एम्बुलेंस कोरोना काल में हो गई 19 गुना ज्यादा फिर भी न आती है और ना ही इनमें उपकरणों की सुविधा है : कोमल हुपेंडी

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कब तक छत्तीसगढ़ की भोली भाली जनता स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर लूटती रहेगी -  आम आदमी पार्टी

रायपुर (khabargali) आम आदमी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी ने आज कुछ तथ्य जनता के सामने रखे है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में कोरोनाकाल में 19 गुना बढ़ीं प्राइवेट एंबुलेंस, 13 सौ रजिस्टर्ड है पर न सरकारी एंबुलेंस आती नहीं और न ही प्राइवेट में उपकरण और न स्टाफ, जान का जोखिम लगातार बना है।कोरोनाकाल के दो साल में प्रदेश में प्राइवेट एंबुलेंस की संख्या 19 गुना बढ़ गई है। प्रदेश में 2019 में सिर्फ 127 प्राइवेट एंबुलेंस परिवहन विभाग से रजिस्टर्ड थे। ढाई साल में ही 13 सौ से ज्यादा प्राइवेट एंबुलेंस रजिस्टर्ड हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी की टीम ने प्राइवेट एंबुलेंस के पड़ताल की तो खुलासा हुआ कि ज्यादातर एंबुलेंस मानकों के अनुसार नहीं हैं। एक बेसिक लाइफ सपोर्ट एंबुलेंस में 23 से ज्यादा उपकरण और इन्हें चलाने के लिए विशेषज्ञ तकनीकी स्टाफ होना चाहिए।

अमूमन हालत ये है कि ये एंबुलेंस गंभीर मरीजों को टूटे फूटे स्ट्रेचर से अस्पताल तक लेकर आ रही है। प्राइवेट एंबुलेंस संचालक छोटी गाड़ियों को इसके लिए रजिस्टर्ड करवा रहे हैं, फिर दिखावे के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर रखते हैं। दुर्घटना, हार्ट-अटैक, यहां तक कि कोरोना के दौरान सांस की दिक्कत वाले गंभीर मरीजों से जुड़े डेथ के अधिकांश मामलों में ये बड़ी वजह बनकर उभरा है। सुविधा का ऑडिट नहीं, रेट तो ऐसा की मजबूरी में मरता क्या न देता वाला हाल है। रेट भी मर्जी का लिया जा रहा है।

प्रदेश में थोक में इस तरह की एंबुलेंस मरीजों के साथ धोखाधड़ी क्यों कर रही है? विस्तृत जांच पड़ताल की तो सामने आया कि प्राइवेट एंबुलेंस की रुटीन ऑडिट, फिटनेस चैकअप के लिए कोई नियामक नहीं है। स्वास्थ्य विभाग में 108. और महतारी जतन की 102 एंबुलेंस के नोडल अफसरों ने बताया कि वे केवल सरकारी एंबुलेंस की ऑडिट करते हैं। निजी एंबुलेंस का ऑडिट नहीं होने से ये बिना मानक गंभीर मरीजों को बेरोकटोक लेकर आ जा रही हैं। इतना ही नहीं, रेट भी फिक्स नहीं है। निजी एंबुलेंस मरीज को लाने-ले जाने का 12 रुपए से 25 रुपए किमी चार्ज कर रही है या मर्जी से एकमुश्त जितना मोटा आसामी हो उस हिसाब से पैसे लिए जाते है।

एक ताजा केस में अभनपुर से नहीं आ पाई जीवित एक महिला पेशेंट जो 32 साल की थी और उनकी अभनपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मे डिलीवरी हुई। प्रसव के दौरान बहुत अधिक ब्लीडिंग हुई। महिला को एक निजी एंबुलेंस से अंबेडकर अस्पताल लाया गया, रास्ते में उसकी मौत हो गई। वजह थी ब्लीडिंग जैसे स्थिति से निपटने एंबुलेंस में पर्याप्त व्यवस्था नहीं होना। इतना ही नहीं अधिकतर प्राइवेट एंबुलेंस में लाइफ सपोर्ट सिस्टम नहीं है। ऑक्सीजन नहीं थी इसलिए मौत होना भी साधारण बात हो गई है। इस साल फरवरी में रायपुर के होम आइसोलेशन के एक करोना मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने के बाद परिजनों ने निजी एंबुलेंस से एम्स रायपुर में शिफ्ट करवाया। वहां उसे ले जाते वक्त एंबुलेंस में ऑक्सीजन सिलेंडर तो था लेकिन इसे लगाने पर्याप्त उपकरण नहीं थे। मरीज ने आधे रास्ते में ही दम तोड़ दिया।

