रायपुर में 600 साल में पहली बार 3 युवा ब्रह्मचारी दीक्षार्थियों ने राग रूपी वस्त्र को त्यागकर धारण की दिगम्बर जैन मुनि दीक्षा

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अब इनके पास 3 संपत्तियां ही साथ रह जाएंगी, जो हैं...पिच्छिका, कमंडल और जैन शास्त्र

दीक्षा महोत्सव: आयोजित कार्यक्रम के हजारों लोग बने साक्षी

अब युवाब्रह्मचारी सौरभ भैयाजी कहलाएंगे श्रमण मुनि जयेंद्र सागर महाराज, निखिल भैयाजी जितेंद्र सागर और विशाल भैयाजी जयंत सागर

बिगडऩे से निर्भीक होना पड़ेगा,तब आप कार्य कर पाओगे : आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज

रायपुर (khabargali) राजधानी रायपुर फाफाडीह के सन्मति नगर स्थित दिगंबर जैन खंडेलवाल पंचायत भवन में रविवार को नया इतिहास रचा गया। 600 साल के इतिहास में यह पहला मौका था जब रायपुर में दिगंबर जैन मुनियों की दीक्षा हुई। इस ऐतिहासिक दीक्षा महोत्सव का साक्षी बनने छत्तीसगढ़ समेत आसपास के राज्यों के हजारों लोग फाफाडीह के सन्मति नगर पहुंचे थे। इस दौरान तीन युवाओं ने सांसारिक जीवन से संन्यास लेकर संयम स्वीकार किया। अब वे भिक्षु की तरह रहकर पूरा जीवन धर्म में बिताएंगे।तीनों बेहद कम उम्र में घर-परिवार का त्याग कर दिगंबर मुनि बन गए हैं। अब जीवनभर उनके पास 3 संपत्तियां ही साथ रह जाएंगी, जो ये हैं...पिच्छिका, कमंडल और जैन शास्त्र।

फाफाडीह के दिगंबर जैन खंडेलवाल पंचायत में दीक्षा महोत्सव की शुरुआत रविवार दोपहर हुई। आचार्य विशुद्ध सागर की पावन निश्रा में आयोजित इस कार्यक्रम में राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर भी शामिल हुए। दीक्षा से पहले बाल ब्रह्मचारी निखिल जैन, सौरभ गंगवाल और विशाल जैन ने सन्मति नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर की तीन परिक्रमा की। इसके बाद समाजजन उन्हें अपने कंधों पर बिठाकर दीक्षा स्थल तक पहुंचे। सकल जैन समाज ने आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज की सारी क्रियाओं और चर्याओं को देखकर एवं ऐतिहासिक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव और जैन दीक्षा को देखकर, उन्हें सर्वोदयी संत की उपाधि से विभूषित किया। उपाधि से विभूषित होते ही पंडाल जयकारों से गूंज उठा।

इससे पूर्व उस पल का साक्षी मौजूद सकल जैन समाज बना,जब तीनों युवा ब्रह्मचारी भैयाजी ने राग रूपी वस्त्र को त्यागकर दिगम्बर जैन मुनि दीक्षा को प्राप्त किया। आचार्यश्री ने बाल ब्रह्मचारियों का केश लोच कर दीक्षा की प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने मंडप पर विराजित सभी साधुओं से पूछा कि क्या इन्हें दीक्षा देनी चाहिए। सभी ने हां कहा। दीक्षा प्रक्रिया पूरी होते ही बाल ब्रह्मचारी अपने समस्त वस्त्रों का त्याग कर दिगंबर मुनि बन गए। यह दृश्य देखकर सभा में मौजूद हजारों लोगों की आंखें भर आईं।

आचार्यश्री ने कहा, अब भी समय है। चाहो तो वस्त्र धारण कर सांसारिक जीवन में चले जाओ। तीनों ने ना में सिर हिलाते हुए कहा कि गुरुदेव! बहुत सोच-समझकर यह फैसला लिया है। अब ताउम्र संयम पथ पर ही चलेंगे। इतना सुनना था कि पूरा सभा स्थल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

भीलवाड़ा में भी दिगंबर जैन दीक्षा के साक्षी बने ललितप्रभ श्वेतांबर जैन संप्रदाय से आने वाले राष्ट्रसंत ललितप्रभ सागर भी इस ऐतिहासिक दीक्षा महोत्सव के साक्षी बने। कुछ वर्षों पहले भीलवाड़ा में भी ऐसा संयोग बना था जब वे आचार्य विशुद्ध सागर द्वारा कराई जाने वाली दिगंबर जैन दीक्षा के साक्षी बने थे।

दीक्षा से पहले उन्होंने भीलवाड़ा की स्मृतियों को याद करते हुए कहा कि मैं दिगंबर दीक्षा अद्भुत है। मैं उस वक्त का इंतजार कर रहा हूं जब सभी युवा दिगंबर अवस्था को प्राप्त करेंगे। यह पल वाकई अविस्मरणीय होगा। तीनों युवाओं ने जब वस्त्रों का त्याग कर दिगंबरत्व को प्राप्त किया तो उनकी यह बात सच साबित होती दिखी।

उच्च शिक्षा पा चुके थे तीनों

 

