुरी में मनाया जाने वाला यह पर्व अब छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी भव्यता और आस्था के साथ मनाया जाता है।

भगवान श्रीजगन्नाथ, उनके भ्राता बलभद्र और बहन सुभद्रा जब विशाल रथों पर सवार होकर पुरी की गलियों से निकलते हैं, तो यह केवल मूर्तियों का नगर भ्रमण नहीं होता — यह ईश्वर का भक्तों से मिलने स्वयं बाहर आना होता है। रथ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ 12वीं शताब्दी में माना जाता है, जब पुरी के गंग वंशीय राजा अनंतवर्मन चोडगंगदेव ने श्रीजगन्नाथ मंदिर का निर्माण कराया। हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकलने वाली यह यात्रा एक धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ मानव समानता और सेवा भावना का जीवंत प्रदर्शन है।

पुरी में जहां लाखों श्रद्धालु रथ खींचते हैं, वहीं आज देश और विदेश में यह परंपरा फैल चुकी है। आज छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित श्रीजगन्नाथ मंदिर, श्रीयेत्र (गायत्री नगर) देश का दूसरा सबसे बड़ा जगन्नाथ मंदिर है। इसकी भव्यता, कलात्मकता और आध्यात्मिक ऊर्जा पुरी की याद दिलाती है। यहां से हर वर्ष निकलने वाली श्रीजगन्नाथ रथ यात्रा अब छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा भक्ति उत्सव बन गई है।

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यह गर्व और गौरव की बात है कि छत्तीसगढ़ का भगवान श्रीजगन्नाथ से बहुत प्राचीन संबंध रहा है। ऐतिहासिक प्रमाण बताते हैं कि जब छत्तीसगढ़ का भूभाग प्राचीन कलिंग साम्राज्य का हिस्सा था, तब से यहां श्रीजगन्नाथ की पूजा प्रचलित थी। भगवान श्रीजगन्नाथ के रसोईघर — अन्नपूर्णा रसोई (महा प्रसाद मंडप) — में प्रतिदिन जो भोग तैयार होता है, उसमें उपयोग होने वाले चावल की विशेष किस्म प्राचीन काल से छत्तीसगढ़ के देवभोग क्षेत्र से मंगाई जाती रही है। देवभोग, जो आज ओडिशा की सीमा से लगे छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में आता है, कभी कलिंग राज्य का हिस्सा था और पुरी से धार्मिक वाणिज्यिक संबंध रखता था। यह क्षेत्र उत्कृष्ट गुणवत्ता के सुगंधित चावल के लिए प्रसिद्ध था, जिसे "भोग के योग्य अन्न" माना जाता था। इस आयोजन को सफल बनाने और इसे राज्य की पहचान में बदलने का कार्य कर रही है — श्रीजगन्नाथ सेवा समिति, जिसका नेतृत्व कर रहे हैं श्री पुरंदर मिश्रा, जो रायपुर उत्तर विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं। वे न केवल एक जनप्रतिनिधि हैं, बल्कि एक समर्पित सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ता भी हैं, जो रथ यात्रा को जनभागीदारी का उत्सव बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

रथ यात्रा की विशेषता है — जन-जन की भागीदारी। रायपुर की यात्रा में भी यही देखने को मिलता है। हजारों श्रद्धालु न केवल रथ को खींचते हैं, बल्कि उसमें सेवा करते हैं, भजन-कीर्तन में भाग लेते हैं, चिकित्सा, जल, और भोजन वितरण में योगदान देते हैं। यह आयोजन केवल पूजा नहीं, बल्कि सामूहिक सहभागिता का उत्सव है। इसमें नेता, व्यापारी, विद्यार्थी, गृहिणी, मजदूर — सभी एक समान होकर भाग लेते हैं। यह दृश्य समाज को एकता और समरसता का पाठ पढ़ाता है, और यह बताता है कि भगवान के रथ को खींचने के लिए किसी विशेष जाति, वर्ग या धर्म की आवश्यकता नहीं होती — केवल श्रद्धा और सेवा की भावना चाहिए।

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