आम तौर पर एंबुलेंस में ये गड़बड़ियां जैसे साधारण है। ऑक्सीजन सिलेंडर के अटैचमेंट नहीं होना और यदि है तो टूटे फूटे होना , कुछ खराब होना,या स्ट्रेचर हैं • डायबिटीज, बीपी के जांच उपकरण नहीं , गर्भवती महिलाओं के •लिए सीट ही नहीं है। बेसिक लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस में पोर्टेबल ग्लूकोमीटर, ग्लूकोमीटर स्ट्रिप, इलेक्ट्रिक नेबोलाइजर, सक्शन डिवाइस (मैनुवल-इलेक्ट्रिक), लैरिगोस्कोप विथ ब्लेड, बीपी इंस्ट्रूमेंट, स्टेथोस्कोप, मैनुअल बीथिंग यूनिट (एडल्ट चाइल्ड), हेड इमोबिलाइजर, एयर स्पीलिंट्स, सरवाइकल कॉलर, क्लोस्पिबल स्ट्रैचर, स्कूप स्ट्रैचर, स्पिन बोर्ड, कैनवास स्ट्रैचर (फोल्डिंग), गॉज कटर, आर्टरी फोरसेप, मैगलिस फोरसेप, ऑक्सीजन सिलेंडर आदि रहना ही चाहिए। आम आदमी पार्टी की टीम ने पाया है कि प्रदेश में एंबुलेंस के ये हालात और बदहाल व्यवस्था पूरे प्रदेश में ऐसे ही है।

राजधानी के सबसे बड़े सरकारी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल की प्राइवेट एंबुलेंस हैं। एक निजी एंबुलेंस में फोटो कॉपी की दुकान चल रही थी। संचालक ने बताया कि अस्पताल के मरीजों के दस्तावेज यहां फोटो कॉपी किए जाते हैं। अगर मरीज मिल गया तो दुकान बंद कर एंबुलेंस से उसे ले जाते हैं। फोटोकॉपी मशीन के बाद इस एंबुलेंस में मरीज के लायक जगह कम थी। हमने पाया की निजी एंबुलेंस के लिए नियामक संस्था की जरूरत है। रेट तय होने चाहिए। सरकारी और प्राइवेट के कलर कोड भी अलग रहना चाहिए। रजिस्ट्रेशन से पहले मानकों के आधार पर जांच हो। नर्सिंग होम एक्ट की तरह प्राइवेट एंबुलेंस के लिए भी नियम कायदे होने चाहिए।

डॉ. भीमराव अंबेडकर अस्पताल के सामने एंबुलेस के कर्मचारी ने स्वीकार किया कि मरीज के सिर पर चोट थी। स्ट्रेचर का साइज ऐसा था कि उसका सिर वाला हिस्सा गाड़ी के फ्लोर को छू रहा था, पैर वाला हिस्सा काफी ऊंचा था। सिर पर चोट वाले मरीज को लाते समय कितने झटके लगे होंगे, यह समझा जा सकता था। यही नहीं, आक्सीजन सिलेंडर थे पर अटैचमेंट नहीं दिखा। गंभीर मरीजों के लिए एंबुलेंस में क्रिटिकल केयर सुविधाएं होनी चाहिए। ऐसा हो तो मरीज के अस्पताल में ठीक होने के चांस बढ़ते हैं। राजधानी में हालत ऐसे है तो प्रदेश के गांव देहात में तो अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।

आप आवाज उठाए तो सरकार कल बड़े बड़े पोस्टर्स के मार्फत सुविधाओं का अंबार लगा देगी और जन मानस को लगेगा पहले की बात झूठ थी, फिर वस्तुतः हालत जस के तस और बदहाल पाएंगे। प्रदेश बन कर 22वर्ष हो गए क्या भाजपा और क्या कांग्रेस दोनो ने मूल भूत स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर जनता को छला है और प्राइवेट हाथों में पूरी तरह लूटकर बर्बाद होने छोड़ दिया है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार ने कितनी मजबूत स्वास्थ्य व्यवस्था यथार्थ में आम लोगो के आसपास निर्मित की है जो जाग जाहिर है और तारीफे काबिल है, फिर छत्तीसगढ़ में क्यों नहीं हो सकता , ये सिर्फ सरकारों की नियत नही होने का नतीजा है चाहे भाजपा हो या कांग्रेस । आम आदमी पार्टी अब ऐसा होने नही देगी और लोगों के साथ मिलकर इन सारी समस्याओं के लिए समाधान निकलेगी और नही तो आने वाले दिनों में दिल्ली बदलीस, पंजाब बदलिस अब बदलबों छत्तीसगढ़ 2023 ।

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