छतरपुर (मध्यप्रदेश) के रहने वाले निखिल ने सीए की

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पढ़ाई की है। वहीं महाराष्ट्र के सौरभ गंगवाल नागपुर यूनिवर्सिटी में एमबीए के टॉपर रहे हैं। आचार्य विशुद्ध सागर के गृहग्राम भिंड के विशाल जैन ने बीकॉम की पढ़ाई की है।

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राग नहीं बिगड़ेगा तो वैराग्य नहीं उत्पन्न हो सकता- आचार्यश्री

आचार्यश्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्मसभा में कहा कि मित्रों जब तक बिगड़ोगे नहीं,तब तक कार्य बनेगा नहीं। ज्ञानियों जो बिगडऩे से डरते हैं वे जीवन में कभी कार्य पूरा नहीं कर पाएंगे। बिगडऩे से निर्भीक होना पड़ेगा, तब आप कार्य कर पाओगे, यही सिद्धांत है। आज 3 बाल ब्रह्मचारी भैयाजी बिगड़े हैं, यदि ये लोग अपनी गृहस्थी न बिगाड़ते, यदि ये दीक्षा न लेते तो आज मुनिराज कैसे बनते? राग नहीं बिगड़ेगा तो वैराग्य नहीं उत्पन्न हो सकता है। ब्रह्मचर्य नष्ट नहीं होगा तो संतान कैसे मिलेगी और परिवार नहीं छोड़ोगे तो भगवान कैसे बनोगे। मित्रों बिगडऩे और बिगाडऩे से ही काम बनता है।

आचार्यश्री ने कहा कि वही धुरंधर बन पाते हैं जो मित्र धुरी पर चलते हैं, खड़े नहीं रहते हैं,धुरी नहीं छोड़ते हैं। रथ का चक्का धुरी पर चलेगा नहीं तो रथ खड़ा रह जाएगा। ऐसे ही जीवन का रथ आगे बढ़ाना है तो संयम सिद्धांत की धुरी को छोडऩा नहीं और स्थिर मत रहना,हमेशा चलते रहना। मित्रों बिना चले कुछ नहीं हो सकता। ज्ञानियों घड़ी का कांटा नहीं चले तो समय का ज्ञान कैसे होगा और गुणस्थानों का कांटा न चले तो संसार का ज्ञान कैसे होगा।

आचार्यश्री ने दीक्षा के पूर्व तीनों बाल ब्रह्मचारियों से कहा कि दीक्षा देने वाला पुण्य कमा लेगा,श्रावक और सभी अनुमोदना कर चले जाएंगे,लेकिन सत्य तो यह है कि दीक्षा लेकर जैसे वस्त्र को आप फेकोगे, वैसे कषायों को भी फेकना पड़ेगा। इन दीक्षर्थियों ने दीक्षा के लिए प्रार्थना की,इनके जन्म के माता-पिता व धर्म के माता-पिता, संत भाई ललितप्रभ जी महाराज ने भी दीक्षा देने की बात कही,यहां राजनेता भी बैठे हैं,ये सभी प्रशंसक आज के हैं,सभी चले जाएंगे,आपको जीवन में व विहार के दौरान वन में अकेले रहना पड़ेगा। वहां भीतर के भाव को कैसे संभालोगे, यह निर्णय कर लो।

आचार्यश्री ने कहा कि खेल-खेल में दीक्षा हो सकती है,पर दीक्षा लेने के उपरांत खेल नहीं होता। संस्कार हो जाएंगे,मंत्र उच्चारण हो जाएगा,वस्त्र तुम्हारे फेंक दिए जाएंगे,मित्रों अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है,पुन: सोच लो। हमारे पास नहीं बैठ पाओ तो भाई ललितप्रभ जी के पास बैठ जाओ,फिर विचार कर लो। जिनको तुम त्याग रहे हो वह आपसे दूर रहेंगे,भविष्य में भी दूर रहेंगे। क्या अब भी दीक्षा के भाव हैं ? आज आपको पूरी भूमि व आकाश देख रहा है। जब आप कपड़े उतारकर फेकोगे तो सब तालियां बजाएंगे। यदि यही संसार में कोई करे तो शर्म से लोग आंख नीची कर लेते हैं।

आचार्यश्री ने कहा कि जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद की सीढ़ी पर पहली बार चढ़ रहे थे तो उनकी आंख में आंसू थे। संसार मे जब चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन सकता है,यहां एक गरीब परिवार का व्यक्ति भी भगवान बन सकता है। जिस पथ पर भगवान आदिनाथ से लेकर महावीर स्वामी चले और वर्तमान में महान आचार्य एवं साधु उस पथ पर चल रहे हैं,क्या आप इस पद को संभाल पाओगे ? इतना ही नहीं आज दीक्षा आपकी हो जाएगी,याद रखना किसी की परछाई मत बनना। परछाई पीछे रहती है। भगवान महावीर के शासन के आगे चलना, संसार का त्याग ही मोक्ष मार्ग है। आचार्यश्री ने कहा कि पूर्व में जो हुआ उसे भूल जाना, पंथों के भेद मन से निकाल देना। देश में चाहे हिंदू, जैन,बौद्ध हों सनातन काल से ये एक थे। इनमें भेद मत करना, राष्ट्र की अखंडता को नष्ट मत करना। किसी दूसरे मुनि संघ की अवहेलना मत करना। विशुद्ध सागर के शासन में कभी किसी दूसरे संघ की अवहेलना,अनादर मत करना।

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