कहा- नए संशोधन से कोई लेना-देना नहीं
रायपुर (khabargali) छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल में लागू किए गए 58 प्रतिशत आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने राहत देने से इनकार किया है। मतलब ये कि 58 प्रतिशत आरक्षण को हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी अपात्र कर दिया है। इस मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट में हुई है। सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से 58 प्रतिशत आरक्षण को बहाल रखने की बात कही गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई राहत देने से इनकार कर दिया है।
खास बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसला का कांग्रेस सरकार के 76 प्रतिशत संशोधित आरक्षण से कोई लेना देना नहीं है। हालांकि ये 58 प्रतिशत आरक्षण मामले में अभी सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने अभी केवल 58 प्रतिशत की अंतरिम राहत को नामंजूर किया है। इस संबंध में पक्षकारों से 4 मार्च तक जवाब पेश करने कहा है। मामले की अगली सुनवाई 22-23 मार्च को होगी। बिलासपुर हाईकोर्ट के इस फैसले के लिए राज्य सरकार व अन्य लोग सुप्रीम कोर्ट में गए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने मांगा लिखित जवाब
सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के गुरु घासीदास साहित्य एवं संस्कृति अकादमी वाले फैसले को लेकर 11 स्पेशल लीव पिटीशन दायर हुई हैं। इसमें से एक याचिका राज्य सरकार की, तीन आदिवासी संगठनों की, तीन आदिवासी समाज के व्यक्तियों की और चार याचिकाएं सामान्य वर्ग के व्यक्तियों की हैं। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भी जारी किया है। अदालत ने सभी पक्षकारों को 4 मार्च तक लिखित जवाब पेश करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई अब 22-23 मार्च को होगी। सोमवार को सुनवाई के दौरान आदिवासी समाज के दो व्यक्तियों योगेश ठाकुर और विद्या सिदार की ओर से कोई वकील पेश नहीं हो पाया। अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ की ओर से पेश अधिवक्ता ने 58 प्रतिशत आरक्षण जारी रखने की अंतरिम राहत देने की राज्य सरकार की मांग का समर्थन किया। संक्षिप्त सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से साफ इनकार कर दिया है। बताया जा रहा है, ऐसा आर्थिक दिक्कतों की वजह से हुआ है। वहीं अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ की ओर से पेश अधिवक्ता ने 58% आरक्षण जारी रखने की अंतरिम राहत देने की राज्य सरकार की मांग का समर्थन किया।
उच्च न्यायालय का प्रशासनिक आदेश भी पेश हुआ
सामान्य वर्ग के दो व्यक्तिगत याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता कौस्तुभ शुक्ला ने सोमवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का एक प्रशासनिक आदेश पेश किया। इस आदेश के जरिये उच्च न्यायालय की भर्तियों में 50% आरक्षण का फॉर्मुला लागू किया गया है। यानी अनुसूचित जाति को 16%,अनुसूचित जनजाति को 20% और अन्य पिछड़ा वर्ग को 14% का आरक्षण। यह आरक्षण 2012 का वह अधिनियम लागू होने से पहले लागू था, जिसको उच्च न्यायालय ने असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था।
आदिवासी समाज को बडे़ नुकसान की संभावना
इस मामले में आदिवासी संगठनों के रुख से समाज को बड़ा नुकसान हो सकता है। उच्चतम न्यायालय ने 58% आरक्षण को जारी रखने की राहत देने से इन्कार कर दिया है। उधर उच्च न्यायालय ने एक प्रशासनिक आदेश से 50% आरक्षण को अपने यहां लागू कर चुका है। मेडिकल कॉलेजों में भी इसी फॉर्मुले से प्रवेश लिया गया है। ऐसे में संभव है कि इसी फॉर्मूले से आगे भी कॉलेजों में प्रवेश और नौकरियों में भर्ती हो। इससे आदिवासी समाज को केवल 20% आरक्षण मिल पाएगा।
ये है मामला
छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 2011 में आरक्षण में संशोधन किया गया था। यह संशोधन 1994 के लोक सेवा में एससी,एसटी, ओबीसी आरक्षण अधिनियम में संशोधन से संबंधित था। उस समय सरकार ने एससी,एसटी, ओबीसी के लिए 58 प्रतिशत आरक्षण तय किया था। तत्कालीन राज्य सरकार के इस संशोधन को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई के बाद सितंबर 2022 में निर्णय दिया था। हाईकोर्ट ने 58 प्रतिशत आरक्षण को अपास्त करते हुए कहा था कि यह संविधान के खिलाफ है। 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। यह भी कहा गया था कि 58 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए कोई विषम परिस्थिति नहीं है।
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