कनकी का नाम सार्थक करती शिक्षिका, कंचन टंडन

Teacher making the name Kanki meaningful, Kanchan Tandon, teacher, International Women's Day, Raipur, Chhattisgarh, Khabargali

कहा - “ये मासूम बच्चे बीज की तरह हैं। शिक्षा के पोषण से ये सुनहरे भविष्य की फसल बनेंगे।”

कनकी /रायपुर (खबरगली) हर शनिवार, कनकी स्कूल के बच्चे उत्साह से अपने कक्षा में इकट्ठा होते हैं। उनकी शिक्षिका, श्रीमती कंचन टंडन, पूरे सप्ताह की गतिविधियों की तस्वीरों का एक वीडियो कोलाज दिखाती हैं — जिसमें वे सीखते, खेलते, रचनात्मक कार्य करते नजर आते हैं। बच्चे खुशी से खिल उठते हैं। "उन्हें खुद को उस वीडियो में देखना बहुत अच्छा लगता है," कंचन जी कहती हैं, "और उसमें आने के लिए वे पूरे हफ्ते मेहनत करते हैं।" आज कनकी स्कूल एक खास ऊर्जा से भरा हुआ दिखाई देता है। छात्र पढ़ाई में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं, और अभिभावक भी अब अपने बच्चों की शिक्षा में रुचि लेते हैं। यह स्कूल एक उज्जवल भविष्य की आशा जगाता है। हालाकि यह स्कूल सौ साल पुराना है, जब कंचन जी पहली बार स्कूल में आईं, तो इस स्कूल की स्थिति चिंताजनक थी। पहली से पाँचवीं कक्षा तक के 86 छात्र थे, लेकिन पढ़ाने के लिए उनके अलावा एक ही शिक्षिका थीं। पाँच स्वीकृत शिक्षकों में से दो का प्रमोशन हो चुका था और तीन को मिडिल स्कूल में स्थानांतरित कर दिया गया था। अधिकांश छात्र गरीब और अशिक्षित परिवारों से थे। कुछ तो अपने बुजुर्ग दादा-दादी के सहारे जी रहे थे। स्कूल की हालत भी बदतर थी। बच्चे अंधेरे, बिना हवा वाली कक्षाओं में बैठते थे, और कई तो खिड़कियों से कूदकर भाग जाते थे। जिन कमरों का निर्माण पढ़ाई के लिए किया गया था, वे पुराने कबाड़ रखने के काम आ रहे थे।

"सबसे पहले मैंने उन कमरों को साफ करवाया और बच्चों के लिए उपलब्ध करवाया। अब बच्चे भागते नहीं है। मैंने उन्हें अनुशासन सिखाया। अब वे कक्षा से बाहर जाने से पहले शिक्षक की अनुमति लेते हैं। यह एक छोटा सा बदलाव था, लेकिन इससे बड़ा फर्क पड़ा।" एक और समस्या यह थी कि बच्चों को नया गणवेष मिलने के बावजूद वे पुरानी, जीर्ण गणवेष पहनते थे। कई छात्र कॉपी और पेन तक नहीं लाते थे, और हफ्ते भर में ही अपनी कॉपी के पन्ने फाड़कर खत्म कर देते थे। इसलिए कंचन जी ने अपने खुद के पैसे और स्कूल के फंड से अतिरिक्त पेंसिल और रबर रखना शुरू किया।

शिक्षक कम थे इसलिए सभी कक्षाओं को एक साथ पढ़ाना पड़ता था। "इससे गुणवत्ता प्रभावित होती है। बच्चे अनियमित पढ़ाई के कारण जल्दी भूल जाते थे। ऊपर से प्रशासनिक काम का दबाव भी रहता था।” नए शिक्षक नियुक्त नहीं हो रहे थे, तब कंचन जी स्वयं ही पारिश्रमिक देकर एक अस्थायी शिक्षक नियुक्त करने को तैयार हो गई थी। लेकिन कई प्रयासों के बाद अब स्कूल में तीन शिक्षक हैं। उन्होंने बच्चों को पढ़ाई से जोड़ने के लिए नए तरीकों को अपनाया। सरकारी अनुदान से उन्होंने एक माइक खरीदा ताकि बच्चे सबके सामने खड़े होकर बोलने के लिए प्रोत्साहित हो।

अगले साल, उन्होंने एक एलईडी स्क्रीन मंगवाई, जिस पर वे यूट्यूब वीडियो दिखाने लगीं — हस्तकला ट्यूटोरियल, फाउंडेशनल लिटरेसी के पाठ और संगीत व नृत्य के वीडियो भी। "जब मैं उन्हें कोई पाठ दुबारा दिखाती हूँ और वे पहले ही बोलने लगते हैं, तब पता चलता हैं कि वे ध्यान से देख और सीख रहे हैं।" स्कूल प्रबंधन समिति (SMC) की बैठकों और व्हाट्सएप अपडेट्स में, कंचन जी यह वीडियो माता-पिता को दिखाती हैं। "जब माता-पिता अपने बच्चों को अच्छा प्रदर्शन करते देखते हैं, तो उन्हें गर्व होता है। कुछ अभिभावक तो अब घर पर भी बच्चों की प्रैक्टिस करवाने लगे हैं।" अब भी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। कुछ बच्चे अब भी नियमित स्कूल नहीं आते। निजी स्कूलों के बढ़ते प्रभाव से नामांकन संख्या घट रही है। इन तमाम मुश्किलों के बावजूद, कंचन जी का हौसला कायम है। वे कहती हैं, "शिक्षा सिर्फ किताबों और परीक्षाओं तक सीमित नहीं होती। यह ऐसा वातावरण बनाने की प्रक्रिया है, जहाँ बच्चे खुद सीखने के लिए प्रेरित हों।" यही विचार लेकर वे बिना रुके एक-एक कदम आगे बढ़ रही हैं।

Category