देश आर्थिक मंदी के भयावह दौर से गुजर रहा है - कांग्रेस

economic recession
  • भारत में उद्योगों की मेन्यूफेक्चरिंग ग्रोथ 12 प्रतिशत से घट कर 0.6 प्रतिशत के भयावह स्तर पर

  •  बेरोजगारी दर पिछले 27 महीनों के रिकार्ड स्तर 7.38 फीसदी पहुंच गयी

  • बेरोजगारी का आंकड़ा 2017 में 18.3 करोड़ था जो साल 2018 में बढ़कर 18.6 करोड़ हो गया

  • मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, अदूरदर्शिता का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा-  कांग्रेस

रायपुर (खबरगली) देश आर्थिक मंदी के भयावह दौर से गुजर रहा है। प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि मोदी सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, अदूरदर्शिता कुशासन का खामियाजा देश को भुगतना पड़ रहा है। देश के नागरिक इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक मंदी के दंश को झेलने को मजबूर है। उद्योग, व्यवसाय सब चौपट हो गये है। निजी क्षेत्रों में रोज कर्मचारियों की छटनी हो रही है, बड़े, छोटे और लघु उद्योग सभी बंदी के कगार पर है। देश में उद्योगों की मेन्यूफेक्चरिंग ग्रोथ 12 प्रतिशत से घट कर 0.6 प्रतिशत के भयावह स्तर पर पहुंच गयी है। रिजर्व बैंक के रिजर्व रकम को मोदी सरकार ने बिना किसी योजना के निकाल कर देश को और बदहाली की ओर पहुंचाने की कवायद कर रही है। मोदी सरकार आत्ममुग्धता में जी रही है।

12 करोड़ लोग रोजगार के कतार में

 देश में बेरोजगारी बढ़ रही है। सेन्टर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकॉनामी सी.एम.आईई. के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर पिछले 27 महीनों के रिकार्ड स्तर 7.38 फीसदी पहुंच गयी है, वहीं नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार साल 2018 में देश की बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी थी जो बीते 45 सालों में सर्वाधिक थी। इसके पहले 1972-73 में देश में बेरोजगारी की दर 6 फीसदी से ज्यादा थी। शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी की दर 7.8 फीसदी है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 5.3 फीसदी है। इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन (आई.एल.ओ) के मुताबिक देश में बेरोजगारी का आंकड़ा 2017 में जहां 18.3 करोड़ था जो साल 2018 में बढ़कर 18.6 करोड़ हो गया। भारतीय श्रम ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में सबसे ज्यादा बेरोजगारी वाला देश है। जहां साल 2019 की शूरूआत में ही 11 फीसदी आबादी यानी 12 करोड़ लोग रोजगार के कतार में है। संगठित क्षेत्र के प्रतिष्ठानों में कर्मचारियों की छटनी हो रही है। नोटबंदी और जीएसटी ने देश की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। सरकारी क्षेत्र में लाखों पद खाली है। देश का दुर्भाग्य है कि भारत में प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में अर्थशास्त्र के उच्च शिक्षित विद्यार्थी विभिन्न प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों से निकलते है, लेकिन मोदी सरकार ने भारत के रिजर्व बैंक को संभालने की जवाबदारी एक इतिहास के स्नातकोत्तर को सौंप रखी है।