Dr Kuldeep shrivastava

जिस्म तपता है, कि रूह भी तपती है, धरती तो इंद्रदेव की माला जपती है, खूब पढ़ लिख गया है रे, तू तो सूरज, तेरी डिग्री हर रोज अखबार में छपती है ।।